नई दिल्ली. वास्तुशास्त्र में सबसे प्रमुख स्थान द्वार का है क्योंकि वास्तु भवन का सबसे पहला हिस्सा मुख्य द्वार होता है और भवन में रहने वालों पर सबसे पहला प्रभाव मुख्य द्वार का ही पड़ता है। अतः भवन के मुख्य द्वार का वास्तु के अनुरूप होना बहुत ही आवश्यक है। वास्तु के अनुरूप बना मुख्य द्वार घर में सुख व समृद्धि लाता है और वास्तु के प्रतिकूल बना मुख्य द्वार घर में बर्बादी भी ला सकता है।
मुख्य द्वार स्थापना कब करें
मुख्य द्वार की चौखट स्थापना के लिए तिथि देखना बहुत ही आवश्यक है जिसका फल निम्न प्रकार से है। मुख्य द्वार की स्थापना के लिए पंचमी तिथि सबसे ज्यादा शुभ मानी गई है इस दिन द्वार की स्थापना करने से धन लाभ होता है, इसके अलावा सप्तमी, अष्टमी और नवमी तिथियाँ भी मुख्य द्वार की स्थापना के लिए शुभ मानी गई हैं। जबकि प्रतिपदा के दिन द्वार स्थापना करने से दुःख, तृतीया को करने से रोग उत्पन्न होते हैं, चतुर्थी को करने से भय होता है, षष्ठी तिथि को करने से कुल का नाश होता है, दशमी को करने से धन हानि तथा अमावस्या व पूर्णिमा को स्थापना करने से संबंधों में कटुता आती है। नक्षत्रों में रेवती, अनुराधा, पुष्य, ज्येष्ठ, हस्त, अश्वनी, चित्रा, स्वाति तथा पुनवसु नक्षत्र मुख्य द्वार स्थापना के लिए शुभ माने गए हैं । वारों में रवि, सोम, बुध, गुरु तथा शुक्रवार शुभ माने गए हैं, इसके अलावा नंदा, जया तथा पूर्ण तिथियाँ भी द्वार स्थापना के लिए शुभ मानी गई हैं।
मुख्य द्वार की दिशा
मुख्य द्वार की स्थापना के लिए दिशाओं का भी बहुत महत्व है जैसे की पूर्व दिशा का द्वार विजय द्वार कहलाता है। इस दिशा में द्वार बनवाने से जीवन में सदा विजय, सुख व शुभ फलों की प्राप्ति होती है, उत्तर दिशा का द्वार कुबेर द्वार कहलाता है इस दिशा में द्वार बनवाने से धन व सुखों की प्राप्ति होती है, पश्चिम दिशा का द्वार मकर द्वार कहलाता है इस दिशा में द्वार बनवाने से भवन के निवासियों माँ आलास छाया रहता है तथा प्रत्येक काम के लिए जरुरत से ज्यादा मेहनत करनी पड़ती है, दक्षिण दिशा के द्वार यम द्वार कहलाता है इस दिशा में द्वार बनवाने से जीवन में संघर्ष बढ़ता है तथा घर की स्त्रियों के लिए कष्टकारी होता है।
दक्षिणावर्ती और वामावर्ती द्वार
मुख्य द्वार प्रायः दो प्रकार के होते हैं दक्षिणावर्ती और वामावर्ती। इनका भेद इस प्रकार से है- मुख्य द्वार से प्रवेश करने पर यदि अंदर का दूसरा दरवाजा दायीं तरफ होतो वह दक्षिणावर्ती द्वार कहलाता है ऐसा द्वार सुख, समृद्धि, धन तथा वैभव प्रदायक माना जाता है जबकि मुख्य द्वार में प्रवेश करने पर यदि अंदर का दूसरा दरवाजा बायीं तरफ होतो यह वामावर्ती द्वार कहलाता है ऐसा द्वार दुःख, कष्ट, रोग प्रदायक तथा धन नाशक माना जाता है ।
कैसा हो मुख्य द्वार
मुख्य द्वार के ऊंचाई उसकी चौड़ाई से दोगुनी से अधिक होनी चाहिए। मुख्य द्वार के ऊपर द्वार या द्वार के सामने द्वार भी नहीं बनवाना चाहिए ऐसा करने से धन का व्यर्थ ही नाश होता है तथा दरिद्रता आती है। मुख्य द्वार हमेशा दो पल्लों का बनवाना चाहिए व द्वार आराम से खुलने व बंद होने वाला होना चाहिए, यदि मुख्य द्वार खुलने पर बुरी आवाज करता होतो ऐसा द्वार भवन के स्वामी पर अशुभ प्रभाव डालता है, यदि दरवाजे के पल्ले बार बार आपस में टकराते हों तो गृह कलह की सम्भावना बढ़ जाती है।
यदि मुख्य द्वार का झुकाव अंदर की ओर होतो गृह स्वामी की आयु कम करता है और यदि झुकाव बाहर की तरफ होतो गृह स्वामी को अधिकतर बाहर ही रहना पड़ता है। मुख्य द्वार अपने आप खुलता होतो मानसिक उन्माद देता है और यदि अपने आप बंद हो जाता होतो कुल का नाश करता है। मुख्य द्वार के सामने खम्बा, पेड़, कांटे दार पेड़, दीवार का कोना, टीला आदि होतो द्वार वेध दोष लगता है द्वार वेध भवन के निवासियों पर अशुभ प्रभाव डालता है। द्वार के सामने कीचड़ होतो शोक, यदि जल बहता हो तो धन हानि, द्वार के सामने यदि कुआँ होतो भवन के सदस्यों को भय, मिर्गी आदि रोगों का सामना करना पड़ता है। द्वार के सामने मंदिर होतो गृह स्वामी के लिए कष्टकारी होता है।
द्वारवेध नहीं लगता
जब भवन व वेध के बीच सार्वजनिक मार्ग हो या जब वेध व भवन के बीच भवन से दोगुनी ऊंचाई की दूरी हो या फिर वेध द्वार के सामने न होकर भवन के पीछे या बगल में हो तो इन सभी परिस्थितियों में द्वार वेध का दोष नहीं लगता है।