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हौसलों से उड़ान होती है: हादसे में गंवाए दोनों हाथ तो कोहनी से लिखे जवाब, 12वीं परीक्षा में पाए 92 फीसदी अंक

Updated May 22, 2020 | 18:35 IST

Shivam Solanki Success Story: 12वीं कक्षा की परीक्षा में सफलता पाकर शिवम सोलंकी ने कामयाबी की ऐसी इबारत लिख दी जो देश- दुनिया के हजारों- लाखों छात्रों के लिए गहरी प्रेरणा बनेगी।

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तस्वीर साभार:&nbspANI
दिव्यांग मेधावी छात्र ने 12वीं की परीक्षा में हासिल किए 92 फीसदी अंक
मुख्य बातें
  • 12वीं के छात्र शिवम सोलंकी ने गढ़ी हुनर और जज्बे की कहानी
  • हादसे में दोनों हाथ और पांव गंवाने के बाद भी परीक्षा में लिखे जवाब
  • होनहार छात्र ने कामयाबी ने बनी मिसाल, 12वीं की परीक्षा में पाए 92 फीसदी अंक

वड़ोदरा (गुजरात): 'मंज़िल उन्हीं को मिलती है, जिनके सपनों में जान होती है, पंख से कुछ नहीं होता, हौसलों से उड़ान होती है।' ऐसी शायरियां वैसे तो रोमांचित करने वाले शब्दों का समूह ही होता है लेकिन कभी कभी कुछ ऐसे उदाहरण भी दिख जाते हैं जो इन पंक्तियों को चरितार्थ कर दिखाते हैं। गुजरात के मेधावी छात्र शिवम सोलंकी भी इन उदाहरणों में एक चमकता हुआ नाम बन गए हैं जिन्होंने 12 साल की उम्र में एक दुर्घटना में अपने दोनों हाथ और एक पैर गंवाने के बावजूद इस हादसे को अपनी सीमा नहीं बनने दिया।

गुजरात में 12वीं कक्षा की विज्ञान स्ट्रीम के छात्र शिवम सोलंकी ने राज्य बोर्ड परीक्षा में 92 प्रतिशत अंक हासिल किए हैं। वडोदरा नगर निगम में चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी के बेटे की जिंदगी हाइपरटेंशन तारों की चपेट में आने के बाद पूरी तरह से बदल गई थी और उनके दोनों हाथ और एक पैर शरीर से अलग करने पड़े लेकिन इसे कभी उन्होंने अपनी रास्ते की रुकावट नहीं बनने दिया।

जाहिर तौर पर 12वीं कक्षा में अपना हुनर दिखाने वाले छात्र को इस बात का अहसास है कि शारीरिक परेशानियों के समय लोगों की मदद करना समाज में बड़ा अहम काम है और शायद इसलिए उन्होंने डॉक्टर बनने की बात मन में ठानी है।

एएनआई से बात करते हुए, शिवम ने कहा, 'मैं एक डॉक्टर बनना चाहता हूं। अगर ऐसा नहीं कर सका, तो मैं किसी भी अन्य संबंधित सेवाओं में शामिल होकर लोगों की सेवा करना चाहता हूं। मैंने परीक्षा से पहले पूरे दिन अध्ययन किया था। शिक्षकों ने पाठ्यक्रम को संशोधित किया था जिसके बाद मैंने 92.33 प्रतिशत अंक हासिल किए हैं।'

आगे उन्होंने कहा, 'मैं उन छात्रों को संदेश देना चाहता हूं, जिन्होंने परीक्षाएं पास कर ली हैं, ताकि भविष्य में अपने लक्ष्य को पाने के लिए कड़ी मेहनत कर सकें।' सोलंकी ने यह बात कहते हुए कम अंक हासिल करने वाले छात्रों को प्रोत्साहित किया, ताकि वे कड़ी मेहनत कर सकें और भविष्य में अच्छा कर सकें।

जब सोलंकी 12 साल का था, तब हाई-टेंशन तार छूने के कारण उसने अपने दोनों हाथ और एक पैर खो दिया था। इससे पहले इसी तरह कोहनी से लिखकर उन्होंने 10वीं की भी परीक्षा दी थी जिसमें 81 फीसदी अंक हासिल किए थे।