- शरद पूर्णिमा का चांद देखना शुभ माना जाता है
- आश्विन माह के शुक्लपक्ष की पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा कहा जाता है
- पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक मां लक्ष्मी का जन्म इसी दिन हुआ था
हिन्दू धर्म में शरद पूर्णिमा का विशेष महत्व माना गया है। मान्यता है कि इस दिन व्रत रखने से सभी मनोरथ पूर्ण होते हैं और व्यक्ति के सभी दुख भी दूर होते हैं। इस वजह से इसका एक नाम कौमुदी व्रत भी है। बता दें कि आश्विन माह के शुक्लपक्ष की पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा कहा जाता है। यह व्रत संतान के लिए भी महत्वपूर्ण माना जाता है। कहते हैं कि इस दिन जो विवाहित स्त्रियां व्रत रखती है उन्हें संतान की प्राप्ति होती है और जो माताएं अपने बच्चों के लिए व्रत रखती है तो उनके संतान की आयु लंबी होती है।
Sharad Purnima 2020 Moon Rise (Chandroday) time
शरद पूर्णिमा पर चंद्रोदय का समय शाम 5:20 का है। शरद पूर्णिमा का चांद 16 कलाओं पूर्ण माना गया है और इस दिन चंद्र देव की पूजा का भी विधान है।
Sharad Purnima 2020 tithi : शरद पूर्णिमा की तिथि 30 अक्टूबर को 05:45 PM से शुरू होगी और इसका समापन 31 अक्टूबर को 08:18 PM पर होगा।
What is sixteen Kala(s), know importance (क्या हैं सोलह कलाएं, जानें महत्व)
16 कलाएं वो खास खूबियां हैं जो एक व्यक्ति को परफेक्ट बनाती हैं। माना जाता है कि पूरे साल में शरद पूर्णिमा ही ऐसी रात होती है जब चंद्र देव 16 कलाओं के साथ पूर्ण होते हैं। हिंदू धर्म में हर गुण को एक कला के साथ जोड़ा गया है। भगवान विष्णु के अवतार श्री कृष्ण का जन्म ही पूरी 16 कलाओं के साथ हुआ था। उनको ही श्री विष्णु का पूर्ण अवतार माना जाता है। श्री राम में भी विष्णु जी का ही अवतार थे लेकिन वह धरती पर 12 कलाओं के साथ अवतरित हुए थे।
Sharad Purnima Chandra Dev Pujan
शास्त्रों में चंद्रमा को देवता माना गया है सरलता और शीतलता का प्रतीक है। हर पूर्णिमा पर चंद्र पूजन की महिमा बताई गई है लेकिन सबसे खास शरद पूर्णिमा को माना गया है। मान्यता है कि इस पूर्णिमा को चंद्रमा अपनी पूर्ण कला में रहते हैं और इस रात उनकी रोशनी से अमृत बरसता है। तभी इस रात को चांदनी में खीर रखने की परंपरा भी है। वैसे चंद्रमा कुंडली को भी खासा प्रभावित करता है। अगर चंद्र दोष हो तो सेहत से लेकर उम्र तक पर इसका असर होता है।