- वैशाख मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को एकदंत संकष्टी चतुर्थी के नाम से जाना जाता है।
- यह दिन भगवान गणेश को समर्पित है और इस दिन भगवान गणेश की पूजा करने से विशेष फल प्राप्त होता है।
- एकदंत संकष्टी चतुर्थी पर भगवान गणेश की कथा पढ़नज या सुनने का अत्यधिक महत्व है।
हिंदू धर्म में भगवान श्री गणेश की पूजा का अत्यधिक महत्व है। खासतौर से संकष्टी चतुर्थी पर भगवान श्री गणेश का विधि विधान पूर्वक पूजा की जाती है जिससे परिवार में सुख और समृद्धि आती है। हर महीने में दो गणेश चतुर्थी पड़ते हैं एक शुक्ल पक्ष में और दूसरा कृष्ण पक्ष में हालांकि इन दोनों गणेश चतुर्थी के नाम अलग-अलग हैं शुक्ल पक्ष में पड़ने वाली गणेश चतुर्थी को विनायक गणेश चतुर्थी कहते हैं जबकि कृष्ण पक्ष में पड़ने वाली गणेश चतुर्थी को संकष्टि गणेश चतुर्थी कहते हैं।
हिंदू धर्म के मान्यताओं के अनुसार गणेश चतुर्थी के दिन भगवान श्री गणेश की पूरी श्रद्धा से पूजा करने पर घर में शांति वास करती है और अगर इस दिन कोई भक्त सच्ची श्रद्धा और पूरे मन से भगवान श्री गणेश की पूजा अर्चना करे तो उसकी हर मनोकामना पूरी होती है। वैशाख मास के कृष्ण पक्ष में पड़ने वाली संकष्टी चतुर्थी को एकदंत संकष्टी चतुर्थी कहा जाता है। इस बार एकदंत संकष्टी चतुर्थी 29 मई यानी आज पड़ रही है। एकदंत संकष्टी चतुर्थी पर भगवान गणेश की कथा पढ़ना तथा सुनना बेहद लाभदायक माना जाता है।
एकदंत संकष्टी चतुर्थी की पौराणिक कथा
कहते हैं एक बार भगवान शंकर और माता पार्वती नर्मदा नदी के किनारे चौपड़ खेल रहे थे। लेकिन उनके सामने एक समस्या थी कि इस खेल में जीत और हार का फैसला कौन करेगा। तब माता पार्वती ने निर्णय लिया कि वह घास के तिनके से एक पुतला बनाएंगी और उसमें जान डाल देंगी और वही पुतला फैसला करेगा की चौपड़ के खेल में कौन विजई हुआ। खेल शुरू हो गया और लगातार तीन बार माता पार्वती जीत गईं। लेकिन जब उस पुतले से से माता पार्वती ने पूछा कि बताओ पुत्र इस खेल में किसकी विजय हुई तो उसने कहा भगवान शंकर की विजय हुई।
माता पार्वती को आया गुस्सा
यह सुनते ही माता पार्वती क्रोधित हो गईं और उन्होंने उस घास के पुतले को श्राप दिया कि तुम्हें इस नदी के किनारे कीचड़ में लंगड़ा होकर श्राप भुगतना होगा। माता पार्वती का क्रोध देखकर वह घास का पुतला भयभीत हो गया और उसने माता के सामने हाथ जोड़कर प्रार्थना किया कि उसे क्षमा कर दिया जाए। बाद में माता पार्वती को घास के पुतले पर दया आ गई और उन्होंने उस पुतले को इस श्राप से निजात पाने का उपाय बताया। माता पार्वती ने कहा कि यहां कुछ नागकन्या गणेश पूजा के लिए आएंगे तुम्हें उनका उपदेश सुनना है जिसके बाद तुम इस शाप से मुक्त हो जाओगे। इतना कहकर माता पार्वती और भगवान शिव कैलाश की ओर लौट गए।
ऐसे हुआ बालक का श्राप दूर
करीब एक साल बाद जब वहां नाग कन्याएं आई तब उन्होंने उस बालक को गणेश पूजन की विधि बताई और चली गईं। विधि जानने के बाद उस बालक ने लगातार व्रत किया और गणेश जी की पूजा की। उसकी भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान गणेश ने उस बालक को वर दिया। उस बालक ने भगवान शिव और माता पार्वती से कैलाश पर भेट करने का मांगा जिसे भगवान गणेश मान गए। वह बालक कैलाश की तरफ प्रस्थान कर गया और भगवान शिव और माता पार्वती के दर्शन किया।
भगवान शिव को भी मिला गणेश पूजा का फल
बालक ने भगवान शिव से इस व्रत के बारे में बताया जिसे भगवान शिव ने भी पूरा किया। यह व्रत करने के बाद भगवान शिव से माता पार्वती की जो नराजगी थी वह दूर हो गई थी।