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जानें किधर से शुरू करें भगवान की परिक्रमा, क्‍या है महत्‍व 

Updated Jul 18, 2019 | 17:19 IST | टाइम्स नाउ डिजिटल

आप मंदिर में जाते हैं तो भगवान की पूजा करने के बाद उनकी प्रतिमा या पूरे मंदिर की परिक्रमा भी करते होंगे लेकिन आपको ये पता है कि किन भगवान की कितनी बार परिक्रमा करनी चाहिए और इसके किस दिशा से शुरू करें।

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तस्वीर साभार:&nbspInstagram
Shiva
मुख्य बातें
  • भगवान या मंदिर के परिक्रमा करने के कुछ नियम हैं
  • परिक्रमा करने की दिशा भी ईश्वर के आर्शीवाद को प्रभावित करती है
  • भगवान की प्रतिमा की जब भी परिक्रमा करें हमेशा दाहिने ओर करें

मंदिर में घुसते ही आप भगवान के समक्ष लगे घंटे को बजा कर उनका महिमा मंडन करते होंगे। उसके बाद उनके आगे नतमस्तक हो कर उनकी वंदना करते हुए विधिवत पूजा करते होंगे। इसके बाद बारी आती है भगवान या मंदिर के परिक्रमा करने की। ज्यादातर एक बार या तीन बार लोग परिक्रमा लगा कर पूजा को पूर्ण समझ लेते हैं, लेकिन ये कितना सही है ये नहीं पता होता। भगवान या मंदिर के परिक्रमा करने के कुछ नियम भी हैं और तरीके भी। साथ ही किस दिशा से परिक्रमा शुरू करना चाहिए यह भी ध्यान रखना बेहद जरूरी है। क्योंकि परिक्रमा करने की दिशा भी ईश्वर के आर्शीवाद को प्रभावित करती है। तो आइए जानें की परिक्रमा के नियम क्या हैं।

जिस मंदिर में भगवान की प्रतिमा को प्राण-प्रतिष्ठित किया जाता है, वहां यह माना जाता है कि उस स्थान पर मंदिर के मध्य के साथ चारों ओर कुछ दूरी तक दिव्य शक्ति व्याप्त होती है। ऐसे में दैवीय शक्ति के आभामंडल की गति दक्षिणवर्ती होती है। यही कारण है कि देवीय शक्ति का तेज और बल पाने के लिए आपको प्रतिमा के दाएं हाथ से परिक्रमा करनी चाहिए। ऐसी प्रतिमा की अगर आप बाएं दिशा की ओर से परिक्रमा की जाती है तो इसके विपरीत प्रभाव मिलते हैं। क्योंकि देवीय शक्ति का तेज और बल दाएं हाथ होता है लेकिन जब परिक्रमा बाएं से की जाए तो देवीय शक्ति और आपकी आंतरिक शक्त के बीच विरोधाभास पैदा हो जाता है जिससे आपकी अपनी शक्ति और तेज का हास्र होने लगता है।

याद रखें भगवान की प्रतिमा की जब भी परिक्रमा करें हमेशा दाहिने ओर करना चाहिए। ईश्वर की सारी शक्तियां और सकारात्मक ऊर्जा उत्तर से दक्षिण की ओर जाती हैं। जबकि यदि आपने बाएं ओर से परिक्रमा किया तो आपकी परिक्रमा का कोई लाभ आपको नहीं मिलेगा और इसके नकारात्मक प्रभाव मिलेंगे। दक्षिण की ओर जो परिक्रमा होती है उसे प्रदक्षिणा कहते हैं।

जानिए किस भगवान की कितनी बार करें परिक्रमा

हनुमानजी की तीन बार परिक्रमा करनी चाहिए जबकि सूर्य देव की सात, गणपति भगवान की चार बार करें। वहीं भगवान विष्णु और उनके सभी अवतारों की चार बार करें। जबकि मां दुर्गा की परिक्रमा एक बार ही करना चाहिए। इसके साथ ही शिव जी की आधी प्रदक्षिणा ही करें। इसके पीछे यह मान्यता है कि जलधारी को लांघना नहीं चाहिए। जलधारी तक पंहुचकर वापस लौट जाएं यदि जलधारी लांघ ली तो परिक्रमा पूरी मान ली जाएगी।

जब जगह न हो तो सामने ही गोल-गोल घूमें

वैसे तो मंदिर या प्रतिमा के गोल घूम कर परिक्रमा करनी चाहिए लेकिन कई मंदिर में या प्रतिमा के पीछे जगह नहीं होती है। ऐसे में आप प्रतिमा या मंदिर के सामने ही गोल-गोल घूम कर परिक्रमा कर लें।

परिक्रमा करते हुए इस मंत्र का करें जाप

यानि कानि च पापानि जन्मांतर कृतानि च।
तानि सवार्णि नश्यन्तु प्रदक्षिणे पदे-पदे।।

ईश्वर का कृपा पात्र बनने के लिए कोशिशा करें कि जिस भी पूजा को आप करने जा रहे हैं उसके पूरे नियम कायदे को जान लें।

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