- मंगलवार के दिन प्रदोष व्रत आए तो उसे भौम प्रदोष व्रत कहते हैं
- ये दिन भोलेनाथ और हनुमान जी की पूजा को समर्पित है
- इस व्रत की पूजा शाम के समय की जाती है
जब कभी मंगलवार के दिन प्रदोष तिथि का संयोग बनता है तब उसे भौम प्रदोष व्रत कहते हैं। दरअसल मंगल ग्रह का एक दूसरा नाम भौम भी है, इस वजह से इस व्रत को भौम प्रदोष व्रत कहते हैं।
कब आता है प्रदोष व्रत
हर महीने की शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि के दिन प्रदोष व्रत पड़ता है अगर इस पक्ष के दिन मंगलवार या शनिवार पड़ जाए तो इस व्रत का महत्व और भी ज्यादा बढ़ जाता है। व्रत रखने वाले इस दिन भगवान शिव की सच्ची श्रद्धा से आराधना करते हैं।
इस व्रत के दिन की यह मान्यता है कि, इस प्रदोष काल में भगवान शिव अपने निवास स्थान कैलाश पर नृत्य करते हैं और सभी देवी देवता गण उनकी पूजा आराधना में लग जाते हैं। अगर यह व्रत मंगलवार के दिन पड़ता है और आप इस दिन पूरी श्रद्धा के साथ भगवान शिव और उनके अवतार हनुमान जी की पूजा करते हैं तो आपकी सभी आर्थिक समस्याएं दूर हो सकती हैं।
प्रदोष व्रत की पूजा विधि
इस दिन व्रत शुरू करने से पहले आपको सुबह जल्दी उठकर सभी नित्य क्रियाओं से निवृत्त होकर पूजा स्थान पर बैठ जाना है और भगवान शिव की आराधना करते हुए एक हाथ में पुष्प और जल लेकर इस प्रदोष व्रत का संकल्प लेना है। इसके बाद भगवान शिव की विधिवत तरीके से पूजा करें। इस व्रत के दौरान आपको पूरे दिन सिर्फ फलाहार ही ग्रहण करना है। शाम को पुनः स्नान करके साफ-सुथरे वस्त्र पहन कर प्रदोष मुहूर्त में भगवान शिव की विधिवत तरीके से पूजा-पाठ करनी चाहिए।
पूजा स्थान पर बैठने से पहले इस बात का पूरा ध्यान रखें कि आपका चेहरा पूरब दिशा की ओर हो। पूजा की चौकी पर भगवान शिव की प्रतिमा रखें अब प्रतिमा को गंगाजल से अभिषेक करें। भांग, धतूरा, सफेद चंदन, फल, फूल अक्षत, गाय का दूध, धूप आदि से भगवान शिव की पूजा करें। पूजा के हर सामग्री अर्पित करते समय ओम नमः शिवाय मंत्र का जाप जरूर करते रहें।
पूजा संपन्न होने के बाद लोगों में प्रसाद वितरण करें और भगवान से अपनी मनोकामनाओं को पूर्ण करने का निवेदन करें।
दिन में कब होता है प्रदोष काल
हमारे शास्त्रों में प्रदोष काल एक सीमित समयावधि को बताया गया है। यह समयावधि शाम के समय सूर्यास्त के बाद से लेकर रात्रि होने से पहले तक का समय होता है। मुख्य था यह एक से डेढ़ घंटे के बीच का होता है।
15 सितंबर को प्रदोष व्रत पूजा का शुभ मुहूर्त
इस बार के भौम प्रदोष व्रत का शुभ मुहूर्त शाम के 6:26 से 7:36 तक का है।
प्रदोष व्रत की पौराणिक कथा
एक नगर में एक बूढ़ी औरत रहती थी, वह हनुमान जी की परम भक्त थी। हर मंगलवार वह हनुमान जी का विधि पूर्वक व्रत रहकर पूजा पाठ करती थी। उस बूढ़ी औरत का केवल एक ही पुत्र था। एक दिन हनुमान जी ने उस वृद्धा की परीक्षा लेनी चाही। हनुमान जी ने एक साधु का वेश धारण किया और उस बूढ़ी औरत के घर पहुंचकर उसे पुकारने लगे। जब वह वृद्धा घर के बाहर आई, उसने देखा साधु के वेश में कोई व्यक्ति उसके दरवाजे पर खड़ा है। बूढ़ी महिला ने कहा, आज्ञा दीजिए महाराज मैं आपके लिए क्या कर सकती हूं?
