- देवी पार्वती को भगवान शिव ने दिया था जीवन के रहस्यों का ज्ञान
- सवालों का जवाब देते हुए बताए थे सफलता के सूत्र
- जानिए जीवन में सफलता के बारे में क्या कहते हैं महादेव
मुंबई: जीवन निरंतर बहती रहने वाली धारा का नाम है जो हमेशा एक जैसी नहीं रहती और इस सत्य को भी स्वीकार करना पड़ेगा कि जीवन का अनुभव हमेशा के लिए सुखद नहीं बना रह सकता है। जीवन की यात्रा के साथ आपको समस्याओं और जिंदगी के विभिन्न पहलुओं का अहसास होता है। यह समस्याएं आपके काम में हो सकती हैं, आपके परिवार में हो सकती हैं, दोस्तों के साथ या फिर कुछ और।
यह समस्याएं तभी पीछा छोड़ सकती हैं जब आप उनक सीधे सीधे डटकर सामना करो और उनसे भागना बंद कर दो। यहां तक कि भगवान शिव भी यही कहते हैं। उनकी ओर से दी गई शिक्षा और सूत्रों से आपको जीवन में अपने लक्ष्य पाने में मदद मिलेगी। आइए एक नजर डालते हैं भगवान शिव की ओर से दिए गए सफलता के सूत्रों पर, जिनके बारे में उन्होंने माता पार्वती से बात की थी।
दृढ़ निश्चय करना आवश्यक: दृढृ निश्चय ही वो रास्ता है जिस पर चलकर इंसान सफलता को पा सकता है। किसी भी कार्य को करने के पीछे मनुष्य का मन में किया गया निश्चय ही सबसे बड़ा कारक होता है।
समाज के लोगों से प्रभावित ना होना: अगर आपने अपने मन में कोई काम करने का निश्चय कर लिया है तो फिर लोगों से प्रभावित होना व्यर्थ है, चाहे वह आपके बारे में कितनी ही बुरी बातें कहें। समाज की बातों पर ध्यान देने से आपकी प्रगति बाधित होगी। आप लोगों को शांत नहीं कर सकते है भले ही कितना ही प्रयास किया जाए इसलिए अपनी ऊर्चा व्यर्थ करने से कोई लाभ नहीं।
शांत रहकर खुद को नियंत्रित रखना: शिव को संसार का सबसे बड़ा योगी कहा जाता है। खुद में स्थिर रहना और परिस्थिति से दूर रहकर भी उस पर पकड़ रखना आसान नहीं होता। महादेव एक बार ध्यान में बैठ जाएं, तो दुनिया में कुछ भी उथल पुथल हो लेकिन उनका ध्यान कोई नहीं तोड़ सकता। शिव का यह गुण हमें जीवन का गहरा ज्ञान देता है कि आप भले ही संसार की किसी भी परिस्थिति में लिप्त हों लेकिन अपने भीतर स्थिर बने रहना आवश्यक है।
अपनी प्राथमिकताएं समझें: भगवान शिव के जीवन को देखकर लगता है उन्हें हमेशा अपनी प्राथमिकताओं का भान रहा। उन्होंने अपनी पत्नी पार्वती से प्रेम और सम्मान को सबसे ऊपर रखने के साथ अपने मित्र और भक्तों को भी उचित स्थान दिया और साथ ही इन सब से अलग अपने ध्यान में भी लीन रहे। कब क्या करना उचित है वह ये अच्छी तरह जानते थे।
जीवन के हर रूप को खुलकर जिएं: शिव की जीवन शैली हो या उनका कोई अवतार, उनके हर रूप में स्वभाव बिल्कुल अलग रहे हैं। फिर वो रूप तांडव करते हुए नटराज हो, विष पीने वाले नीलकंठ, अर्धनारीश्वर या फिर सबसे पहले आसानी से प्रसन्न हो जाने वाले भोलेनाथ।
परिस्थिति भले नकारात्मक हो आप सकारात्मक बने रहें: समुद्रमंथन से जब विष बाहर आया, तो सबने कदम पीछे खींचे क्योंकि विष कोई नहीं पी सकता था। ऐसे में महादेव ने स्वयं विष (हलाहल) पिया और उनका नाम नीलकंठ पड़ गया। इसका सबक ये है कि जीवन की परिस्थिति कितनी ही नकारात्मक हो आपको सकारात्मक बने रहना चाहिए।
ये और इस जैसी कई बातों का ज्ञान पाकर पहले देवी पार्वती भगवान शिव की अर्द्धांगिनी बनीं और फिर उन्हें जीवन के गहरे सत्यों की भी अनुभूति हुई। माता पार्वती का जीवन पूरी तरह से शिव से मिले ज्ञान से विकसित हुआ, कभी शिव सूत्र के साथ मिले उपदेश के रूप में तो कभी महादेव के जीवन चरित्र को देखकर। आप भी इनका सदुपयोग कर सकते हैं।