Kalyan Singh and Ram Mandir : भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के कद्दावर नेता कल्याण सिंह का शनिवार रात निधन हो गया। उन्होंने 89 साल की उम्र में लखनऊ के एसजीपीजीआई में अंतिम सांस ली। उत्तर प्रदेश में भाजपा को स्थापित करने का श्रेय कल्याण सिंह को ही जाता है। अयोध्या में राम मंदिर के लिए सबसे बड़ा त्याग उन्होंने किया। कल्याण सिंह जमीनी नेता थे। आम आदमी, कार्यकर्ताओं में उनकी लोकप्रियता थी। उनकी पहचान एक सख्त प्रशासक के रूप में रही। वह फैसले लेने में देरी नहीं करते थे। राम मंदिर के लिए उनकी प्रतिबद्धता किसी से छिपी नहीं थी। कहने वाले यह भी कहते हैं कि सीएम की कुर्सी पर कल्याण सिंह की जगह भाजपा का यदि कोई और नेता होता तो शायद बाबरी मस्जिद का ढांचा गिरा नहीं होता।
कुर्सी की परवाह नहीं की, सीएम पद से दिया इस्तीफा
कल्याण सिंह ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा देकर वादा किया था कि वह बाबरी मस्जिद की सुरक्षा करेंगे लेकिन वह अपना वादा निभा नहीं पाए। छह दिसंबर 1992 को कारसेवकों ने बाबरी मस्जिद को गिरा दिया। कल्याण सिंह जानते थे कि इसके बाद उनकी सरकार बच नहीं पाएगी, उसे बर्खास्त कर दिया जाएगा। इससे पहले कि केंद्र सरकार उनकी सरकार बर्खास्त करती, उन्होंने सीएम पद से इस्तीफा दे दिया। मीडिया रिपोर्टों की मानें तो छह दिसंबर के दिन के हालात की जानकारी कल्याण सिंह तक पहुंच रही थी। बाबरी मस्जिद के पास भारी संख्या में सुरक्षाबल तैनात थे। हालात नियंत्रण से बाहर जाने पर सुरक्षा अधिकारियों ने कारसेवकों पर गोली चलाने की इजाजत मांगी थी लेकिन उन्होंने गोली चलाने की इजाजत नहीं दी।
'मंदिर-मस्जिद विवाद के अंत का फैसला कर लिया था'
भाजपा नेता विंध्यवासिनी कुमार जो कल्याण सिंह के करीबी रहे और उनके साथ काम किया। उनका कहना है कि 6 दिसंबर के दिन वह अयोध्या में थे। इस दिन ढांचा गिरना तय था। ऐसा महौल, जुनून और जज्बा था कि कारसेवकों ने विश्व हिंदू परिषद को अपना कार्यक्रम नहीं करने दिया और गुंबद पर चढ़ गए। एक नेता और प्रशासक के रूप में कल्याण सिंह ने कारसेवकों पर गोली न चलाने का फैसला किया। कल्याण सिंह ने कहा कि बाकी जो उपाय हों उन उपायों का उपयोग किया जाए, गोली चलाने की इजाजत वह नहीं देंगे। पहला गुंबद गिरने के बाद इसकी जानकारी कल्याण सिंह को दी गई। शायद उन्होंने मन में इस विवाद को समाप्त करने का फैसला कर लिया था। यह बहुत बड़ा फैसला था। ढांचा नहीं गिरता तो एएसआई की रिपोर्ट सामने नहीं आ पाती और सुप्रीम कोर्ट अपना ऐतिहासित फैसला नहीं दे पाता।
राम मंदिर के लिए कुर्बान कर दी अपनी कुर्सी
मस्जिद विध्वंस के अगले दिन 7 दिसंबर को केंद्र की नरसिम्हा राव सरकार ने कल्याण सिंह सरकार को बर्खास्त कर दिया। इसके बाद 8 दिसंबर को पत्रकारों के साथ बातचीत में कल्याण सिंह ने जो बयान दिया, वह राम मंदिर के प्रति उनकी आस्था और प्रतिबद्धता को दर्शाता है। यूपी में अपनी सरकार के बने एक साल ही हुए थे, कुर्सी गंवाने का उन्हें जरा भी मलाल नहीं था। उन्होंने मीडियाकर्मियों से कहा, ‘बाबरी का विध्वंस भगवान की मर्जी थी। मुझे इसका कोई मलाल नहीं है, कोई दुख नहीं है, कोई पछतावा नहीं है। ये सरकार राममंदिर के नाम पर बनी थी और उसका मकसद पूरा हुआ। ऐसे में सरकार राममंदिर के नाम पर कुर्बान। राम मंदिर के लिए एक क्या सैकड़ों सत्ता को ठोकर मार सकता हूं। केंद्र कभी भी मुझे गिरफ्तार करवा सकता है, क्योंकि मैं ही हूं, जिसने अपनी पार्टी के बड़े उद्देश्य को पूरा किया है।’
कल्याण सिंह का भाषण सुनने के लिए लोग बेताब रहते थे
राम मंदिर अभियान के लिए कल्याण सिंह ने उत्तर प्रदेश में बड़ा जन-जागरण अभियान चलाया था। 1990 में मंदिर के लिए यूपी में दौरा किया। शहरों एवं कस्बों में उन्हें सुनने के लिए उनकी रैलियों में बड़ी संख्या में लोगों की भीड़ जुटती थी। अटल बिहारी वाजपेयी के बाद कल्याण सिंह ही थे जिनका भाषण सुनने के लिए लोग बेताब रहते थे। यूपी में भाजपा को खड़ा करने का श्रेय कल्याण सिंह को ही जाता है। कल्याण सिंह आम आदमी, गरीबों, किसानों, पार्टी कार्यकर्ताओं से सीधे तौर पर जुड़े थे। उनका यही जुड़ाव उनकी लोकप्रियता की एक बड़ी वजह थी। वह सख्त प्रशासक थे। वह अपने फैसलों को सख्ती से लागू कराते थे। यूपी जैसे राज्य में नकल विहीन परीक्षा और 'समूह ग' भर्ती परीक्षा, इसका सशक्त उदाहरण है।
स्पष्टवादी नेता थे, अपनी बात डंके की चोट पर बोलते थे
वह स्पष्टवादी नेता थे, जो बात उन्हें सही लगती थी उसे डंके की चोट पर बोलते थे। उनकी बात पार्टी आलाकमान को बुरी लग सकती है, इसकी परवाह वह नहीं करते थे। कल्याण सिंह 1999 में भाजपा से अलग हुए और दोबारा 2004 में पार्टी में वापस आए। इसके बाद 2009 में अलग हुए और फिर 2019 में वापस आए। कल्याण सिंह के जाने के बाद भाजपा यूपी में कमजोर हुई और उसे नुकसान हुआ। यूपी में भाजपा और कल्याण सिंह एक दूसरे के पर्याय बने रहे। भाजपा में उनका कद और योगदान इस बात से भी समझा जा सकता है कि उनके निधन पर भाजपा का हर नेता गमगीन है और उन्हें याद कर रहा है।