- अमरनाथ बाबा को बाबा बर्फानी के नाम से भी जानते हैं
- दस फुट लंबा ठोस बर्फ का शिवलिंग प्राकृतिक रूप से बनता है, इसे स्वयंभू इस वजह से कहते हैं
- कई बार भक्तों को कबूतरों का एक जोड़ा दिखाई देता है जिसे अमरत्व का वरदान मिला है
अमरनाथ यात्रा हिंदू धर्म में सबसे कठिन यात्राओं में से एक है और यहां तक हर कोई पहुंच भी नहीं पाता है। इसके पीछे कारण यहां के दुर्गम और कठिनाईयों से भरा सफर होता है। यही कारण है कि अमरनाथ यात्रा से पूर्व न केवल रजिस्ट्रेशन कराए जाते हैं, बल्कि स्वास्थ्य की जांच भी की जाती है। कुछ बीमारियों से ग्रस्त लोगों को यात्रा करने पर पाबंदी भी है। इसलिए ही कहा जाता है कि समय रहते बाबा अमरनाथ की यात्रा जीवन में एक बार जरूर करनी चाहिए। यह सौभाग्य बहुत ही भाग्यशाली लोगों को ही मिल पाता है। इसलिए यदि आप भी अपना मन बाबा बर्फानी के यात्रा से जुड़ी आश्चर्यजनक बातों को जरूर जान लें।
Baba Amarnath Yatra se judi rochak baatein :
1. पवित्र गुफा में स्थित बाबा अमरनाथ का शिवलिंग स्वयंभू है। यानी शिवलिंग प्राकृतिक रूप से बर्फ से निर्मित होता है। इसलिए इसे स्वयंभू हिमानी शिवलिंग या बाबा बर्फानी के नाम से भी जानते हैं। आषाढ़ पूर्णिमा से लेकर सावन महीने तक पवित्र हिमलिंग के दर्शन के लिए यहां हर साल लाखों लोग आते हैं।
2. गुफा में ऊपर से बर्फ की बूंदें टपकती रहती हैं, जिससे लगभग दस फुट लंबा ठोस बर्फ शिवलिंग का शिवलिंग प्राकृतिक रूप से बनता है। गुफा की परिधि लगभग डेढ़ सौ फुट है। खास बात ये है कि चन्द्रमा के घटने-बढ़ने के साथ-साथ इस बर्फ का आकार भी घटता-बढ़ता रहता है। श्रावण पूर्णिमा तक शिवलिंग अपने पूर्ण आकार को प्राप्त कर लेता है।
3. गुफा 11 मीटर ऊंची है और इसकी लंबाई 19मीटर और चौड़ाई 16 मीटर है। कश्मीर के श्रीनगर से करीब 135 किमी दूर बाबा बर्फानी के दर्शन के लिए दुर्गम यात्रा करनी पड़ती है। ये समुद्रतल से 13,600 फुट की उंचाई पर स्थित है।
4. मान्यता है कि यहां एक कबूत का जोड़ा हर बार नजर आता है और इस जोड़े का अमरत्वव प्राप्त है। कहा जाता है कि एक बार इस गुफा में माता पार्वती को भगवान शिव ने अमरकथा सुनाई थी और इस अमरकथा को सुनकर सद्योजात शुक-शिशु शुकदेव ऋषि के रूप में अमर हो गये थे। माना जाता है कि जिस वक्त शिवजी अमरकथा सुना रहे थे उस वक्त ये कबूतर जोड़ा भी यह कथा सुन लिया था और इस कारण वह अमर हो गया।
5. पौराणिक मान्यता के जिस भी श्रद्धालुओं को कबूतरों का जोड़ा दिखाई देता है जो बेहद भाग्यशाली होते हैं और ऐसे भक्तों पर शिव और माता पार्वती का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
6. वहींं एक और मान्यता है कि भगवान शंकर जब पार्वती जी को अमरकथा सुनाने ले जा रहे थे तो उन्होंने छोटे-छोटे अनंत नागों को अनंतनाग में छोड़ दिया था और माथे के चंदन को चंदनबाड़ी में उतारा था। साथ ही अन्य पिस्सुओं को पिस्सू टॉप पर और गले के शेषनाग को शेषनाग नामक स्थल पर छोड़ दिया था। ये तमाम स्थल अब भी अमरनाथ यात्रा के दौरान श्रद्धालुओं के रास्ते में आते हैं।
7. अमरनाथ गुफा में जो भी चढ़ावा चढ़ाया जाता है, उसका चौथाई हिस्सा एक मुसलमान गड़ेरिये परिवार को जाता है, इसके पीछे कारण यह है कि अमरनाथ गुफा का सबसे पहले पता सोलहवीं शताब्दी के पूर्वाध में एक मुसलमान गड़ेरिए के जरिये ही चला था। यही कारण है कि चढ़ावे चौथाई हिस्सा उस मुसलमान गड़ेरिए के वंशजों को मिलता है।
8. पहलगाम जम्मू से 315 किलोमीटर की दूरी पर स्थित अमरनाथ बाबा की गुफा हिंदू धर्म का सबसे पवित्र स्थान माना गया है। यहां का नैसर्गिक सौंदर्य अद्भुत है।
9. पहलगाम से यात्रा शुरू हो कर अपने पहले पड़ाव चंदनबाड़ी रुकती है। ये पहलगाम से आठ किलोमीटर की दूरी पर है। पहली रात तीर्थयात्री यहीं रुकते हैं। यहां कैंप में सबको रुकाया जाता है। दूसरे दिन पिस्सु घाटी की चढ़ाई शुरू होती है।
10. पिस्सु घाटी से लिद्दर नदी के किनारे-किनारे पहले चरण की यह यात्रा ज्यादा कठिन नहीं होती लेकिन चंदनबाड़ी से आगे इसी नदी पर बर्फ जमा रहता है और तब यात्रा की कठिनाई का सामना करना होता है।