- अक्षय नवमी को आंवला नवमी के नाम से भी जाना जाता हैं
- आंवला नवमी कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की नवमी के दिन मनाया जाता हैं
- आंवला नवमी के दिन आंवला के वृक्ष की पूजा की जाती है
Akshaya Navami 2021: आंवला नवमी दीपावली के बाद कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को मनाई जाती है। इसे अक्षय नवमी के नाम से भी पुकारा जाता हैं। हिंदू शास्त्र के अनुसार इस दिन आंवला के वृक्ष की पूजा करने से जीवन के सभी पाप धुल जाते हैं। पौराणिक मान्यता के अनुसार कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की नवमी से लेकर पूर्णिमा तक भगवान श्री विष्णु आंवला के पेड़ पर निवास करते हैं। इन दिनोंआंवला के वृक्ष की पूजा करने से भगवान श्री हरि का आशीर्वाद सदा भक्तों पर बना रहता है।
शास्त्र के अनुसार इसी दिन भगवान श्रीकृष्ण अपनी बाल लीलाओं का त्याग करके वृंदावन को छोड़कर मथुरा चले गए थे। धर्म के अनुसार आंवला भगवान विष्णु का सबसे प्रिय फल माना जाता है। आंवला के वृक्ष की पूजा करने से सभी देवी-देवताओं का आशीर्वाद प्राप्त होता हैं। अक्षय नवमी का व्रत खासकर संतान की प्राप्ति के लिए किया जाता है। मान्यताओं के अनुसार इस दिन दान पूर्ण करने से अगले जन्म में भी पुण्य की प्राप्ति होती है। क्या आप भी हर साल अक्षय नवमी का व्रत करते हैं? अगर हां, तो आप यहां अक्षर नवमी का डेट, मुहूर्त, महत्व और पूजा करने की विधि जान सकते हैं।
अक्षय नवमी 2021 का डेट
2021 में अक्षय नवमी 12 नवंबर दिन शुक्रवार को मनाया जाएगा।
अक्षय नवमी 2021 का मुहूर्त
तारीख-12 नवंबर
दिन- शुक्रवार
समय- सुबह 6:50 से दोपहर 12:10 तक पूजा मुहूर्त
नवमी का प्रारंभ समय- सुबह 5:51 से प्रारंभ होकर 13 नवंबर दिन शनिवार सुबह 5:30 तक
अक्षय नवमी का महत्व
अक्षय नवमी के दिनआंवला के वृक्ष के नीचे भोजन करने का विशेष महत्व होता है। धर्म के अनुसार इसी दिन भगवान विष्णु ने कुष्माण्डक राक्षस का वध किया था। मान्यताओं के अनुसार अक्षय नवमी के दिन ही भगवान श्री कृष्ण ने कंस वध से पहले तीन वन की परिक्रमा की थी। इसी वजह से आज भी लोग अक्षय नवमी के दिन मथुरा और वृंदावन की परिक्रमा करते हैं। ऐसी मान्यता है, कि इस दिन यदि भक्त भगवान श्री हरि की पूजा-अर्चना श्रद्धा पूर्वक करें, तो भगवान विष्णु संतान प्राप्ति का वरदान देते हैं।
अक्षय नवमी की पूजा विधि
- अक्षय नवमी के दिन सबसे पहले आप स्नान करके आंवला के वृक्ष के पास जाकर उसके आसपास की गंदगी को साफ करें।
- सफाई करने के बाद आंवला के वृक्ष की जड़ में जल चढ़ाते हुए भगवान श्री हरि का स्मरण करें।
- अब आंवला के जड़ में कच्चा दूध डालें।
- अब पूजनसामग्री से वृक्ष की पूजा करनी प्रारंभ करें।
- पूजा संपन्न होने के बाद वृक्ष के तने पर कच्चा सूत या मौली लेकर 8 परिक्रमा करते हुए उन्हें वृक्ष में लपेटे। आप चाहे तो वृक्ष की 108 परिक्रमा भी कर सकते हैं।
- परिक्रमा करने के बाद वृक्ष के नीचे बैठकर परिवार के साथ भोजन करें।