नई दिल्ली : कोरोना वायरस लोगों को उबरने के बाद भी कई तरह से प्रभावित करता है। संक्रमण से उबरने के बाद भी बड़ी संख्या में ऐसे लोग हैं, जो लंबे समय तक गंध और स्वाद नहीं आने जैसी समस्या का सामना करते हैं। लेकिन बड़ी संख्या में ऐसे लोग भी हैं, जो कोविड-19 से उबरने के बाद अगले छह महीनों के भीतर स्ट्रोक, डिमेंशिया और अन्य न्यूरोलॉजिकल बीमारियों का सामना करते हैं।
वैज्ञानिकों के मुताबिक, खास तौर पर ऐसे लोगों में स्ट्रोक, डिमेंशिया और अन्य न्यूरोलॉजिकल बीमारियों का जोखिम अधिक होता है, जो गंभीर रूप से कोरोना के कारण प्रभावित हुए हों। कोविड-19 से उबरने वाले मरीजों में आगे चलकर मस्तिष्क में कई अन्य तरह के विकारों और मानसिक बीमारियों के मामले पहले कम देखने को मिलते थे, लेकिन अब इसकी दर बढ़ने लगी है।
मेंटल हेल्थ भी प्रभावित करता है कोरोना
अमेरिका के 2.3 लाख से अधिक लोगों पर हुए एक अध्ययन के मुताबिक, कोविड-19 के संक्रमण से उबरने वाला हर तीन में से एक शख्स मस्तिष्क विमान और मनोवैज्ञानिक समस्याओं से जूझ रहा होता है। इसमें हालांकि यह स्पष्ट नहीं हो पाया है कि वायरस किस तरह से एंग्जाइटी, डिप्रेशन जैसे मानसिक विकारों से जुड़ा है, लेकिन यह स्थिति कोरोना से उबरने वालों में बहुतायत में देखी गई।
कोविड-19 से संबंधित ऐसे कई शोध पहले भी सामने आ चुके हैं, जिनमें विशेषज्ञों ने संक्रमण से उबरने वाले मरीजों में मानसिक विकारों को लेकर बात कही थी, जिनमें याददाश्त कमजोर होना, मनोभ्रम की स्थिति जैसी समस्याओं का जिक्र किया गया था। बीते साल हुए एक ऐसे ही अध्ययन में शोधकर्ताओं ने पाया था कि कोविड-19 से उबरने वाले करीब 20 फीसदी मरीजों में तीन महीने के भीतर मानसिक रोग के लक्षण नजर आए।
वहीं, अब जो नया अध्ययन सामने आया है, उसके मुताबिक, एक बार कोरोना वायरस संक्रमण की चपेट में आ जाने के बाद इससे उबरने वाले 34 फीसदी मरीजों में छह महीने के भीतर कई तरह की मानसिक और न्यूरोलॉजिकल समस्याएं देखी गईं। लोगों में एंग्जाइटी और मूड डिसऑर्डर आम तौर पर देखा गया। इन परेशानियों का इस बात से कोई संबंध नहीं देखा गया कि मरीज की हालत कोरोना संक्रमण के दौरान गंभीर थी या उसे मामूली लक्षण थे।