- पितृपक्ष के बाद नवरात्रि मलमास के कारण नहीं होगी
- इस बार चतुर्मास चार की जगह पांच महीने का होगा
- कई दशकों के बाद नवरात्रि से पहले लग रहा मलमास
पितृपक्ष अमावस्या के अगले दिन से ही प्रतिपदा के साथ शारदीय नवरात्र की शुरुआत हो जाती है, लेकिन इस बार कई दशकों बाद नवरात्रि पितृपक्ष के ठीक बाद शुरू नहीं होगी। इस बार पितृ पक्ष खत्म होने के करीब एक महीने बाद नवरात्रि आएगी। एक महीने के अंतराल के पीछे कारण मलमास या अधिकमास है। अधिकमास लगने से नवरात्र और पितृपक्ष के बीच एक महीने का अंतर हो रहा है। आश्विन मास में मलमास लगना और एक महीने के अंतर पर दुर्गा पूजा आरंभ होना ऐसा संयोग करीब 165 साल बाद होने जा रहा है।
बता दें कि इस समय चातुर्मास चल रहा है और चातुर्मास हमेशा चार महीने का होता है, लेकिन इस बार अधिकमास के कारण चतुर्मास पांच महीने का है। लीप ईयर होने के कारण ही ऐसा हुआ है और खास बात ये है कि 165 साल बाद लीप ईयर और अधिकमास दोनों ही एक साल में आए हैं। चातुर्मास में कोई भी शुभ कार्य नहीं किया जाता है। केवल धार्मिक कार्य से जुड़े कार्य ही किए जा सकते हैं। शुभकार्य कार्तिक मास में आने वाली देवउठनी एकादशी के बाद ही शुरू होंगे जब भगवान देवता गण जागेंगे। चातुर्मास में विष्णु जी चार महीनें के लिए पाताल लोक में निद्रा करते हैं और देवउठनी एकादशी के दिन उठते हैं। तब तक कोई भी शुभ कार्य वार्जित होते हैं।
पितृपक्ष 1 सितंबर से शुरू हो रहा है और 17 सितंबर को पितृपक्ष खत्म होगा। अधिकमास अगले दिन से ही शुरू हो जागए और ये 16 अक्टूबर तक चलेगा। मलमास खत्म होने के साथ ही नवरात्रि शुरू होगी। इस बार नवरात्रि 17 अक्टूबर से आरंभ होगी। वहीं 25 नवंबर को देवउठनी एकादशी के साथ देवता उठेंगे और तब चातुर्मास भी खत्म हो जाएगा।
इस साल आश्विन माह का अधिकमास होगा। यानी दो आश्विन मास होंगे। आश्विन मास में श्राद्ध और नवरात्रि, दशहरा जैसे त्योहार होते हैं। अधिकमास के कारण दशहरा 26 अक्टूबर और दीपावली 14 नवंबर को मनाई जाएगी।
जानें, क्या होता है अधिकमास
पंचाग में सूर्य और चंद्र के अनुसाद दिन व तिथियां निर्धारित होती हैं और एक सूर्य वर्ष 365 दिन और करीब 6 घंटे का होता है, जबकि एक चंद्र वर्ष 354 दिनों का माना जाता है। दोनों वर्षों के बीच लगभग 11 दिनों का अंतर होता है। ये अंतर हर तीन साल में लगभग एक माह के बराबर हो जाता है। यही अंतर हर तीन साल में दूर करने के लिए एक चंद्र मास अतिरिक्त आता है, जिसे अधिकमास का नाम दिया गया है। अधिकमास को मलमास भी कहते हैं। पुराणों में इसे मलिनमास भी कहा गया है और यही कारण है कि मलिनमास में देवता भी अपनी पूजा नहीं चाहते।