- अक्षय तृतीया वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया को मनाई जाती है
- इस दिन मां लक्ष्मी और भगवान विष्णु की अराधना की जाती है
- इस बार अक्षय तृतीया 14 मई को मनाया जाएगा
akshaya tritiya lakshmi puja: अक्षय तृतीया हर साल वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया को मनाई जाती है। अक्षय तृतीया का व्रत अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। भगवान विष्णु की आराधना के लिए वैशाख माह में यह दिन बेहद खास होता है। पौराणिक ग्रंथों ने इसकी काफी महिमा गाई है और इस दिन मां लक्ष्मी की पूजा सर्वथा कल्याणकारी बताई जाती है। इस बार अक्षय तृतीया 14 मई को मनाया जाएगा।
विष्णु पुराण के अनुसार भगवान विष्णु का प्रिय महीना वैशाख माह होता है और इस महीने में भगवान विष्णु की पूजा करना बेहद लाभदायक और सर्वाथ सिद्धिदायक माना जाता है। अक्षय तृतीया पर भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा करना बेहद मंगलकारी होता है।
पूजन से आती है घर में खुशहाली
गौर हो कि अक्षय तृतीया पर भगवान विष्णु की पूजा करने से सभी पाप नाश होते हैं और जीवन में सुख-समृद्धि बढ़ती है। अक्षय तृतीया पर भगवान परशुराम का भी जन्म हुआ था इसीलिए यह दिन भगवान परशुराम के जन्मोत्सव के रूप में भी मनाया जाता है। अक्षय तृतीया पर लोग सोने-चांदी की वस्तुएं खरीदते हैं। इस दिन मां लक्ष्मी की पूजा का विशेष महत्व होता है और पूजा करने से मां लक्ष्मी की अक्षय कृपा हासिल होती है।
अक्षय तृतीया की तिथि, शुभ मुहूर्त और महत्व।
अक्षय तृतीया तिथि और शुभ मुहूर्त (Akshaya Tritiya Tithi and Shubh Muhurat)
अक्षय तृतीया तिथि: - 14 मई 2021, शुक्रवार
तृतीया तिथि आरंभ: - 14 मई 2021 (सुबह 05:38)
तृतीया तिथि समाप्त: - 15 मई 2021 (सुबह 07:59)
अक्षय तृतीया पूजा मुहूर्त: - सुबह 05:38 से लेकर दोपहर 12:18
अक्षय तृतीया पर कैसे करें पूजा ?
- सबसे पहले स्नान करके आसन पर बैठ जाए। आसन लाल रंग को हो तो उत्तम है।
- एक पीतल के लोटे में गंगाजल मिला हुआ पानी रख लें।
- लक्ष्मी जी की मूर्ति या फोटो के आगे बैठ कर किसी एक मंत्र का जाप या एक-एक माला कर सकते हैं।
- ओम् श्रीं श्रियै नमः !!
- हृीं ऐश्वर्य श्रीं धन धान्याधिपत्यै ऐं पूर्णत्व लक्ष्मी सिद्धयै नमः!
- ॐ आध्य लक्ष्म्यै नम:
- ॐ विद्या लक्ष्म्यै नम:
- ॐ सौभाग्य लक्ष्म्यै नम:
- ॐ अमृत लक्ष्म्यै नम:
- ॐ पहिनी पक्षनेत्री पक्षमना लक्ष्मी दाहिनी वाच्छा भूत-प्रेत सर्वशत्रु हारिणी दर्जन मोहिनी रिद्धि सिद्धि कुरु-कुरु-स्वाहा।
- अब आप लक्षमी जी को पान का पत्ता,कमल का फूल, पांच सुपारी अर्पित करें।
- अब आप एक घी का दीया जलाकर मां लक्ष्मी जी का ध्यान करें।
- अब आप ध्यान करते हुए मां लक्ष्मी से प्रार्थना करें।
इसके बाद आप लक्ष्मी चालीसा का पाठ करें।
मां लक्ष्मी चालीसा
दोहा
मातु लक्ष्मी करि कृपा करो हृदय में वास।
मनोकामना सिद्ध कर पुरवहु मेरी आस॥
सिंधु सुता विष्णुप्रिये नत शिर बारंबार।
ऋद्धि सिद्धि मंगलप्रदे नत शिर बारंबार॥ टेक॥
सोरठा
यही मोर अरदास, हाथ जोड़ विनती करूं।
सब विधि करौ सुवास, जय जननि जगदंबिका॥
॥ चौपाई ॥
सिन्धु सुता मैं सुमिरौं तोही। ज्ञान बुद्धि विद्या दो मोहि॥
तुम समान नहिं कोई उपकारी। सब विधि पुरबहु आस हमारी॥
जै जै जगत जननि जगदम्बा। सबके तुमही हो स्वलम्बा॥
तुम ही हो घट घट के वासी। विनती यही हमारी खासी॥
जग जननी जय सिन्धु कुमारी। दीनन की तुम हो हितकारी॥
