- शुक्ल पक्ष की अंतिम तिथि को पूर्णिमा होता है
- कृष्ण पक्ष की अंतिम तिथि को अमावस्या पड़ती है
- एक वर्ष के हिंदू कैलेंडर में अमूमन 12 पूर्णिमा और 12 अमवस्या पड़ती है
नई दिल्ली: हिंदू नववर्ष में अमावस्या और पूर्णिमा दोनों का ही अलग महत्व हैं और दोनों हिंदू कैलेंडर के अलग-अलग पक्ष से जुड़े हैं। शुक्ल पक्ष के 15वें दिन पूर्णिमा होती है तो उसके बाद कृष्ण पक्ष की शुरुआत होती है और इसमें ठीक 15वें दिन अमावस्या होती है। हिन्दू पंचांग के अनुसार महीने के 30 दिन को चन्द्र कला के आधार पर 15-15 दिनों के दो पक्ष में बांटा गया है, जो शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष कहलाते हैं।
शुक्ल पक्ष (उजाला) के अंतिम दिन यानी 15वें दिन को पूर्णिमा कहते हैं और कृष्ण पक्ष (काला) के अंतिम दिन को अमावस्या कहा जाता है। यानी साल में 12 पूर्णिमा और 12 अमावस्या पड़ते है। शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा के बाद हिंदू कैलेंडर का महीना बदल जाता है। कभी-कभार यह संख्या तिथि और कैलेंडर के मुताबिक बढ़ भी जाती है।
पूर्णिमा और अमावस्या के बीच मूल अंतर यह है कि पूर्णिमा को शुभ माना जाता है जबकि अमावस्या को अशुभ माना जाता है। पूर्णिमा पर ध्यान,पूजा-पाठ करने की सलाह दी जाती है जबकि अमावस्या को तंत्र मंत्र के लिए बेहतर रात माना जाता है क्योंकि इस दिन आसुरी शक्तियां प्रबल होती है। गौर हो कि 24 जून को ज्येष्ठ पूर्णिमा है जिसे जेठ पूर्णिमा भी कहते हैं।
पूर्णिमा और अमावस्या दोनों अलग-अलग पक्ष में आते हैं। शुक्ल पक्ष के 15वें दिन पूर्णिमा होता है और इसके बाद हिंदू कैलेंडर का महीना बदल जाता है। दूसरी तरफ कृष्ण पक्ष की अंतिम यानी 15वीं तिथि अमावस्या के रूप में जानी जाती है। वर्ष में 12 पूर्णिमा और 12 अमावस्या होती हैं। सभी का अलग-अलग महत्व है।
एक साल में 12 पूर्णिमा और 12 अमावस्या होती है। हर महीने में एक पूर्णिमा और एक अमावस्या होती है। पूर्णमा में चंद्रमा का उदय होता है तो अमावस्या में अस्त होता है यानी इस दिन चांद दिखाई नहीं देता है। पूर्णिमा वह दिन होता है जब देश में कई महत्वपूर्ण त्योहार मनाए जाते हैं, जैसे गुरु पूर्णिमा, कार्तिक पूर्णिमा, बुद्ध पूर्णिमा आदि। बहुत से लोग इस पवित्र दिन पर पूर्णिमा व्रत रखते हैं और साथ ही सूर्योदय से पहले पवित्र नदी गंगा में स्नान भी करते हैं।
पूर्णिमा और चंद्रमा का क्या संबंध है?
किसी भी कार्य, व्यवसाय आदि को शुरू करने के लिए पूर्णिमा के दिन को बहुत शुभ माना जाता है। शुक्ल पक्ष में पूर्णिमा होती है जो शुभ कार्यों और उपासना के लिए उत्तम मानी जाती है। दूसरी तरफ कृष्ण पक्ष जिसे काला पक्ष भी कहते हैं और किसी भी शुभ कार्यों को करने से उसमें बचने की सलाह दी जाती है। ज्योतिष में चन्द्र को मन का देवता माना गया है क्योंकि शास्त्रों के मुताबिक चंद्रमा को मन का मालिक माना जाता है जो उसे नियंत्रित करता है। अमावस्या के दिन चन्द्रमा दिखाई नहीं देता।
अमावस्या के दिन सूर्य और चंद्रमा एक राशि में होते हैं। चंद्रमा इस समय अस्त होता है। क्योंकि यह कृष्ण पक्ष में आता है इसलिए अमावस्या को काली रात भी कहते हैं। शुभ कार्यों को करने से इसमें बचते है और उसकी शुरुआत नहीं करते हैं। इस दौरान तांत्रिक लोग तांत्रिक क्रियाएं भी करती है। पित्तरों की पूजा के लिए भी अमावस्या को उत्तम माना गया है। अमावस्या के दिन नदी में स्नान कर दान-पुण्य और पितृ तर्पण करना लाभकारी माना जाता है।
अमावस्या को काली रात क्यों कहा जाता है?
पूर्णिमा शुभ तत्वों और गुणों से युक्त होती है और अमावस्या का संदर्भ काली रात से होता है जो नाकारात्मक और आसुरी शक्तियों के प्रबल होने का द्योतक है। आध्यात्मिक गुरु सदगुरु के मुताबिक ध्यान करने वाले व्यक्ति के लिए पूर्णिमा बेहतर होती है। मगर अमावस्या कुछ खास अनुष्ठान और प्रक्रियाएं करने के लिए अच्छा है। ऐसा कहा जाता है कि अमावस्या की रात ऊर्जा उग्र हो जाती है। किसी मदमस्त हाथी की तरह आपकी ऊर्जा बेकाबू हो जाती है। इसीलिए तांत्रिक लोग अमावस्या की रातों का इस्तेमाल करते हैं।
अमावस्या की रात ऐसी मान्यता है कि आसुरी और नाकारात्मक शक्तियां ज्यादा प्रबल होती है। अमावस्या की ऊर्जा अधिक बुनियादी होती है। अमावस्या की प्रकृति अधिक स्थूल और अधिक शक्तिशाली होती है। पूर्णिमा की रातों में सौम्यता का गुण होता है। पूर्णिमा की प्रकृति सूक्ष्म होती है जो शीतलता और सौम्यता का प्रतीक होती है।