- जम्मू के बाद अब हरियाणा के कुरक्षेत्र में सम्मेलन की योजना बना रहे जी-23 के नेता
- फिलहाल पांच राज्यों के चुनावों से बनाई है दूरी, इस समय मुश्किल दौर में कांग्रेस
- दो मई के चुनाव नतीजे यदि कांग्रेस के पक्ष में नहीं आते हैं और गहरा संकट है यह संकट
नई दिल्ली : कांग्रेस पार्टी एक बार फिर संकट के दौर से गुजर रही है। इस बार उसके शीर्ष नेताओं ने अपने 'बागी' तेवर कड़े कर लिए हैं। पांच राज्यों में चुनाव हो रहे हैं, इसलिए यह समस्या और बड़ी नजर आ रही है। गत शनिवार को जम्मू में अपनी ताकत का प्रदर्शन करने के बाद ग्रुप 23 समूह के नेता शांत नहीं हुए हैं। बंगाल में लेफ्ट-कांग्रेस में पीरजादा अब्बास सिद्दिकी की पार्टी आईएसएफ को शामिल करने पर इन नेताओं ने पार्टी 'धर्मनिरपेक्षता' के सिद्धांतों पर सवाल उठाए हैं। अब इस समूह के नेता हरियाणा के कुरक्षेत्र में अपने दूसरे सम्मेलन की तैयारी में है।
क्या है 'ग्रुप 23'
पिछले साल अगस्त महीने में कांग्रेस के 23 नेताओं ने पार्टी में 'व्यापक बदलाव' की मांग करते हुए कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी को पत्र लिखा था। इस पत्र पर हस्ताक्षर करने वालो में गुलाम नबी आजाद, कपिल सिब्बल, आनंद शर्मा सहित प्रदेशों के कई दिग्गज नेता शामिल हैं। इसके बाद कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक में इस समूह के नेताओं के साथ गांधी परिवार का मनमुटाव होने की खबरें भी सामने आईं। इस समूह के नेता चाहते हैं कि पार्टी अध्यक्ष पद के लिए निष्पक्ष तरीके से चुनाव हो, इसके लिए वे पार्टी संविधान में बदलाव चाहते हैं।
आजाद को दोबारा राज्यसभा नहीं भेजा
गुलाम नबी आजाद का राज्यसभा का कार्यकाल पिछले महीने समाप्त हुआ। आजाद कांग्रेस के वरिष्ठ नेता हैं लेकिन पार्टी ने उन्हें दोबारा उच्च सदन नहीं भेजा। समूह-23 के नेताओं को लगता है कि पिछले साल पत्र पर हस्ताक्ष करने के चलते पार्टी ने उनसे 'बदला' लिया है और उन्हें राज्यसभा नहीं भेजा। राज्यसभा में आजाद को विदाई देते समय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भावुक हो गए। पीएम ने आजाद की खूब प्रशंसा की। यह बात भी कांग्रेस आलाकमान को नागवार गुजरी। पीएम की इस तारीफ के बाद सियासी गलियारों में आजाद के भाजपा में शामिल होने की अटकल भी जोर पकड़ी।
चुनावों से 'समूह-23' के नेताओं ने बनाई दूरी
पश्चिम बंगाल, असम, तमिलनाडु, केरल और पुडुचेरी में विधानसभा चुनाव का बिगुल बज चुका है। इन सभी राज्यों में कांग्रेस चुनाव मैदान में है। कहीं सत्तारूढ़ पार्टी से उसका सीधा मुकाबला है तो किसी राज्य में वह गठबंधन कर चुनाव लड़ रही है। पश्चिम बंगाल में लेफ्ट और पीरजादा अब्बास सिद्दिकी के अलायंस कर चुनाव लड़ रही है तो असम में उसने बदरूद्दीन अजमल के साथ गठबंधन किया है। केरल में कांग्रेस का सीधा मुकाबला लेफ्ट से है। तमिलनाडु में वह डीएमके के साथ चुनाव लड़ रही है। पुडुचेरी में उसका सीधा मुकाबला भाजपा-एआईएडीएमके गठबंधन से है। इन सभी राज्यों में कांग्रेस के प्रतिष्ठा दांव पर लगी है। दक्षिण भारत में कांग्रेस की कमान राहुल गांधी ने संभाली है तो बंगाल और असम में प्रियंका गांधी चुनावी कार्यक्रम कर रही हैं। 'समूह-23' के नेताओं ने चुनाव-प्रचार से दूरी बनाई हुई है।
जम्मू में ताकत का प्रदर्शन के बाद हरियाणा में कार्यक्रम
गत शनिवार को 'समूह-23' के नेता जम्मू में जुटे। यहां कार्यक्रम में इन नेताओं के सिर पर भगवा साफा दिखाई दिया। इसके कई मतलब सियासी मायने निकाले जा रहे हैं। खास बात यह है कि इन नेताओं की तरफ से जो पोस्टर लगाया गया उसमें गांधी परिवार का कोई सदस्य नहीं दिखाई दिया। वरिष्ठ नेता कपिल सिब्बल ने कहा कि 'उनकी वजह से कांग्रेस है।' मतलब साफ है कि इस समूह के नेताओं ने अपना इरादा साफ कर दिया है कि अगर उनकी चिंताओं का समाधान नहीं हुआ तो वे अलग रास्ता भी अपना सकते हैं। अब ये नेता हरियाणा के कुरूक्षेत्र में अपना अगला कार्यक्रम करने की योजना बना रहे हैं।
कांग्रेस के लिए अहम होंगे 2 मई के चुनाव नतीजे
खास बात यह भी है कि जम्मू में हुए कार्यक्रम को लेकर कांग्रेस आलाकमान ने इन नेताओं से कोई स्पष्टीकरण नहीं मांगा है। सूत्रों का कहना है कि मौजूदा चुनावों को देखते हुए कांग्रेस आलाकमान इन नेताओं के साथ कोई टकराव नहीं लेना चाहता। दो मई को आने वाले पांच राज्यों के चुनाव नतीजे कांग्रेस के लिए काफी अहम साबित होंगे। इन चुनावों में पार्टी का प्रदर्शन यदि खराब होता है तो इस समूह के नेता आलाकमान के खिलाफ अपने तेवर और कड़े कर सकते हैं।