बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने मंगलवार को चिराग पासवान के उस आरोप को खारिज कर दिया, जिसमें उन्होंने कहा था कि लोक जनशक्ति पार्टी के विभाजन में उनकी जनता दल यूनाइटेड सबसे निचले पायदान पर है- ऐसा पासवान जूनियर कई दिनों से आरोप लगाते रहे हैं। मुख्यमंत्री ने मंगलवार को संवाददाताओं से कहा कि कोई भूमिका नहीं ऐसा कुछ भी नहीं है। कोई भूमिका नहीं है। यह एक ऐसा मामला है जो उन्हें चिंतित करता है। वे हमारे बारे में कुछ कहते हैं सिर्फ प्रचार पाने के लिएहमारी कोई भूमिका नहीं है। लेकिन सवाल यह है कि क्या राजनीति में पासे इतने सीधे तरीके से फेंके जाते हैं।
एलजेपी में वर्चस्व की लड़ाई, जेडीयू का लेना देना नहीं
नीतीश कुमार कहते हैं कि इस तरह की बातें तो होती रहती हैं। लेकिन अगर आप एलजेपी को देखें तो उनके यहां तनाव आज से नहीं है। पार्टी पर दावेदारी की लड़ाई तो उस समय शुरू हो गई जब चिराग पासवान को जिम्मेदारी दी गई। अपने पिता द्वारा स्थापित लोक जनशक्ति पार्टी के नियंत्रण को लेकर अपने चाचा पशुपति पारस के साथ लड़ाई में बंद - ने नीतीश कुमार पर पासवान समुदाय के वोटों को विभाजित करके पार्टी को तोड़ने की कोशिश करने का भी आरोप लगाया है। उन्होंने एक अंग्रेजी साइट से बात करते हुए कहा कि यदि आप राजनीतिक यात्रा को देखें तो यह स्पष्ट है ... वह फरवरी 2005 से लोक जनशक्ति पार्टी को विभाजित कर रहे हैं, जब 27 हमारे टिकट पर चुने गए थे।"
लगते रहते हैं इस तरह के आरोप
नीतीश कुमार कहते हैं कि चिराग पासवान पहले भी इस बात का जिक्र करते रहे हैं कि जेडीयू, एलजेपी को विभाजित करने का काम करती रही है। जब रामविलास पासवान पिछले साल अस्पताल में भर्ती हुए थे, और आरोप लगाया कि हाल ही में उनकी पीठ के पीछे एक साजिश रची गई थी। लेकिन जेडीयू के इस इनकार के बाद भी एलजेपी खासतौर पर चिराग को लगता था झूठ बोला जा रहा है। चिराग के समर्थक कहते हैं कि मुख्यमंत्री के करीबी सहयोगी ललन सिंह, जो संसदीय दल के नेता भी हैं, महेश्वर हजारी, बिहार विधानसभा के उपाध्यक्ष और संजय सिंह बैठकों में मौजूद थे या पारस कैंप दिल्ली में। पासवान खेमे ने दावा किया कि उनकी तस्वीरें और वीडियो सार्वजनिक हो चुकी हैं।
क्या कहते हैं जानकार
जानकार कहते हैं कि नीतीश कुमार अभी भी उस सदमे से नहीं निकल पाये हैं कि किस तरह से वो सिर्फ चिराग पासवान की वजह से तीसरे नंबर की पार्टी बन गए। बिहार चुनाव में जिस तरह से बीजेपी और जेडीयू का गठबंधन हुआ और एलजेपी अलग हो गई कि उसके पीछे सियासी गणित बड़ी गहरी थी। युवा नेता के वफादारमुख्यमंत्री के लिए पशुपति पारस के खुले समर्थन से जिस बात पर संदेह गहराया। यह उन बिंदुओं में से एक था जिसने पारिवारिक कलह शुरू किया। पशुपति पारस ने राज्य चुनावों से पहले श्री कुमार के साथ अपने भतीजे की प्रतिद्वंद्विता को अस्वीकार कर दिया।
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