हनुमान जी बोले, मुझे भूख लगी है, मैं भोजन करना चाहता हूं, तुम थोड़ी सी जमीन लीप दो। वह औरत बहुत ज्यादा बूढ़ी थी उसने हाथ जोड़कर साधु से कहा आप मिट्टी खोदने और जमीन लीपने के अलावा मुझसे जो भी कहेंगे मैं कर दूंगी क्योंकि यह काम अब मैं नहीं कर पाऊंगी। साधु के वेश में हनुमान जी ने फिर उससे कहा, ठीक है तो अपने बेटे को बाहर बुला मैं उसकी पीठ पर आग लगाकर भोजन बना लूंगा। यह सुनकर वह बूढ़ी औरत घबरा गई लेकिन वह उस साधु के प्रति प्रतिबद्ध थी इसलिए उसने अपने बेटे को उस साधु को सौंप दिया।
साधु उस बूढ़ी औरत के बेटे को पेट के बल लिटा कर उसकी पीठ पर आग जलाकर भोजन पकाने लगा। यह सब देखकर वह बूढ़ी औरत बहुत दुखी हो गई और घर के अंदर चली गई। जब भोजन बन गया तब साधु ने बूढ़ी औरत को फिर से आवाज लगाया और कहा मेरा खाना बन चुका है अब आप अपने बेटे को भी आवाज लगाइए ताकि वह भी आकर हमारे साथ भोजन कर सके।
साधु की यह बात सुनकर बूढ़ी औरत ने कहा कृपया मेरे बेटे की याद दिला कर मुझे और ज्यादा दुखी ना करें। लेकिन साधु के बार-बार कहने पर बूढ़ी औरत ने अपने बेटे को आवाज लगाई, आवाज सुनते ही उसका बेटा जीवित हो उठा। जिसे देखकर उसकी बूढ़ी मां बहुत ज्यादा खुश हो गई और इसी दिन से भौम प्रदोष व्रत का महत्व पूरी सृष्टि पर माना जाने लगा।
भौम प्रदोष व्रत आरती
जय शिव ओंकारा ॐ जय शिव ओंकारा ।
ब्रह्मा विष्णु सदा शिव अर्द्धांगी धारा ॥ ॐ जय शिव...॥
एकानन चतुरानन पंचानन राजे ।
हंसानन गरुड़ासन वृषवाहन साजे ॥ ॐ जय शिव...॥
दो भुज चार चतुर्भुज दस भुज अति सोहे।
त्रिगुण रूपनिरखता त्रिभुवन जन मोहे ॥ ॐ जय शिव...॥
अक्षमाला बनमाला रुण्डमाला धारी ।
चंदन मृगमद सोहै भाले शशिधारी ॥ ॐ जय शिव...॥
श्वेताम्बर पीताम्बर बाघम्बर अंगे ।
सनकादिक गरुणादिक भूतादिक संगे ॥ ॐ जय शिव...॥
कर के मध्य कमंडलु चक्र त्रिशूल धर्ता ।
जगकर्ता जगभर्ता जगसंहारकर्ता ॥ ॐ जय शिव...॥
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका ।
प्रणवाक्षर मध्ये ये तीनों एका ॥ ॐ जय शिव...॥
काशी में विश्वनाथ विराजत नन्दी ब्रह्मचारी ।
नित उठि भोग लगावत महिमा अति भारी ॥ ॐ जय शिव...॥
त्रिगुण शिवजीकी आरती जो कोई नर गावे ।
कहत शिवानन्द स्वामी मनवांछित फल पावे ॥ ॐ जय शिव...॥
प्रदोष व्रत की पूजा के बाद इस आरती को जरूर पढ़ें। इसके बाद ही प्रदोष व्रत का समापन माना गया है।