नई दिल्ली : एक ऐसा शक्तिपीठ जो दो जगहों पर स्थापित है। दोनों जगह मां के स्वरूप की पूजा होती है। हिंदुस्तान का इस प्रकार का इकलौता तीर्थ राजस्थान और गुजरात दोनों जगह पर स्थित है।
माउंटआबू से 50 किलोमीटर की दूरी पर राजस्थान के सिरोही जिले में बसा है-आरासुर अंबाजी तीर्थ । जिसे आरासुर तीर्थ के नाम से भी जाना जाता है। देश की 51 शक्तिपीठों में से एक आरासुर अंबाजी तीर्थ तीर्थ के बारे में ये मान्यता है कि यहां मां पार्वती की नाभि गिरी थी। यहां ज्वाला 24 घंटे जलती रहती है।
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मंदिर में नहीं है कोई मूर्ति, होते हैं पादुका दर्शन
मंदिर के गर्भगृह में कोई देवी की मूर्ति नहीं है। यहां माता के नाभि के स्वरूप, त्रिशूल और विसायंत्र की पूजा होती है। विसायंत्र का संबंध शक्तिपीठ से है। यंत्र में कुल 51 आंकड़ें यानी अक्षर हैं। यहां नवरात्र में अष्टमी के दिन की पूजा का विशेष महत्व है। और हर महीने की अष्ठमी के दिन भी इस विसायंत्र की पूजा होती है। माना जाता है कि अष्टमी के दिन देवी 24 घंटे विसायंत्र, त्रिशूल में विराजमान हो जाती है।
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मंदिर के नजदीक में कई साल पुराना मानसरोवर नामक कलाका बेनमून स्थापत्य है। माना जाता है कि यहां भगवान श्री कृष्ण की बाल्यावस्था में चौलक्रिया कर दी गई थी। श्राद्ध के पखवाड़े में मां अंबा के अष्टमी के दर्शन का विशेष लाभ है। यहां सदियों से जल रही वो अग्निकुंड भी है जिसमें मां प्रकट हुई थी। यहां माता की पादुका भी रखी हुई है जिसके दर्शन का विशेष महत्व है।
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राक्षस के नाम क्यों जाना जाता है ये शक्तिपीठ
वहीं देश का ये इकलौता शक्तिपीठ है जिसे एक राक्षस आरासुर के नाम से जाना जाता है। इस नामकरण के पीछे एक पौराणिक कथा है। आरासुर एक भयानक राक्षस था जिससे गांव के लोग काफी परेशान हो गए। आरासुर से मुक्ति पाने के लिए लोगों ने अंबा देवी की आराधना की। सालों की तपस्या के बाद मां प्रसन्न हुई और उन्होंने गांव वाले से वर मांगने को कहा। गांववालों ने अंबा देवी से आरासुर से मुक्ति दिलाने का आग्रह किया।
मां अपने त्रिशुल के साथ एक अलग रुप में प्रकट हुई और उन्होने त्रिशूल से आरासुर राक्षस का वध कर दिया। मरते वक्त उन्होंने राक्षस से उसकी आखिरी इच्छा पूछी तो आरासुर ने कहा कि आपके पहले यहां मेरा नाम लिया जाए। उसी के बाद से इस तीर्थ का नाम आरासुर अंबाजी तीर्थ हो गया।
अंबा जी के गुजरात जाने की कहानी
अंबा माता के इस पहाड़ी पर विराजमान होने के पीछे भी एक कथा है। गुजरात के राजा को माउंटआबू के आरासुर अंबाजी तीर्थ में विशेष आस्था थी और वो उनके दर्शन के लिए गुजरात से रोज मीलों दूर पैदल जाते थे। एक दिन उन्होंने मां से प्रार्थना की-मां मुझे काफी दूर चलकर आपके दर्शन के लिए आना पड़ता है,आप मेरे घर के पास चलकर स्थापित हो जाए ताकि मुझे दर्शन करने में सहूलियत हो।
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मां ने महाराजा की बात मान ली लेकिन उन्होने एक शर्त रखी। मां ने कहा-तुम जहां चाहोगे मैं स्थापित हो जाउंगी लेकिन मैं तुम्हारे पीछे-पीछे चलूंगी। अगर तुमने मुझे पीछे मुड़कर देखा तो मैं वहीं स्थापित हो जाउंगी। गुजरात के महाराजा ने मां की ये बात मान ली। राजा आगे आगे चलने लगे और माता पीछे पीछे। रास्ते में एक जगह राजा को इस बात का शक हुआ कि मां आ रही है या नहीं । गुजरात का हिस्सा अभी काफी दूर था जैसे ही उन्होने पीछे मुड़कर देखा मां राजस्थान की सीमा से बाहर गुजरात में ही स्थापित हो गई क्योंकि राजा ने शर्त का उल्लंघन किया था।
उसके बाद से राजा ने माता का मंदिर वहीं बनवा दिया जिसके बाद से ये तीर्थ अंबादेवी मंदिर के नाम से जाना गया। यहां रोपवे के जरिए माता के दर्शन होते हैं। अंबाधाम में अंबाजी का मेला भी लगता है जिसमें भारी भीड़ उमड़ती है। गुजरात में यह तीर्थ गब्बर अंबाजी तीर्थ के नाम से जाना जाता है। दोनों स्थान की महिमा अपरंपरा है जहां नवरात्र में भारी श्रद्धालुओं का जमावड़ा लगता है।
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