- षटतिला एकादशी के दिन करें अन्न और तिल दान
- षटतिला एकादशी कथा सुने पर व्रत पूर्ण होता है
- व्रत कथा भगवान विष्णु ने नारद जी को सुनाई थी
Shattila Ekadashi Katha: माघ माह में पड़ने वाली षटतिला एकादशी कष्टों को हरने वाली मानी गई है। माघ में पूरे महा गंगा सेवन और तिल का दान करना बेहद पुण्यदायी होता है। माघ में पड़ने वाली षटतिला एकादशी का भी विशेष महत्व होता है। इस दिन तिल के छह प्रयोग करने जरूरी होते और व्रत कथा को सुनना भी उतना ही महत्वपूर्ण होता है।
माना जाता है कि यदि षटतिला एकादशी का व्रत नियमों के साथ पालन कर भी लिया जाए, लेकिन कथा न सुना जाए तो इस व्रत का पूरा फल नहीं मिलता। व्रत अधूरा ही माना जाता है। इसलिए षटतिला एकादशी के दिन व्रत कथा को सुनना न केवल व्रत को पूर्ण करता है बल्कि इससे मनुष्य के सारे कष्ट, दरिद्रता और दुर्भाग्य का नाश होता है।
नारद जी को सुनाई थी भगवान विष्णु ने व्रत कथा
एक बार नारद जी भगवान विष्णु के पास गए और उनसे पूछा कि षटतिला एकादशी व्रत का क्या महत्व है और इसकी कथा क्या है। तब भगवान विष्णु ने जी ने एक ब्राह्मणी स्त्री के माध्यम से इस कथा और एकादशी का महत्व बताया। भगवान विष्णु ने नारद जी को कथा के माध्यम से बताया कि व्रत करना ही महत्वपूर्ण नहीं व्रत के नियमों को पालन करना और व्रत कथा को सुनना भी महत्वपूर्ण होता है। अन्यथा व्रत का पूरा लाभ नहीं मिलता।
ब्राह्मणी ने भगवान को दान में दिया था मिट्टी का ढेला
भगवान विष्णु ने नारद जी को बताया कि, मृत्युलोक में एक ब्राह्मणी रहती थी और वह बेहद धार्मिक प्रवृत्ति की थी। वह हमेशा हर व्रत को करती थी। एकादाशी के दिन वह हर नियम का पालन करती थी, लेकिन दान-पुण्य नहीं करती थी। एक बार वह एक मास तक अन्न-जल त्याग कर व्रत करती रही और इससे उसका शरीर अत्यंत दुर्बल हो गया। षटतिला एकादशी के दिन भगवान विष्णु खुद उस ब्राह्मणी के पास भिक्षा मांगने पहुंचे, लेकिन ब्राह्मणी ने उन्हें भिक्षा में एक मिट्टी का ढेला दे दिया। इसे लेकर भगवान विष्णु स्वर्ग लोक लौट गए।
ब्राह्मणी को स्वर्ग में मिला था महल
कुछ समय पश्चात ब्राह्मणी की मृत्यु हुई और अपने कर्मों के कारण उसे स्वर्गलोक में जगह भी मिली और एक महल भी। क्योंकि ब्राह्मणी को मिट्टी का दान किया था इसलिए उसे सुंदर महल की प्राप्ति हुई लेकिन वह महल बिलकुल खाली था। महल में अन्नादि कुछ भी नहीं था। यह देख कर वह दौड़ी हुई भगवान के समक्ष पहुंची और अपना कष्ट सुनाया। तब भगवान विष्णु ने कहा कि पहले तुम अपने घर जाओ। देवस्त्रियां तुम्हें देखने आ रही हैं। उनके लिए घर का द्वार खोलने से पहले उनसे षटतिला एकादशी का पुण्य और विधि सुन लेना, तभी द्वार खोलना। ब्राह्मणी ने ऐसा ही किया। जब देवस्त्रियां आईं तो ब्राह्मणी ने द्वार खोलने से पहले उनसे षटतिला एकादशी व्रत नियम और कथा सुनाने को कहा।
कथा सुनने के बाद सब कुछ मिल गया
एक देवस्त्री ने ब्राह्मणी को षटतिला एकादशी का माहात्म्य, कथा और नियम सुना दिया। इसके बाद ब्राह्मणी ने द्वार खोल दिया। देवांगनाओं ने देखा कि न तो वह गांधर्वी है और न आसुर, वरन वह एक मनुष्य है। कथा सुनने मात्र से ब्राह्मणी का घर अन्नादि समस्त सामग्रियों से युक्त हो गया। तब भगवान विष्णु ने बताया कि व्रत करने के साथ दान-पुण्य और कथा सुनना बेहद जरूरी है।
षटतिला एकादशी पूजा विधि
- इस दिन प्रातःकाल उठकर स्नान करके पीला वस्त्र धारण करना चाहिए।
- इसके बाद विधिपूर्वक भगवान विष्णु की पूजा करनी चाहिए और उन्हें धूप, दीप और पुष्प अर्पित करना चाहिए।
- आसन पर बैठकर तीन बार नारायण कवच का पाठ करना चाहिए और एकादशी व्रत कथा सुननी चाहिए।
- व्रत का संकल्प लेकर पूरे दिन भगवान विष्णु का ध्यान करना चाहिए और किसी का अहित नहीं सोचना चाहिए।
- एकादशी की रात सच्चे मन से जागरण और हवन करना चाहिए।
- द्वादशी के दिन प्रातःकाल स्नान करके भगवान विष्णु को भोग लगाना चाहिए और कुछ ब्राह्मणों को भोजन कराने के बाद अपना उपवास तोड़ना चाहिए।
जो इंसान षटतिला एकादशी का व्रत रखता है भगवान उसको अज्ञानता पूर्वक किये गये सभी अपराधों से मुक्त कर देते हैं। वह उसे फल देकर स्वर्ग में स्थान प्रदान करते हैं।