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करवा चौथ व्रत कथा: पूजा के बाद पढ़ें करवा माता की यह कथा, वरना नहीं मिलेगा व्रत का पूरा फल

Updated Oct 17, 2019 | 09:02 IST | टाइम्स नाउ डिजिटल

Karva Chauth vrat Katha: करवा चौथ (Karwa Chautha) की पूजा (Pooja) के बाद सामूहिक रूप से व्रत कि कथा (Vrat Katha) भी सुनना चाहिए। व्रत तभी पूर्ण होता है जब इस कथा को सुना लिया जाए।

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तस्वीर साभार:&nbspInstagram
Karwa Chauth
मुख्य बातें
  • करवा चौथ की कथा सुनने के बाद ही पूरी होता है व्रत
  • साहूकार के बेटे ने बहन को भूखा देख, नकली चांद बनाया था
  • व्रत खंडित होने से गणपति भगवान हो गए थे नाराज

पति की लंबी आयु के लिए रखे जाने वाले निर्जला व्रत की पूजा जिस तरह महत्वपूर्ण होती है वैसे ही पूजा के बाद कथा सुनना भी बहुत आवश्यक होता है। माना जाता है कि कथा न सुनने से व्रत पूर्ण नहीं होता। शाम के समय जब विवाहिताएं एक दूसरे के साथ बैठ कर पूजा करती हैं, उसके बाद थाल घुमाई जाती है। थाल घुमाने के बाद ही कथा सुनना चाहिए।

कोई भी विवाहित महिला करवाचौथ के कथा का पाठ करती है और बाकि विवाहिताएं इस कथा को ध्यान से सुनती है। कथा में व्रत के महत्व को बताया गया है और यह भी बताया गया है कि यदि व्रत खंडित हो जाता है तो उससे क्या नुकसान होता है। तो आइए जाने करवा चौथ व्रत कथा के बारे में।

बहन प्रेम में नकली चांद बना दिया था भाइयों ने
एक साहूकार के सात लड़के और एक लड़की थी। साहूकार अपनी बहन को बहुत प्यार करते थे। कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को सेठ सातों लड़कों की पत्नियों और उसकी बेटी ने अपने पति के लिए करवा चौथ का निर्जला व्रत रखा। साहूकार के बेटे जब रात में भोजन करने बैठे तो सबने अपनी बहन को भी खाने को कहा लेकिन बहन वीरावती ने बताया कि वह चांद निकलने तक नहीं खा सकती है। बहन को भूख से बेहाल देख साहूकार के बेटों ने एक अग्नि जला कर नकली चांद पेड़ पर दिखा दिया। बहन ने सोचा चांद निकल आया और वह चांद को अर्घ्य देकर भोजन करने बैठी,लेकिन भाभियों ने उसे बताया कि चांद नहीं निकला है। उनके भाई नकली चांद अग्नि से बना कर उसे दिखा रहे हैं, लेकिन वह उनकी बात नहीं मानी और खाने के लिए बैठ गई।

निवाले भी दे रहे थे वीरावती को संकेत
व्रत पूरा होने से पहले ही अन्न ग्रहण करने बैठने से विघ्नहर्ता भगवान श्री गणेश साहूकार की लड़की पर अप्रसन्न हो गए। वीरावती जब भोजन करने बैठी तो उसे उसी समय कुछ न कुछ अशुभ संकेत मिलने लगे। पहले कौर में उसे बाल मिला, दमसरें में उसे छींक आ गई और तीसरे कौर को जब खाने गई तो उसे सूचना मिली की उसका पति अचानक से मृत्यु को प्राप्त हो गया।

विलाप सुन देवी इंद्राणी सांत्वना देने पहुंची
अपने पति के मृत शरीर को देखकर वीरावती का विलाप इतना तेज हुआ कि वह तीनों लोको तक पहुंच गया। अपनी इस भूल के लिए वह खुद को दोषी मानने लगी। वीरावती का विलाप सुनकर इन्द्र की पत्नी है इंद्राणी भी वीरावती को सान्त्वना देने के लिए पहुँची और बताया कि उसके पति की मृत्यु क्यों हुई। वीरावती पति को जीवित करने की वह देवी इन्द्राणी से विनती करने लगी। वीरावती का दुःख देखकर देवी इन्द्राणी ने उससे कहा कि चन्द्रमा को अर्घ्य दिए बिना उसने व्रत तोड़ दिया था इसलिए वह हर माह की चौथ पर ये व्रत करे और करवाचौथ पर व्रत को पूर्ण करें। वीरावती ने ऐसा ही किया और उसे उसका पति फिर से जीवित मिल गया।

यदि कोई मनुष्य छल-कपट, अहंकार, लोभ, लालच को त्याग कर श्रद्धा और भक्तिभाव से चतुर्थी का व्रत करता है तो उसे जीवन में सभी प्रकार के दुखों से मुक्ति मिल जाती है और जीवन सुखमय हो जाता है।

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