महर्षि वाल्मीकि को भारत के प्रमुख ऋषियों में से एक माना जाता है। वे रामायण काव्य के रचनाकार और संस्कृत भाषा के आदि कवि भी कहे जाते हैं। हालांकि तुलसीदास ने भी रामायण की रचना की थी लेकिन वाल्मीकि द्वारा लिखे रामायण की बातें कई मायनों में इससे भिन्न हैं।
प्रत्येक वर्ष अश्विन मास की शरद पूर्णिमा को महर्षि वाल्मीकि की जयंती मनायी जाती है। इस वर्ष वाल्मीकि जयंती 13 अक्टूबर को मनायी जाएगी। उत्तर भारत में महर्षि वाल्मीकि की जयंती काफी धूमधाम के साथ मनायी जाती है और देश के कई हिस्सों में इस दिन छुट्टी रहती है। यहां पढ़िये महर्षि वाल्मीकि को समर्पित उस मंदिर के बारे में जो पूरे 1300 साल पुराना है....
कौन थे महर्षि वाल्मीकि
वाल्मीकि के पिता का नाम महर्षि वरुण और माता का नाम चर्षणी था। इन्हें भृगु ऋषि का भाई माना जाता है। कहा जाता है कि इन्हें अपने भाई की तरह ही परम ज्ञान की प्राप्ति हुई थी। बचपन में एक भीलनी ने इन्हें चुरा लिया था इसलिए इनका पालन पोषण भील समुदाय में ही हुआ।
कैसे पड़ा इनका नाम वाल्मीकि
वास्तव में दीमकों के घर को वाल्मीकि कहा जाता है। एक बार जब वाल्मीकि तपस्या करने बैठे तब दीमकों ने उनके शरीर पर घर बना लिया। साधना पूरी होने के बाद महर्षि दीमक का घर तोड़कर उससे बाहर निकले। तभी से उन्हें वाल्मीकि कहा जाने लगा।
महर्षि वाल्मीकि और नारद की कथा
अपने परिवार का पेट पालने के लिए वाल्मीकि लोगों को लूटते थे। उनका नाम रत्नाकर था और वो मुसाफिरों का माल छीनकर अपने परिवार का खर्च चलाते थे। एक बार नारद मुनि जंगल के रास्ते से गुजर रहे थे तब डाकू रत्नाकर ने उन्हें लूटने की कोशिश की। तब नारद ने कहा कि क्या तुम्हारा परिवार भी इस पाप के फल में तुम्हारे साथ भागीदार होगा। रत्नाकर तुरंत अपने घर पहुंचा और घर के सदस्यों से यही सवाल पूछा। उसके घर में कोई भी पाप का भागीदार बनने के लिए तैयार नहीं हुआ। तब रत्नाकर को झटका लगा और उसने नारद मुनि से माफी मांगी। नारद ने उसे भगवान राम का नाम जपने के लिए कहा। तब रत्नाकर राम के नाम की जगह मरा मरा जपने लगा। मरा मरा कहते कहते एक दिन वह राम राम कहने लगा और ऋषि वाल्मीकि के रुप में उसने रामायण की रचना की।
चेन्नई में है 1300 साल पुराना मंदिर
महर्षि वाल्मीकि को समर्पित एक छोटा सा मंदिर तिरुवन्मियूर, चेन्नई में स्थित है। इसे 1300 साल पुराना बताया जाता है। माना जाता है कि थिरुवन्मियूर का नाम थिरु-वाल्मीकि-ऊर से पड़ा यानी वाल्मीकि के नाम पर। इस मंदिर को भगवान शिव से भी जोड़ा जाता है। बताया जाता है कि यही वो जगह है जहां वाल्मीकि ने रामायण की रचना के बाद भगवान शिव की उपासना की थी।
आपकी जानकारी के लिए बता दें कि जब भगवान राम ने सीता को घर से निकाल दिया तब वह महर्षि वाल्मीकि के आश्रम में ही रही थीं। सीता के पुत्र लव और कुश भी उन्हीं के आश्रम में शिक्षा दीक्षा प्राप्त किए थे।