- गणपति जी के जन्म से जुड़ी दो दंत कथाएं पुराणों में वर्णित हैं
- पहली उत्पत्ति देवी पार्वती के किए गए व्रत से हुई थी
- गणपति जी उतपत्ति पार्वति जी के मैल से भी बताई जाती है
पुराणों में गणेशजी की उत्पत्ति की दो बातें लिखी हैं और दोनों ही एक-दूसरे की विरोधाभासी कथाएं मिलती हैं। भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को मध्याह्न के समय गणेशजी का जन्म दोपहर 12 बजे हुआ था। यह तो सही है, लेकिन उनकी उत्पति हुई कैसे इसे लेकर दो रहस्य पुराणों में वर्णित हैं। गणपति जी के उत्पत्ति के बारे में एक दंतकथा यह है कि देवी पार्वती ने उन्हें पाने के लिए व्रत किया था। जब कि दूसरी दंतकथा के अनुसार गणपति जी की उत्पति देवी पार्वती की दो सखियों के कहने पर हुई थी। तो आइए गणपति जी से जुड़ी इन्हीं दो दंतकथाओं के बारे में जानें।
इन कथाओं से जानें गणपति जी की उत्त्पति का रहस्य
पुण्यक उपवास कर के देवी ने पाया था गणपति जी को
पुराणों के अनुसार देवी पार्वती ने पुत्र की प्राप्ति के लिए पुण्यक नामक उपवास किया था और इस उपवास का फल देवी पार्वती को गणपति जी के रूप में मिला था। दंतकथा के अनुसार इस व्रत के लिए शिवजी ने इंद्र से पारिजात वृक्ष देने को कहा था, लेकिन इंद्र ने इस वृक्ष को देने में अपनी असमर्थता जताई थी। तब भगवान शिव ने देवी पार्वती के व्रत के लिए पारिजात से भरे वन का ही निर्माण कर दिया था।
सखियों के कहने पर देवी ने गणपति की उत्पति की
शिव महापुराण में गणपति जी की उत्पत्ति की कहानी अलग ही वर्णित है। शिव पुराण के अनुसार देवी की दो सखियां थी, जया और विजया। एक बार इन दो सखियों ने देवी पार्वती से कहा कि, नंदी और सभी गण महादेव की आज्ञा का ही पालन करते हैं। ऐसे में आपके पास भी ऐसा गण होना चाहिए जो सिर्फ आपकी आज्ञा का पालन करें। तब देवी पार्वती ने इस गण के रूप में गणपति जी की रचना की। देवी ने गणपति जी की आपने शरीर के मैल से रचित किया था।
गणपति जी की उत्पत्ति की ये दो रहस्य पुराणों में वर्णित हैं, लेकिन दोनों में ही उनके जन्म का दिन एक ही वर्णित है।