विनवौं नित्य तुमहिं महारानी। कृपा करौ जग जननि भवानी।
केहि विधि स्तुति करौं तिहारी। सुधि लीजै अपराध बिसारी॥
कृपा दृष्टि चितवो मम ओरी। जगत जननि विनती सुन मोरी॥
ज्ञान बुद्धि जय सुख की दाता। संकट हरो हमारी माता॥
क्षीर सिंधु जब विष्णु मथायो। चौदह रत्न सिंधु में पायो॥
चौदह रत्न में तुम सुखरासी। सेवा कियो प्रभुहिं बनि दासी॥
जब जब जन्म जहां प्रभु लीन्हा। रूप बदल तहं सेवा कीन्हा॥
स्वयं विष्णु जब नर तनु धारा। लीन्हेउ अवधपुरी अवतारा॥
तब तुम प्रकट जनकपुर माहीं। सेवा कियो हृदय पुलकाहीं॥
अपनायो तोहि अन्तर्यामी। विश्व विदित त्रिभुवन की स्वामी॥
तुम सब प्रबल शक्ति नहिं आनी। कहं तक महिमा कहौं बखानी॥
मन क्रम वचन करै सेवकाई। मन- इच्छित वांछित फल पाई॥
तजि छल कपट और चतुराई। पूजहिं विविध भांति मन लाई॥
और हाल मैं कहौं बुझाई। जो यह पाठ करे मन लाई॥
ताको कोई कष्ट न होई। मन इच्छित फल पावै फल सोई॥
त्राहि- त्राहि जय दुःख निवारिणी। त्रिविध ताप भव बंधन हारिणि॥
जो यह चालीसा पढ़े और पढ़ावे। इसे ध्यान लगाकर सुने सुनावै॥
ताको कोई न रोग सतावै। पुत्र आदि धन सम्पत्ति पावै।
पुत्र हीन और सम्पत्ति हीना। अन्धा बधिर कोढ़ी अति दीना॥
विप्र बोलाय कै पाठ करावै। शंका दिल में कभी न लावै॥
पाठ करावै दिन चालीसा। ता पर कृपा करैं गौरीसा॥
सुख सम्पत्ति बहुत सी पावै। कमी नहीं काहू की आवै॥
बारह मास करै जो पूजा। तेहि सम धन्य और नहिं दूजा॥
प्रतिदिन पाठ करै मन माहीं। उन सम कोई जग में नाहिं॥
बहु विधि क्या मैं करौं बड़ाई। लेय परीक्षा ध्यान लगाई॥
करि विश्वास करैं व्रत नेमा। होय सिद्ध उपजै उर प्रेमा॥
जय जय जय लक्ष्मी महारानी। सब में व्यापित जो गुण खानी॥
तुम्हरो तेज प्रबल जग माहीं। तुम सम कोउ दयाल कहूं नाहीं॥
मोहि अनाथ की सुधि अब लीजै। संकट काटि भक्ति मोहि दीजे॥
भूल चूक करी क्षमा हमारी। दर्शन दीजै दशा निहारी॥
बिन दरशन व्याकुल अधिकारी। तुमहिं अक्षत दुःख सहते भारी॥
नहिं मोहिं ज्ञान बुद्धि है तन में। सब जानत हो अपने मन में॥
रूप चतुर्भुज करके धारण। कष्ट मोर अब करहु निवारण॥
कहि प्रकार मैं करौं बड़ाई। ज्ञान बुद्धि मोहिं नहिं अधिकाई॥
रामदास अब कहाई पुकारी। करो दूर तुम विपति हमारी॥
दोहा
त्राहि त्राहि दुःख हारिणी हरो बेगि सब त्रास।
जयति जयति जय लक्ष्मी करो शत्रुन का नाश॥
रामदास धरि ध्यान नित विनय करत कर जोर।
मातु लक्ष्मी दास पर करहु दया की कोर॥
और अंत में मां मां लक्ष्मी की परिवार सहित आरती करें।
मां लक्ष्मी की आरती
मां लक्ष्मी की आरती
मां लक्ष्मी की आरती
ॐ जय लक्ष्मी माता,
मैया जय लक्ष्मी माता ।
तुमको निसदिन सेवत,
हर विष्णु विधाता ॥
उमा, रमा, ब्रम्हाणी,
तुम ही जग माता ।
सूर्य चद्रंमा ध्यावत,
नारद ऋषि गाता ॥
॥ॐ जय लक्ष्मी माता...॥
दुर्गा रूप निरंजनि,
सुख-संपत्ति दाता ।
जो कोई तुमको ध्याता,
ऋद्धि-सिद्धि धन पाता ॥
॥ॐ जय लक्ष्मी माता...॥
तुम ही पाताल निवासनी,
तुम ही शुभदाता ।
कर्म-प्रभाव-प्रकाशनी,
भव निधि की त्राता ॥
॥ॐ जय लक्ष्मी माता...॥
जिस घर तुम रहती हो,
ताँहि में हैं सद्गुण आता ।
सब सभंव हो जाता,
मन नहीं घबराता ॥
॥ॐ जय लक्ष्मी माता...॥
तुम बिन यज्ञ ना होता,
वस्त्र न कोई पाता ।
खान पान का वैभव,
सब तुमसे आता ॥
॥ॐ जय लक्ष्मी माता...॥
शुभ गुण मंदिर सुंदर,
क्षीरोदधि जाता ।
रत्न चतुर्दश तुम बिन,
कोई नहीं पाता ॥
॥ॐ जय लक्ष्मी माता...॥
महालक्ष्मी जी की आरती,
जो कोई नर गाता ।
उँर आंनद समाता,
पाप उतर जाता ॥
॥ॐ जय लक्ष्मी माता...॥