- दिशा के अनुसार देवस्थल को साफ और सजाना चाहिए
- हर देव के लिए अलग दिशा का निर्धारण वास्तु में किया गया है
- वास्तु दोष को दूर करने के लिए देवपूजन दिशावार करना चाहिए
वास्तु नियमों का पालन करने से मनुष्य का तन,मन और धन सब कुछ संचय होता है, लेकिन वास्तु दोष हो तो तमाम मेहनत और प्रयास के बाद भी घर में सुख-शांति और सौभाग्य का वास नहीं हो पाता है। इसलिए वास्तु नियमों का पालन करते हुए वास्तु दोष को दूर जरूर करना चाहिए। वास्तु में घर की खिड़की-दरवाजे से लेकर समान रखने, पौधे या तस्वीर लगाने जैसे तमाम नियम बताए गए हैं। वहीं, दिशाओं का भी विशेष महत्व माना गया है। किस दिशा में क्या रखें या क्या नहीं आदि। इसके साथ ही हर दिशा किसी न किसी देव के आधिपत्य में होती है। यदि मनुष्य दिशाओं का ध्यान रखें और उसी अनुसार देव पूजा करे तो उसे कई लाभ मिलते हैं। इसलिए सर्वप्रथम यह जानना जरूरी है कि कौन सी दिशा किस देवता को समर्पित है।
वास्तु अनुसार जानें किस दिशा में कौ से देवता का वास
उत्तर दिशा
उत्तर दिशा धन के देवता कुबेर की मानी गई हैं। इसीलिए धन जुड़े हर कार्य इस दिशा में करने चाहिए। धन रखने के लिए इस दिशा में ही तिजोरी व अलमारी रखनी चाहिए। इस दिशा में धन रखने से धन में बढ़ोतरी होती है।
उत्तर-पूर्व दिशा
उत्तर-पूर्व दिशा को ईशान कोण के नाम से जाना जाता है। इस दिशा का आधिपत्य सूर्यदेव के पास है। यानी इस दिशा के देवता सूर्य। इस दिशा में बुद्धि और विवेक से जुड़े कार्य करने चाहिए। शिक्षा, ज्ञान और सफलता के लिए इस दिशा में काम करना चाहिए।
पूर्व दिशा
इंद्र देव को इस दिशा का स्वामी माना गया है। भले ही सूर्यदेव इस दिशा से उगते हैं, लेकिन वास्तु में इस दिशा का आधिपत्य इंद्रदेव के पास है। इस दिशा का प्रतिनिधित्व देवराज इंद्र ही करते हैं।
दक्षिण-पूर्व दिशा
दक्षिण-पूर्व दिशा के देवता अग्नि देव हैं। अग्नि देव पृथ्वी पर मौजूद हर अग्नि तत्व का प्रतिनिधित्व करते हैं। इस दिशा में भोजन व स्वास्थ्य संबंधी कार्य करने चाहिए।
दक्षिण दिशा
इस दिशा के देवता यमराज को माना गया है। मृत्यु के देव होने के कारण हिंदू धर्म और वास्तु में इस दिशा में कोई भी कार्य शुभ नहीं माना जाता है। हालांकि, ऐसा भी माना जाता है कि यमराज ही धर्मराज हैं, जो इस धरती पर धर्म की स्थापना करते हैं। यह दिशा खुशी, प्रसन्नता व सफलता के लिए भी जानी जाती है।
दक्षिण-पश्चिम दिशा
दक्षिण-पश्चिम दिशा के देव निरती को माना गया है। निरती विशेष तौर पर दैत्यों का स्वामी कहे जाते हैं और निरती देव की आराधना से आपसी रिश्तों में मजबूती आती है।
पश्चिम दिशा
वरुण देव को पश्चिम दिशा का स्वामी माना गया है जो जल से जुड़े सभी तत्वों को प्रभावित करते हैं। इस धरा पर वर्षा होने या ना होने का कारण वरुण देव को ही माना गया है। इस दिशा की पूजा से सौभाग्य और ऐश्वर्य में बढ़ोतरी होती है।
उत्तर-पश्चिम दिशा
इस दिशा के स्वामी पवन देव माने गए हैं। हवा उन्हीं के जरिये संचालित होती हैं। संपूर्ण जगत में वायु देव को संचालित करने का जिम्मा पवन देव के हाथों में ही है।
इसलिए दिशा के अनुसार घर में देवपूजन करें। इससे वास्तुदोष भी दूर होगा और पूजा का पुण्यलाभ भी मिलेगा।