संयुक्त राष्ट्र : संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी प्रतिनिधि रहे सैयद अकबरुद्दीन सेवानिवृत्त हो गए हैं। यूएन जैसी वैश्विक संस्था में अपने कार्यकाल के दौरान उन्होंने कूटनीतिक मोर्चे पर कुछ ऐसे मानदंड स्थापित किए, जिन्हें हमेशा याद किया जाएगा। कश्मीर मुद्दे पर पाकिस्तान को अलग-थलग करने का मसला हो गया अंतरराष्ट्रीय अदालत में न्यायाधीश के पद की दौड़ में भारत की सफलता उनके कूटनीतिक कौशल को ही बयां करते हैं, जब इस रेस में सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्य ब्रिटेन को भी पीछे हटना पड़ा।
भारतीय विदेश सेवा (IFS) में 35 साल की सर्विस के बाद इसी महीने सेवानिवृत्त हुए अकबरुद्दीन का कूटनीतिक कौशल ही था कि साल 2017 में भारत के दलवीर भंडारी अंतरराष्ट्रीय अदालत में फिर से न्यायाधीश पद के लिए चुने गए। तब संयुक्त राष्ट्र के सदस्यों ने खुलकर भारतीय दावेदारी का समर्थन किया था, जिसके परिणामस्वरूप ब्रिटेन जैसे यूएन के स्थायी व ताकतवर सदस्य को भी अपने प्रत्याशी क्रिस्टोफर ग्रीनवुड का नाम वापस लेना पड़ा, जबकि सुरक्षा परिषद के अधिकांश स्थायी सदस्य उसके समर्थन में थे।
भारत के लिए अंतरराष्ट्रीय मंच पर अपनी कूटनीति के माध्यम से एक प्रभावी स्थान बनाने वाले अकबरुद्दीन अपने विनम्र स्वभाव के लिए भी जाने जाते हैं, जिसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि जब कभी भारत की इस उपलब्धि की चर्चा होती है तो वह खुद इसका श्रेय लेने बचने से कोशिश करते हुए सिर्फ इतना कहते हैं, 'मैं सौभाग्यशाली था कि मुझे यूएन में उस समय देश के प्रतिनिधित्व का मौका मिला, जब दुनियाभर में हमारी छवि बेहतर बन रही थी।' वह इसका श्रेय नई दिल्ली को भी देते हैं और कहते हैं कि सरकार ने दुनिया के अन्य देशों के साथ बेहतर तालमेल रखा।
संयुक्त राष्ट्र में अकबरुद्दीन के कार्यकाल की एक बड़ी सफलता कश्मीर मसले पर पाकिस्तान को अलग-थलग करना भी रही। संयुक्त राष्ट्र महासभा की बैठक में जब पाकिस्तान ने इस मसले को उठाना चाहा तो उसे करारी शिकस्त का सामना करना पड़ा। यूएन के 193 में से 189 सदस्यों ने भारत का समर्थन किया था। पाकिस्तान के अलावा केवल मलेशिया और तुर्की ही थे, जिन्होंने यह मसला उठाया, वह भी सिर्फ एक बार। फिर चीन ने इस मुद्दे को सुरक्षा परिषद में दो बार उठाने की कोशिश की, लेकिन वह भी विफल रहा। सैयद अकबरुद्दीन के कूटनीति प्रयास से ही भारत में कई आतंकी वारदातों के लिए जिम्मेदार पाकिस्तान स्थित आतंकी संगठन जैश-ए-मुहम्मद के सरगना मसूद अजहर को अंतरराष्ट्रीय आतंकी घोषित किया जा सका, जिसमें चीन लगातार अड़ंगा लगा रहा था।
उनके कूटनीतिक कौशल का लोहा अंतरराष्ट्रीय बिरादरी भी मानती है और यही वजह है कि महासभा के अध्यक्ष तिज्जानी मुहम्मद बंदे ने अकबरुद्दीन को एक 'श्रेष्ठ राजनयिक' बताया है। अकबरुद्दीन सोशल मीडिया पर एक्टिव रहने वाले राजनयिक रहे। वह अपने परिवार से कूटनीति में करियर बनाने वाली दूसरी पीढ़ी रहे। इससे पहले उनके पिता सैयद बशीरुद्दीन कतर में भारत के राजदूत रह चुके थे। अकबरुद्दीन 1985 में भारतीय विदेश सेवा से जुड़े थे। वह विदेश मंत्रालय में भी प्रवक्ता के तौर पर अपनी सेवा दे चुके हैं।