- बैसाखी का त्योहार को फसलों के पर्व के रूप में भी मनाया जाता है
- बैसाखी के त्योहार को हर जगह अलग अलग नामों से जाना जाता है
- असम में इसे बिहू, बंगाल में नबा वर्षा, केरल में पूरम विशु के नाम से लोग इसे मनाते हैं
Why is Baisakhi 2022 celebrated: देश में हर साल धूमधाम से 13 अप्रैल को बैसाखी मनाया जाता है। हिंदू कैलेंडर के अनुसार इस दिन को नव वर्ष की शुरुआत के रूप में भी जाना जाता है। प्रदेश के कुछ हिस्सों में बैसाखी का त्योहार को फसलों के पर्व के रूप में भी मनाया जाता है, क्योंकि इस समय रबी की फसल पककर पूरी तरह तैयार हो जाती है और यहीं कटाई का समय भी होता है। बैसाखी के त्योहार को हर जगह अलग अलग नामों से जाना जाता है। असम में इसे बिहू , बंगाल में नबा वर्षा, केरल में पूरम विशु के नाम से लोग इसे मनाते हैं। दरअसल सिख धर्म की स्थापना और फसल पकने के प्रतीक के रूप में मनाई जाती है।
इस महीने रबी फसल पूरी तरह से पक कर तैयार हो जाती है और पकी हुई फसल को काटने की शुरुआत भी हो जाती है। ऐसे में किसान खरीफ की फसल पकने की खुशी में यह त्योहार मनाते हैं। 13 अप्रैल को यह त्योहार बनाने के पीछे यह कारण है कि 1699 के दिन सिख पंथ के 10वें गुरू श्री गुरु गोबिंद सिंह जी ने खालसा पंथ की स्थापना की थी, इसके साथ ही इस दिन को मनाना शुरू किया गया था। आज ही के दिन पंजाबी नए साल की शुरुआत भी होती है।
क्यों मनाते हैं 13 अप्रैल को बैसाखी
13 अप्रैल 1699 को दसवें गुरु गोविंद सिंहजी ने खालसा पंथ की स्थापना की थी। इसी दिन गुरु गोबिंद सिंह ने गुरुओं की वंशावली को समाप्त कर दिया। इसके बाद सिख धर्म के लोगों ने गुरु ग्रंथ साहिब को अपना मार्गदर्शक बनाया। बैसाखी के दिन ही सिख लोगों ने अपना सरनेम सिंह (शेर) को स्वीकार किया। दरअसल यह टाइटल गुरु गोबिंद सिंह के नाम से आया है। बैसाखी त्यौहार अप्रैल माह में तब मनाया जाता है, जब सूर्य मेष राशि में प्रवेश करता है। यह घटना हर साल 13 या 14 अप्रैल को ही होती है।