- होली का त्यौहार देशभर में 29 मार्च को मनाया जाएगा
- होलिका दहन एक दिन पहले यानी 28 मार्च को है
- होली मनाए जाने की कथा भगवान नरसिंह अवतार से जुड़ी हैं
नई दिल्ली: हमारे देश में होली का त्यौहार एक अद्भुत त्यौहार के रूप में शुमार होता है। रंगों का यह त्यौहार प्रेम,स्नेह और भाईचारे का संदेश देता है। यह पर्व इस बात पर जोर देता है कि हमारे जीवन में खुशियों के रंगों का महत्व है और मित्रता,भाईचारे और प्रेम का रंग सबसे बड़ा होता है ।
इसलिए इस दिन आपसी वैरभाव,मतभेद भुलाकर सभी लोग होली खेलते हैं और एक दूसरे को रंग लगाते हैं। होली के पावन पर्व यानी रंगों का उत्सव होली, शरद ऋतु के समापन का और वसंत ऋतु के आगमन का संदेश देता है।
कब है होली?
कब है होलिका दहन यानी छोटो होली?
होलिका दहन का शुभ मुहूर्त
होलिका पूजन सामग्री
होली पर्व के पीछे पौराणिक मान्यता?
ब्रज में 40 दिनों की होती है होली
लठ्टमार होली की परंपरा
2021 में होली 29 मार्च को मनाई जाएगी। इस पर्व को को फाल्गुन मास की पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। होली से एक दिन पहले छोटी होली मनाई जाती है जिसे होलिका दहन भी कहा जाता है। इस दिन होलिका दहन का पूजन होता है। होलिका दहन होली का आगाज माना जाता है और इसके ठीक अगले दिन होली का पर्व धूमधाम से मनाया जाता है। चैत्र मास के कृष्ण पक्ष के प्रतिपदा तिथि को होली का त्योहार धूमधाम से मनाया जाता है।
कब है होलिका दहन यानी छोटो होली?
होलिका दहन जिसे छोटी होली भी कहा जाता है वह होली से एक दिन पहले मनाई जाती है। होलिका दहन इस बार 28 मार्च को है जबकि होली 29 मार्च को मनाया जाएगा। होलिका दहन में कांटेदार झाड़ियों या सूखी लकड़ियों को इकट्ठा कर शुभ मुहूर्त में होलिका दहन किया जाता है। होलिका दहन से पहले पूजा किए जाने की परंपरा भी है।
28 मार्च की सायंकाल 06 बजकर 38 मिनट से रात्रि 08 बजकर 58 मिनट तक है।
होलाष्टक क्या होता है?
होलाष्टक यानी होली का अष्टक। यह आठ दिनों की अवधि होली से ठीक आठ दिन पहले शुरू होती है और इस बार यह पंचांग के मुताबिक 21 मार्च को शुरू हो रही है। हिंदू धर्म होलाष्टक का विशेष महत्व बताया गया है। खरमास की तरह होलाष्टक में भी शुभ और मंगलकारी कार्य वर्जित होते हैं और जिन्हें करने की मनाही होती है। पंचांग के मुताबिक होलाष्टक 21 मार्च से शुरू होगा जो 28 मार्च को होलिका दहन के साथ खत्म होगा। यह अवधि कुल आठ दिनों की होती है जिससे होली से सीधा जुड़ाव होता है इसलिए इसे होलाष्टक कहा जाता है।
होली पर होलिका पूजन की परंपरा सदियों से चली आ रही है और ऐसा माना जाता है कि होलिका पूजन कई प्रकार की बाधाओं को दूर कर जीवन में सुख समृद्धि लाती है। होलिका पूजन में गाय के गोबर से होलिका और प्रहलाद की प्रतिमाएं बनाते हैं। फूलों की माला, रोली, मूंग, मीठे बताशे, फूल, कच्चा सूत, हल्दी,गुलाल, रंग, गेंहू की बालियां,सात प्रकार के अनाज,होली पर बनने वाले पकवान, मिठाइयों आदि के साथ होलिका दहन की पूजा की जाती है।
होली पर्व के पीछे पौराणिक मान्यता?
पौराणिक मान्यता के मुताबिक होली के दिन ही स्वयं को ही भगवान मान बैठे हिरण्यकश्युप ने भगवान की भक्ति में लीन अपने ही बेटे प्रह्लाद को बहन होलिका की गोद में बिठाकर जिंदा जलाना चाहता था । लेकिन भगवान ने भक्त प्रह्लाद पर कृपा की और प्रह्लाद के लिए बनाई गई चिता में होलिका जलकर भस्म हो गई हालांकि उसे अग्नि में नहीं जलने का वरदान हासिल था। प्रह्लाद भगवान की भक्ति करते हुए सुरक्षित अग्नि से बाहर निकल आया। उसके बाद से हर साल उसी तिथि को होलिका दहन किया जाता है। होलिका दहन के अगले दिन रंगों से होली खेली जाती है, इसलिए इसे रंगवाली होली और दुलहंडी भी कहते हैं।
ब्रज में 40 दिनों की होती है होली
ब्रज में होली का रंगारंग आयोजन 40 दिन पहले यानि बसंत पंचमी से शुरु होता है। दुनियाभर से लोग ब्रज में होली का आनंद लेने आते हैं। चालीस दिनों तक चलने वाले होली पर्व की शुरुआत भगवान कृष्ण की नगरी मथुरा वृंदावन में हो चुकी है । यहां होली पर्व की शुरुआत होली से 40 दिन पहले यानि सरस्वती पूजन यानी बसंत पंचमी से शुरु हो जाती है। ऐसी पौराणिक मान्यता है कि वसंत पंचमी यानि सरस्वती पूजन के दिन भगवान श्रीकृष्ण अपने भक्तों संग वृंदावन में होली खेलते हैं। ब्रज में इस दिन मंदिरो में ठाकुरजी यानी भगवान कृष्ण को गुलाल अर्पण कर भक्तों पर भी प्रसाद के रूप में गुलाल डाला जाता है।
ब्रज में होली महोत्सव का आनंद लेने के लिए देश दुनिया के श्रद्धालु आते हैं। यहां रमणरेती आश्रम में फूलो और गुलाल की होली होती है। इसमें टेसू के फूलों और गुलाल से होली खेली जाती है। कान्हा के भक्तों के लिए यह मौका अद्भुत होता है जिसका वह पूरा लुत्फ उठाना चाहते हैं। मथुरा के बरसाना में लड्डू होली बड़े धूमधाम से मनाई जाती है। यह बरसाना की दुनिया भर में मशहूर लठ्ठमार होली से एक दिन पहले मनाई जाती है। इस दिन बरसाना में लड्डू मार होली खेली जाती है । मथुरा में फाल्गुन मास की शुक्ल पक्ष की नवमी के दिन लठ्टमार होली खेली जाती है।
पौराणिक मान्यताओं में लठ्ठमार होली खेलने की शुरुआत भगवान श्रीकृष्ण और राधा रानी के समय से शुरु हुई है। मान्यता है कि भगवान श्रीकृष्ण अपने सखाओं के साथ बरसाने होली खेलने के लिए जाया करते थे, भगवान श्रीकृष्ण और उनके सखा यहां सखियों के साथ ठिठोली किया करते थे जिससे गुस्सा होकर सखियां ग्वालों पर डंडे बरसाया करती थी तभी से इसका नाम लट्ठमार होली पड़ा।