अनंत चतुर्दशी व्रत करने से मनुष्य कई जन्मों के पापों से मुक्त होता है। इस व्रत को करने से जीवन की बड़ी से बड़ी कठिनाई और दुख दूर हो जाते हैं। यदि व्रत सम्भव न हो पाए तो पूजा कर चतुर्दशी की कथा को सुने या पढ़ें जरूर। इस कथा को सुनने मात्र से कई गुना पुण्य की प्राप्ति होती है।
पुराणों के अनुसार अनंत चौदस का व्रत कम से कम 14 साल जरूर करना चाहिए। जब व्रत पूर्ण हो जाये तो चौदस के दिन ही व्रत का विधिवत उद्यापन करना चाहिए। बिना व्रत उद्यापन के व्रत का फल नही मिलता। पति-पत्नी यदि दोनों व्रत करें तो इसका विशेष फल मिलता है।
पांडवों और राजा हरिश्चन्द्र ने भी किया था व्रत
महाभारतकाल में जब पांडव अज्ञातवास में थे तब जीवन के कष्टों से मुक्ति के लिए पांडवों ने भी अनंत चतुर्दशी का व्रत किया था। वहीं, राजा हरिश्चन्द्र ने भी इस व्रत को पूरा कर अपने दुखों से मुक्ति पाई थी। इस व्रत की कथा की भी बहुत महिमा बताई गई है। मान्यता है कि ये कथा दुखों का अंत कर व्यक्ति को आगे बढ़ाने वाली है।
अनंत चतुर्दशी व्रत कथा
पौराणिक कथा में लिखा है कि ऋषि सुमंत की पत्नी दीक्षा ने जब पुत्री को जन्म दिया उसके कुछ समय बाद ही उनका देहांत हो गया। पुत्री सुशीला बहुत छोटी थी तो ऋषि ने उसकी बेहतर देखभाल के लिए दूसरा विवाह किया, लेकिन दूसरे माता बेहद क्रूर और कर्कश स्वभाव की थी। जैसे तैसे सुशीला बड़ी हुई। ऋषि सुमंत ने सुशीला का विवाह कर दिया। विवाह के बाद उसका कष्ट कम नहीं हुआ।
सुशीला के पिता ऋषि सुमंत ने उसका विवाह कौण्डिनय नामक ऋषि के साथ किया था, लेकिन सुशीला के जीवन का कष्ट यहां भी नही छूटा। कौण्डिन्य के घर में बहुत गरीबी थी और ससुराल में लोगों का व्यवहार भी अच्छा नही था।
एक दिन सुशीला और उसके पति कहीं जा रहे थे तभी उन्होंने देखा कि लोग अनंत भगवान की पूजा कर रहे हैं। पूजन के बाद हाथ पर अनंत रक्षासूत्र बांध भी बांध रहे थे। सुशीला ने यह देखकर वहां मौजूद लोगों से व्रत के महत्व और पूजा विधि के बारे में जानना चाहा। जब उसे पता चला कि ये व्रत करने से संसार के सारे कष्ट मिट जाते हैं तो उसने भी व्रत करना शुरू कर दिया।
व्रत बीच में छोड़ा तो फिर आई विपदा
व्रत करने से सुशीला के दिन बहुरने लगे और उनकी आर्थिक स्थिति में सुधार गई, लेकिन ये सब देख कर सुशीला के पति कौण्डिन्य को गर्व हो गया। वह इसे अपनी मेहनत का फल मानने लगा। एक साल जब सुशीला अनंत चतुर्दशी की पूजा कर घर लौटी तो उसके पति ने उसके हाथ में रक्षा सूत्र बंधा देखकर कहा कि इसे उतार दो। सुशीला ने बताया कि उनके घर में आई सुख समृद्धि का कारण ये पूजा है तो उसका पति नाराज हो गया। और उसके सुशीला के हाथ से धागा उतरवा दिया।
कौण्डिन्य के इस कदम से भगवान विष्णु नाराज हो गए और उन्होंने उसे फिर दरिद्र बना दिया। फिर एक ऋषि ने कौण्डिन्य को उनकी गलती का अहसास कराया। कौण्डिन्य ने उस ऋषि से इस पाप की मुक्ति के लिए उपाय पूछा। ऋषि ने बताया कि लगातार 14 वर्षों तक यह व्रत करने के बाद ही भगवान विष्णु की कृपा पाई जा सकती है। उसके बाद कौण्डिन्य ने 14 साल तक पूरी तन्मयता से अनंत चतुर्दशी की पूजा की और विष्णु कृपा पाकर दोबारा सुख से रहने लगे।
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