भगवान शिव को शनि गुरु के रूप में पूजते हैं, लेकिन बात जहां उनके ग्रह चाल की आती है वह अपने कर्तव्य से नहीं चूकते। भले ही उन्हें अपने गुरु के ऊपर ही क्यों न वक्र दृष्टी डालनी हो। जी हां शनि ने अपने गुरु भगवान शिव को भी नहीं छोड़ा था। उनके डर से भगवान शिव को धरती पर जाना पड़ा था लेकिन बावजूद इसके वह शनि के प्रकोप से बच नहीं पाए। शिव पुराण में भी इस कथा का उल्लेख है कि भगवान शिव शनि के प्रकोप से डर गए थे।
शनि भगवान ग्रह चाल के कारण भगवान शिव पर सवार हुए थे। शनि स्वयं इसकी जानकारी एक दिन पूर्व भगवान शिव को दे आए थे और यही कारण था कि शिव भगवान उनके प्रकोप से बचने के लिए छुपते हुए धरती तक आ गए थे, लेकिन शिव क्या शनि के प्रकोप से बच पाएं? या प्रकोप का असर उन पर क्या हुआ? आइए जानें।
शनि ने चेताया था शिव को
शनिदेव अपने प्रकोप से बचने के लिए भगवान शिव को पहले ही सूचित कर दिए थे। वह एक दिन पूर्व ही शिव के पास गए और उन्हें प्रणाम कर क्षमा याचना करते हुए बताया कि कल वह उनके ऊपर सवार होने वाले हैं। उन्होंने बताया कि उनकी ग्रह चाल के मुताबिक शिव जी की राशि में वह कल प्रवेश करेंगे और उनकी वक्र दृष्टी उन पर होगी। शिव जी को यह बात सुन कर अच्छा नहीं लगा क्योंकि भगवान शिव शनिदेव के गुरु हैं। लेकिन शनिदेव ने अपने कर्म का हवाला दे कर उनसे क्षमा मांग कर चले गए। भगवान शिव ने बस शनिदेव से इतना पूछा कि वक्र दृष्टी कब से होगी तो उन्होंने बताया कि अगले दिन सवा पहर तक रहेगी।
डर से धरती की ओर चले गए भंडारी, बन गए हाथी
शिव भगवान को लगा कि अगले दिन जब शनि आएंगे तो वह कहीं छुप जाएंगे और वह उनके प्रकोप से बच जाएंगें। इसके लिए उन्होंने छुपने के लिए धरती की ओर मुख कर लिया। धरती पर आ कर भी उन्हें लगा कि शनिदेव उन्हें पहचान लेंगे तो उन्होंने एक हाथी का रूप धारण कर लिया ताकि शनिदेव उन्हें न पहचान सकें और वह उनके प्रकोप से बच जाएंगे। जब पूरा प्रहर बीत गया तब शिव अपने लोक पहुंचे।
शनि ने बताया अपना असर
अपने लोग जब शिव पहुंचे तो शनि भगवान उनसे फिर मिलने पहुंचे। शिव भगवान ने मुस्कराते हुए शनिदेव का स्वागत किया और कहा कि आज तो हम आपको चकमा दे गए। आपकी वक्र दृष्टी से हम बच निकले। इस
पर शनिदेव ने हंसते हुए उन्हें बताया कि पूरे दिन जो आप धरती पर हाथी बन कर विचरण करते रहे वह हमारे ही प्रकोप का असर था। पशु योनि ही में आपको भेजना हमारे प्रकोप का कारण था। भगवान शिव यह सुनकर शून्य भाव में रह गए और शनि वहां से निकल गए।
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