- बुधवार के दिन गणेश स्त्रोत का पाठ फलदायी होता है
- बुध कमजोर हो तो गणेश स्त्रोत का पाठ जरूर करना चाहिए
- गणपति जी को दूर्वा जरूर चढ़ाएं, लेकिन तुलसी न चढ़ाएं
विघ्नहर्ता गणेश जी की पूजा प्रतिदिन करनी चाहिए, लेकिन बुधवार को उनकी विशेष पूजा की जाती है। कोई भी पूजा या शुभ कार्य बिना गणपति जी की पूजा के स्वीकार्य नहीं होती। ऐसे में गणपति जी की पूजा का विशेष विधान बुधवार के दिन जरूर करना चाहिए। मान्यता है कि गणपति जी पूजा के साथ यदि बुधवार के दिन गणेश स्त्रोत का पाठ किया जाए तो इससे भक्तों की मनोकामनाएं ही पूरी नहीं होतीं बल्कि उनके कई कष्ट भी दूर हो जाते हैं। साथ ही धन-संपदा, बुद्धि, विवेक, समृद्धि आदि में वृद्धि होती है।
तुलसी का प्रयोग ना करें
गणपति जी की पूजा में दूर्वा का प्रयोग जरूर करें, लेकिन याद रखें कि उनकी पूजा में तुलसी का प्रयोग नहीं करना चाहिए। बुधवार के दिन उन लोगों को गणपति की विशेष पूजा जरूर करनी चाहिए जिन लोगों का बुध कमजोर हो अथवा जिनका भाग्य साथ नहीं दे रहा हो। साथ ही जिन्हें आर्थिक तंगी हो उन्हें भी गणपति जी की पूजा के साथ गणेश स्त्रोत का पाठ करना चाहिए।
बुधवार को करें ये उपाय
जिन लोगों पर बुध भारी हो उन्हें बुधवार के दिन हरे वस्त्र पहनने चाहिए और गाय को हरा चारा खिलाना चाहिए और गरीबों को हरे साबूत मूंग जरूर दान करना चाहिए। ऐसा करने से बुध मजबूत होता है और उनका मान-सम्मान और धन संकट दूर होता है। बुधवार के दिन गणपति जी की पूजा-अर्चना करने के साथ उनकी आरती करें और फिर चालिसा पढ़ने के बाद भोग लगाएं। अंत में आराम से बैठकर गणेश स्त्रोत का पाठ करें।
गणेश स्तोत्र मंत्र
प्रणम्य शिरसा देवं गौरीपुत्रं विनायकम् ।
भक्तावासं स्मरेन्नित्यं आयुःकामार्थसिद्धये ॥ १॥
प्रथमं वक्रतुण्डं च एकदन्तं द्वितीयकम् ।
तृतीयं कृष्णपिङ्गाक्षं गजवक्त्रं चतुर्थकम् ॥ २॥
लम्बोदरं पञ्चमं च षष्ठं विकटमेव च ।
सप्तमं विघ्नराजेन्द्रं धूम्रवर्णं तथाष्टमम् ॥ ३॥
नवमं भालचन्द्रं च दशमं तु विनायकम् ।
एकादशं गणपतिं द्वादशं तु गजाननम् ॥ ४॥
द्वादशैतानि नामानि त्रिसंध्यं यः पठेन्नरः ।
न च विघ्नभयं तस्य सर्वसिद्धिकरः प्रभुः ॥ ५॥
विद्यार्थी लभते विद्यां धनार्थी लभते धनम् ।
पुत्रार्थी लभते पुत्रान्मोक्षार्थी लभते गतिम् ॥ ६॥
जपेद्गणपतिस्तोत्रं षड्भिर्मासैः फलं लभेत् ।
संवत्सरेण सिद्धिं च लभते नात्र संशयः ॥ ७॥
अष्टेभ्यो ब्राह्मणेभ्यश्च लिखित्वा यः समर्पयेत् ।
तस्य विद्या भवेत्सर्वा गणेशस्य प्रसादतः ॥ ८॥