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सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला, राज्य सरकारें देंगी प्रवासी मजदूरों को खाना और उनका किराया

Updated May 28, 2020 | 17:14 IST

Supreme Court on Migrant Labour: प्रवासी मजदूरों की समस्या को लेकर आज सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई। इस दौरान सर्वोच्च अदालत ने आदेश देते हुए कहा है कि मजदूरों से बस, ट्रेनों का किराया नहीं लिया जाएगा।

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राज्य सरकारें देंगी प्रवासी मजदूरों को खाना और किराया: SC
मुख्य बातें
  • प्रवासी मजदूरों से संबंधित एक मामले की सुनवाई कर रहा है सुप्रीम कोर्ट
  • देश भर में फंसे प्रवासी मजदूरों की समस्या लेकर दिया कोर्ट ने बड़ा फैसला
  • राज्य सरकारें मजदूरों का किराया देंगी और उनको घर पहुंचाने की व्यवस्था करेंगी- कोर्ट

नई दिल्ली: प्रवासी मजदूरों के मुद्दे पर आज सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई। इस दौरान सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता और वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल में तीखी बहस भी हुई। कोर्ट ने इस दौरान बड़ा फैसला देते हुए कहा कि प्रवासी मजदूरों से ट्रेन या बसों का किराया ना लिया जाए और इसका भार राज्य की सरकारें उठाएं। कोर्ट ने आदेश दिया कि ट्रेन या बसों में चढ़ने से लेकर घर पहुंचने तक सभी फंसे हुए प्रवासी मजदूरों को खाना राज्य, केन्द्र शासित प्रदेश मुहैया कराएं।

मजदूरों की वापसी के इंतजाम हों तेज

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अपने मूल स्थानों की तरफ जाने की कोशिश कर रहे प्रवासियों की कठिनाइयों को देखकर वह चिंतित हैं।  कोर्ट ने कहा कि हमने पंजीकरण, परिवहन और भोजन तथा पानी देने की प्रक्रिया में  कई खामियां हैं देखी हैं। इस दौरान कोर्ट ने कहा कि राज्य सरकारे मजदूरों की वापसी को लेकर अपने प्रयासों को तेज करें। अपने आदेश में कोर्ट ने कहा कि जहां से भी मजदूर ट्रेन या बस में सवार होंगे वहां स्टेशन पर उनके भोजन, पानी का इंजताम किया जाएगा। 

सिब्बल के सवालों पर एसजी ने दिए जवाब

 इस दौरान कपिल सिब्बल ने केंद्र पर सवाल दागते हुए कहा कि केवल 3 फीसदी रेलगाड़ियां ही चलाई जा रही हैं जबकि और अधिक ट्रेनें चलाई जानी चाहिए। सिब्बल ने कहा कि तीन करोड़ से ज्यादा मजदूर हैं। सरकार की तरफ से पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सिब्बल से सवाल करते हुए कहा कि वो कैसे कह सकते हैं कि सभी मजदूर घर जाना चाहते हैं।  उन्होंने कहा कि यह एक अभूतपूर्व संकट है और सरकार हरसंभव कदम उठा रही हैं।

एसजी से तीखे सवाल

 न्यायमूर्ति अशोक भूषण, न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति एम आर शाह की पीठ ने इन कामगारों की वेदनाओं का स्वत: संज्ञान लिये गये मामले में वीडियो कॉन्फ्रेंस के जरिये केन्द्र की ओर से सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता से सवाल किया, ‘सामान्य समय क्या है? यदि एक प्रवासी की पहचान होती है तो यह तो निश्चित होना चाहिए कि उसे एक सप्ताह के भीतर या दस दिन के अंदर पहुंचा दिया जायेगा? वह समय क्या है? ऐसे भी उदाहरण हैं जब एक राज्य प्रवासियों को भेजती है लेकिन दूसरे राज्य की सीमा पर उनसे कहा जाता है कि हम प्रवासियों को नहीं लेंगे, हमें इस बारे में एक नीति की आवश्यकता है।’

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