- बलराम जयंती को हलषष्ठी और ललही छठ के रूप में भी जाना जाता है
- बलदेव को भगवान विष्णु का 8वां अवतार माना गया है
- बलराम को बलदेव,बलभद्र और हलायुध के नाम से भी जाना जाता है
भगवान बलराम को नागों के अवतार के रूप में भी पूजा जाता है,जिस पर भगवान विष्णु की पूजा होती है। भगवान बलराम को बलदेव,बलभद्र और हलायुध के नाम से भी जाना जाता है। उत्तर भारत में बलराम जयंती को हल षष्ठी और ललही छठ के रूप में भी जाना जाता है। वहीं गुजरात में इसे रंधन छठ के रूप मनाया जाता है, जबकि ब्रज क्षेत्र में यह बलदेव छठ नाम से लोकप्रिय है।
हिंदू पंचांग के अनुसार भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की षष्ठी पर बलराम जयंती मनाई जाती है। इस दिन भगवान शेषनाग ने द्वापर युग में भगवान श्री कृष्ण के बड़े भाई के रूप में जन्म लिया था। बलराम जी का मुख्य शस्त्र हल और मूसल माना गया है और यही कारण है कि उन्हें हलधर के नाम से जाना जाता है और उनके जन्म को हलषष्ठी भी कहा जाता है।
इस दिन धरती पर होने वाले हर तरह के अन्न, शाक-भाजी आदि को खाने का विशेष महत्व माना जाता है। इस दिन हालांकि गाय के दूध या दूध से बने पदार्थ खाने की मनाही है। इस दिन महिलाएं अपनी संतान की रक्षा और लंबी उम्र के लिए व्रत भी करती हैं।
बलराम जयंती 2020 तिथि
9 अगस्त 2020
बलराम जयंती 2020 शुभ मुहूर्त
षष्ठी तिथि प्रारम्भ - सुबह 04 बजकर 18 मिनट से (09 अगस्त 2020)
षष्ठी तिथि समाप्त - अगले दिन सुबह 06 बजकर 42 मिनट तक (10 अगस्त 2020)
बलराम जयंती का महत्व
बलराम जयंती के दिन ही बलराम का जन्म द्वापर युग में हुआ था। इस युग में वह भगवान श्रीकृष्ण के बड़े भाई के रूप में जन्म लिए थे। भगवान बलराम विष्णुजी के 8वें अवतार माने गए हैं। शास्त्रों के अनुसार बलराम जी शेषनाग का ही अवतार है। उनके जन्म को हलषष्ठी और हरछठ के नाम से भी जाना जाता है। बलराम जी हल और मूसर धारण करते थे। यही कारण इस दिन हल और मूसर की पूजा की जाती है और और धरती से उगने वाले अन्न या साग-सब्जी को ही खाने के विधान है। बलराम जयंती के दिन दूध और दही से बनी चीजों का सेवन वर्जित माना जाता है। यह दिन संतान प्राप्ति के लिए भी बहुत उत्तम माना जाता है।
बलराम जयंती की पूजा विधि
- इस दिन मनुष्य को महूआ के दातून से अपने दांत साफ करने चाहिए और उसके बाद ही स्नान करना चाहिए।
- बलराम जयंती के दिन घर को भैंस के गोबर से लिपने का रिवाज है। कम से कम पूजा स्थल पर गोबर लेपन जरूर करें।
- बलराम जयंती के दिन भगवान गणेश और माता गौरी के साथ भगवान शिव की विधिवत पूजा करनी चाहिए।
- घर में पूजा के बाद तालाब के किनारे झरबेरी, पलाश और कांसी का पेड़ लगाने का भी रिवाज हैं। इसे महिलाएं लगती हैं। आप चाहें तो अपने घर के गमलों में भी इसे लगा सकते हैं।
- पूजा के बाद बलराम जयंती की कथा सुनना बहुत जरूरी है। इसके बाद भगवान गणेश और माता गौरी की आरती उतारी जाती हैं।
बलराम जयंती की कथा
एक ग्वालिन स्त्री गर्भवती थी। उसके प्रसव में कुछ ही समय बाकी था, लेकिन इसके बाद भी वह दूध और दही बेचने के लिए घर से निकल जाती थी। एक दिन जैसे ही वह घर से कुछ दूर गई उसे प्रसव पीड़ा शुरू हो गई। तब उस स्त्री ने एक झरबेरी की ओट में एक बच्चे को जन्म दिया। उस दिन हल षष्ठी थी। ग्वालनि पहले तो वहीं थोड़ा आराम किया उसके बाद मदद के लिए बच्चे को खेत में ही लिटा कर आगे बढ़ी। इस दौरान उसका हल षष्ठी का व्रत भी खंडित हो गया था। ग्वालिन झरबेरी के नीचे बच्चे को लिटा दी थी, तभी एक किसान खेत जोतते हुए वहां पहुंचा और किसान का हल बच्चे को लग गया।
किसान ने जब उस बच्चे का रोना सुना तो वह अत्यंत दुख हुआ और बच्चे को झरबेरी के कांटों से टांके लगाकर भाग गया। जब ग्वालिन वापस लौटी तो उसे अपने बच्चे मृत पाया। अपने बच्चे की अवस्था देखते ही उसे अपने पाप की याद आ गई और उसने तुरंत ही लोगों को जाकर पूरी बात बताई और अपने बच्चे की दशा के बारे में भी बताया। उसके इस प्रकार से क्षमा मांगने पर सभी गांव वालों ने उसे क्षमा कर दिया। जब ग्वालिन वापस उसी स्थान पर आई तो उसका बच्चा जिंदा था और वह खेल रहा था।