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1200 साल पुराना है गुजरात का अंबा जी मंदिर, मोदी ने की खास पूजा

Updated Dec 13, 2017 | 23:22 IST | Medha Chawla

गुजरात के अंबा देवी मंद‍िर की खासी अहमियत है। इसे 51 शक्‍त‍िपीठों में से एक माना जाता है...

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तस्वीर साभार:&nbspTwitter
गुजरात का अंबा जी मंदिर

नई द‍िल्‍ली: गुजरात में कई बड़े धार्मिक स्‍थल हैं और इनमें एक व‍िश‍िष्‍ट स्‍थान रखता है अंबा जी मंदिर। यह मंदिर 51 शक्तिपीठों में से एक है, इसे शक्ति की देवी सती का मंदिर माना जाता है। 

हिंदुओं के पुराने और पवित्र तीर्थ स्थानों में से एक अंबाजी मंदिर गुजरात और राजस्थान की सीमा पर बनासकांठा के दांता में बना हुआ है। इसे 1200 साल पुराना बताया जाता है। अंबा जी मंद‍िर के जीर्णोधार का काम 1975 में शुरू हुआ था और यह अभी भी जारी है।

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बता दें क‍ि मंदिर का शिखर 103 फीट ऊंचा है और इस पर 358 स्वर्ण कलश सजे हुए हैं। अहमदाबाद से इस मंदिर की दूरी 100 किलोमीटर से ज्यादा है। 2017 के गुजरात चुनाव से पहले प्रधानमंत्री नरेन्‍द्र मोदी ने इस मंदिर में जाकर खास पूजा की थी। 

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जानें क्‍या हैं शक्‍त‍िपीठ 
पुराणों के अनुसार, सती के शव के विभिन्न अंगों से बावन शक्तिपीठों का निर्माण हुआ था। इसके पीछे यह अंतर्कथा है कि दक्ष प्रजापति ने कनखल (हरिद्वार) में 'बृहस्पति सर्व' नामक यज्ञ रचाया। उस यज्ञ में ब्रह्मा, विष्णु, इंद्र और अन्य देवी-देवताओं को आमंत्रित किया गया, लेकिन जान-बूझकर अपने जमाता भगवान शंकर को नहीं बुलाया।

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शंकरजी की पत्नी और दक्ष की पुत्री सती पिता द्वारा न बुलाए जाने पर और शंकरजी के रोकने पर भी यज्ञ में भाग लेने गईं। यज्ञ-स्थल पर सती ने अपने पिता दक्ष से शंकर जी को आमंत्रित न करने का कारण पूछा और पिता से उग्र विरोध प्रकट किया। इस पर दक्ष प्रजापति ने भगवान शंकर को अपशब्द कहे। इस अपमान से पीड़ित हुई सती ने यज्ञ-अग्नि कुंड में कूदकर अपनी प्राणाहुति दे दी। 

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भगवान शंकर को जब इस दुर्घटना का पता चला तो क्रोध से उनका तीसरा नेत्र खुल गया। भगवान शंकर के आदेश पर उनके गणों के उग्र कोप से भयभीत सारे देवता ऋषिगण यज्ञस्थल से भाग गये। भगवान शंकर ने यज्ञकुंड से सती के पार्थिव शरीर को निकाल कंधे पर उठा लिया और दुखी हुए इधर-उधर घूमने लगे। तदनंतर सम्पूर्ण विश्व को प्रलय से बचाने के लिए जगत के पालनकर्त्ता भगवान विष्णु ने चक्र से सती के शरीर को काट दिया। 

सती के शरीर के टुकड़े 51 जगहों पर गिरे और ये स्‍थन शक्तिपीठ कहलाए। सती ने दूसरे जन्म में हिमालयपुत्री पार्वती के रूप में शंकर जी से विवाह किया।

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