- लक्ष्य ने यूपीएससी से पहले जो भी कांप्टिशन दिया उसमें वह फेल हो गए
- पिता के जिद्द पर लिया था मैकेनिकल इंजीनियरिंग में एडमिशन
- यूपीएससी में पहली बार 6 अंको से इंटरव्यू में छंट गए
नई दिल्ली: दिल्ली के लक्ष्य सिंघल के आईएएस बनने की कहानी बहुत ही अलग है। वह उन लोगों के लिए एक सीख हैं जो यह सोचते हैं कि एक एग्जाम से ही उनकी जिंदगी तय होती है। बहुत से स्टूडेंट ऐसे होते हैं जो एक बार एग्जाम में फेल होने के बाद इतने टूट जाते हैं कि खुद का नकारा समझ बैठते हैं। ऐसे स्टूडेंट्स को लक्ष्य से जरूर सीख लेनी चाहिए। लक्ष्य 12वीं के बाद इंजीनियरिंग की जितनी भी परीक्षाएं दी उसमें वह असफल रहे। एआईईईई, जेईई आदि में वह सलेक्ट ही नहीं हुए। सलेक्शन न होने पर वह दिल्ली की एक स्टेट यूनिवर्सिटी में एडमिशन ले लिए। उनके लगातार असफल होने से उनके परिवार वाले भी निराश होने लगे, लेकिन शायद लक्ष्य ने अपने लिए कुछ और ही लक्ष्य तय किया था। लक्ष्य ने यूपीएससी की परीक्षा दूसरी बार में न केवल पास कि बल्कि वह टॉपर भी रहे।
घर में सरकारी नौकरी पाने वाले पहले शख्स बने लक्ष्य
लक्ष्य के परिवार में आज तक कोई सरकारी नौकरी में नहीं रहा। लक्ष्य पहले शख्स हैं अपने घर में सरकारी नौकरी पाने वाले। लक्ष्य 10 वीं में थे जब उनके पड़ोसी के बेटे का आईपीएस में सलेक्शन हुआ था। सरकारी गाड़ी सायरन बजाते हुए जब उनके घर के पास आती थी तो उनका रुतबा और सम्मान देख कर उनके मन में भी सरकारी अधिकारी बनने का सपना जग गया। लक्ष्य उसी समय से अपने पढाई पर विशेष ध्यान देने लगे।
पिता की जिद्द पर लिया मैकेनिकल इंजीनियरिंग में एडमिशन
12वीं के बाद लक्ष्य जब किसी भी कांप्टिशन को नहीं निकाल सकें तो उनके पिता ने स्टेट यूनिवर्सिटी से मैकेनिकल इंजीनियरिंग करने का दबाव बनाया। जबकि लक्ष्य बीई करने की जगह कंप्यूटर इंजीनियरिंग करना चाहते थे, लेकिन पिता की जिद्द के आगे उन्हें मैकेनिकल इंजीनियरिंग चुनना पड़ा। बीई करने के बाद उन्होंने अपने पिता से कहा कि वे सिविल सर्विस में जाना चाहते हैं। उनके घर वाले तय हो गए और लक्ष्य तैयारी के लिए गाजियाबाद से दिल्ली आ कर कोचिंग करने लगे।
कोचिंग के एक्सपीरियंस से नहीं रहे खुश
लक्ष्य के लिए कोचिंग का एक्सपीरियंस खराब रहा। उनका कहना है कि दिल्ली में कोचिंग कमर्शियलाइज हो चुके हैं। पैसा लूटने के अलावा यहां कुछ नहीं होता। उनका कहना है कि घर से दूर रहने पर पढ़ाई का ज्यादा नुकसान होता है। खाना-पीना बनाने या अरेंज करने, कपड़े धोने, रूम की साफ-सफाई आदि में बहुत समय जाया होता है। जबकि घर में रहकर तैयारी ज्यादा बेहतर होती है। कोचिंग से लक्ष्य को कोई मदद नहीं मिली और वह स्टडी मैटेरियल लेकर अपने घर वापास आ गए और वहां से तैयारी शुरू की।
छह अंकों से साक्षात्कार के बाद रुका चयन
लक्ष्य पहली बार में ही प्री और मेन्स दोनों ही क्वालिफाई कर गए और साक्षात्कार तक पहुंच गए, लेकिन साक्षात्कार राउंड में उनका चयन 6 अंकों से रुक गया। कम अंको से चयन न होने से लक्ष्य दुखी जरूर हुए लेकिन साथ ही हिम्मत भी आई की कम ही नंबर से वह पीछे थे। अगली बार वह जरूर इसमें सफल होंगे। उन्होंने दूसरे दौर का प्रयास शुरू किया और अपनी गलतियों से सीख लेते हुए तैयारी करने लगे। दूसरे प्रयास में कर गए टॉप
8वीं रैंक के साथ निकाला यूपीएसससी
2018 में लक्ष्य दूसरे प्रयास में 8वीं रैंक के साथ यूपीएससी परीक्षा पास कर ली। लक्ष्य दस से बारह घंटे पढ़ते थे। उन्होंने अपनी तैयारी के तीन साल में कभी कोई पार्टी, फंक्शन या ट्रेवल नहीं किया। क्योंकि इससे पढ़ने का रिदम और टारगेट टूट जाता। उनका कहना है कि बैकअप प्लान हर किसी को तैयार रखना चाहिए क्योंकि इस परीक्षा में सफलता की कोई गारंटी नहीं होती।