- श्री गुरु अर्जन देव जी के शहीदी पर्व इस साल सादगी से मनाया जा रहा है।
- जानिए क्यों शहीद हुए गुरु अर्जन देव जी।
- जानें कब श्री अर्जन देव बने थे सिखों के पांचवें गुरु।
सिख गुरुओं और महान योद्धाओं ने धर्म के नाम पर बलिदान होने की ऐसी मिसालें पेश की हैं, जो इतिहास के पन्नों पर अंकित हैं। इनमें में सबसे महान माना जाता है कि सिखों के पांचवें गुरु अर्जन देव का बलिदान। साल 1606 में लाहौर में मुगल बादशाह जहांगीर ने उन्हें बंदी बना लिया था और मृत्यूदंग की सजा सुनाई थी। इस साल कोरोना के खतरे को देखते हुए श्री गुरु अर्जन देव जी के शहीदी पर्व को बहुत सादगी से मनाया जा रहा है।
क्यों शहीद हुए गुरु अर्जन देव जी
धर्म रक्षक और मानवता के सच्चे सेवक थे श्री गुरु अर्जन देव जी। अपने युग में श्री अर्जन देव जी एक सर्वमान्य लोकनायक थे और उनके मन में सभी धर्मों के प्रति सम्मान था। अर्जन देव जी ने अमृतसर साहिब में हरिमंदर साहिब की स्थापना कर के सिखों को एक केंद्रीय आध्यात्मिक स्थान दिया था। 'गुरु ग्रंथ साहिब' का संपादन करके उसे मानवता के अद्भुत मार्गदर्शक के रूप में स्थापित किया। उनकी यह सेवा कुछ लोगों को रास नहीं आ रही थी। इसके साथ ही ग्रंथ साहिब के संपादन को लेकर कुछ असामाजिक तत्वों ने अकबर बादशाह के पास यह शिकायत की कि ग्रंथ में इस्लाम के खिलाफ लिखा गया है, लेकिन बाद में जब अकबर को वाणी की महानता का पता चला, तो उन्होंने भाई गुरदास एवं बाबा बुढ्ढाके माध्यम से 51मोहरें भेंट कर खेद ज्ञापित किया। जहांगीर ने लाहौर में साल 1606 में अकारण अत्यंत यातना देकर उनकी हत्या करवा दी थी। सिख धर्म में सबसे पहली शहीदी पांचवें सिख गुरु अर्जन देव जी की हुई।
जानें कब श्री अर्जन देव बने थे सिखों के पांचवें गुरु
श्री गुरु अर्जन देव का जन्म 15 अप्रैल 1563 को गोइंदवाल साहिब में हुआ था। उनके पिता का नाम रामदास और माता का नाम बीवी भानी जी था। उनके नाना और पिता सिखों के तीसरे और चौथे गुरु थे। अर्जन देव जी की परवरिश गुरु अमरदास जी जैसे गुरु तथा बाबा बुड्ढा जी जैसे महापुरूषों की देख-रेख में हुई थी। उन्होंने गुरु अमरदास जी से गुरमुखी की शिक्षा हासिल की थी।
साल 1579 में 16 साल की उम्र में अर्जन देव जी का विवाह जालंधर जिले के मौ साहिब गांव में कृष्णचंद की बेटी माता 'गंगा जी' हुई थी। वहीं साल 1581 ईस्वी में सिखों के चौथे गुरु रामदास ने अर्जन देव जी को अपने स्थान पर सिखों का पांचवें गुरु के रूप में नियुक्त किया था।