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शंख को क्यों माना जाता हैं लक्ष्मी जी का छोटा भाई, क्या है इसके आकार, प्रकार और ध्वनि का महत्व

Updated Jul 06, 2019 | 16:17 IST | टाइम्स नाउ डिजिटल

हिंदू धर्म में शंख को उसी तरह से पवित्र माना जाता है जैसे की भगवान। शंख के आकार, प्रकार और ध्वनि के साथ इससे जुड़ी कई रोचक बातें भी हैं जिसे जरूर जानना चाहिए।

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तस्वीर साभार:&nbspInstagram
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शंख को प्राचीन काल से से पूजा का अंग माना गया है। हर वैदिक कार्य में शंख का होना जरूरी होता है। इतना ही नहीं माना जाता है जहां शंख का वास होता है वहा सुख-शांति, धन वैभव सब कुछ होता है। शंख को मंगलकारक माना गया है। शंख की महत्ता इसी से जानी जा सकती है कि प्राचीन काल में युद्ध प्रारंभ और अंत शंख की ध्वनि से ही होता था।

तन धर्म में सभी वैदिक कार्यों में शंख का विशेष स्थान है। शंख जहां बजता है कहते हैं वहां सकारात्मक ऊर्जा का वास होता है। अध्यात्मिक शक्ति से भरा होने के कारण शंख का बजना घरों में बेहद शुभ माना जाता है। शंख भगवान विष्णु का शंख भगवान विष्णु का प्रमुख अस्त्र और शस्त्र माना गया है। आइए शंख से जुड़ी कई अन्य रोचक बातें भी जानें।

शंख को क्यों माना जाता हैं लक्ष्मी जी का छोटा भाई

वामावर्ती और दक्षिणावर्ती शंख होते हैं महत्वपूर्ण
शंख के वैसे तो बहुत से प्रकार है लेकिन शास्त्रों में वामावर्ती और दक्षिणावर्ती शंख को ही विशेष महत्पूर्ण बताया गया है। शंख की निमार्ण शंखचूर्ण की हड्डियों से मानी गई है। जबकि उनकी उत्पत्ति समुद्र मंथन के दौरान हुई है। यही कारण है कि भगवती महालक्ष्मी और दक्षिणावर्ती शंख दोनों भाई-बहन माने गए हैं। शंख को लक्ष्मी का छोटा भाई कहा गया है।

गंगा-युमना-सरस्वती के साथ कई देवता भी करते हैं शंख में वास
शंख को इसकारण है बहुत पूजनीय माना गया है क्योंकि इसमें कई देवताओं का वास होता है। शंख को पूजा स्थल पर इसी कारण से विशेष स्थान दिया जाता है। दक्षिणावर्ती शंख के शीर्ष में चन्द्र का वास माना गया है जबकि मध्य में वरुण का वास होता है। शंख के पृष्ठ भाग में ब्रह्मा और अग्र भाग में गंगा, यमुना और सरस्वती का वास होता है।

शंख का पवित्र जल तीर्थमय समान है
कहते हैं शंख का पवित्र जल तीथर्थमय होता है। माना जाता है कि जहां भी शंख होता है वहां स्वयं विष्णु और लक्ष्मी का वास होता है। इतना ही नहीं जो शंख के जल से स्नान कर लेता है उसे तीर्थ समान फल मिलते हैं।

विजय का प्रतीक माना जाता है शंख 
जहां शंखनाद् होता है वहां ईश्वर की कृपा होती है और यही कारण है कि शंखनाद् का मतलब विजय का प्रतीक है। धार्मिक कार्यो के साथ ही युद्ध के समय भी शंख का बजना यही बताता है। शंख की ध्वनि जहां तक पहुँचती है कहते वहां तक सकारात्मक ऊर्जा का वास हो जाता है। वहां का वातावरण शुद्ध हो जाता है।

महाभारत के समय पांडव और कृष्ण के पास थे अलग-अलग शंख
 महाभारत युद्ध के समय भगवान श्री कृष्ण के पास पांचजन्य शंख था जबकि अर्जुन के पास देवदत्त और भीम ने पौंड्रक नाम के बहुत ही बड़े शंख मौजूद थे जिसे वे बजाया करते थे। जबकि युधिष्ठिर ने अनंतविजय, नकुल ने सुघोष और सहदेव ने मणिपुष्पक शंख को बजाकर ही महाभारत के युद्ध का आगाज किया था।

शंख को बजाना सेहत के लिए भी फायदेमंद हैं। जिन्हें श्वांस की बीमरी है या सिरदर्द या कान की समस्या हो उन्हें शंख जरूर बजाना चाहिए।

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