- गंगा को हिंदू धर्म में बेहद पवित्र नदी माना जाता है
- राजा भागीरथ ने कठोर तपस्या करके बुलाया था मां गंगा को
- यहां पढ़ें मां गंगा के अवतरण की पूरी कहानी
Ganga Dussehra 2022 Vrat Katha in Hindi: गंगा दशहरा भारत में बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। यह मां गंगा के धरती पर अवतरण का दिन माना जाता है। हिंदू धर्म में मां गंगा को बेहद पवित्र नदी कहा जाता है। ऐसी मान्यता है कि इस नदी में स्नान करने से सारे पाप धुल जाते हैं। हिंदू पंचांग के अनुसार गंगा दशहरा ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को आता है। शास्त्र के अनुसार इसी दिन मां गंगा राजा भागीरथ के कहने पर धरती पर अवतरित हुई थी। इस दिन मां गंगा की विशेष पूजा अर्चना की जाती है। यदि आप गंगा दशहरा में मां गंगा का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए व्रत रखने की सोच रहे हैं, तो यहां आप गंगा दशहरा की पौराणिक कथा पढ़ सकते है।
Ganga Dussehra Vrat Katha in Hindi: गंगा दशहरा की पौराणिक कहानी
पौराणिक कथा के अनुसार प्राचीन काल में अयोध्या में राजा भागीरथ रहते थे। आपको बता दें उन्हें भगवान श्रीराम का पूर्वज माना जाता है। एक बार की बात है, राजा भागीरथ को अपने पूर्वजों की तर्पण करने के लिए गंगाजल की जरूरत पड़ी। उस समय मां गंगा सिर्फ स्वर्ग में ही बहा करती थी। यह सोचकर राजा भागीरथ ने मां गंगा को धरती पर लाने के लिए कई वर्षों तक कठोर तपस्या की। लेकिन फिर भी उन्हें कोई सफलता नहीं मिली।
Ganga Dussehra 2022: गंगा दशहरा पर क्यों करें गंगा स्नान
यह देखकर राजा भागीरथ हिमालय पर चले गए और वहां जाकर वह फिर से कठोर तपस्या में लीन हो गए। उन की कठोर तपस्या को देखकर मां गंगा बेहद प्रसन्न हुए और उन्हें आशीर्वाद देने के लिए वहां प्रकट हुए। राजा भागीरथ मां गंगा को अपने समक्ष देखकर बहुत प्रसन्न हुए। उन्होंने मां गंगा को धरती पर आने को कहा।
यह सुनकर मां गंगा उनके आग्रह को स्वीकार कर लिया। लेकिन राजा भागीरथ के सामने एक बहुत बड़ी समस्या खड़ी हो गई। मां गंगा का वेग बहुत ज्यादा था। यदि वह धरती पर आती तो पूरी धरती तबाह हो जाती। उनके इस परेशानी को सिर्फ महादेव यानी भगवान शिव ही दूर कर सकते थे। राजा भागीरथ को जब इस बात का पता चला, तब उन्होंने भगवान शिव की तपस्या करनी शुरू कर दी।
एक साल तक राजा भागीरथ भगवान शिव की कठोर तपस्या करते रहे। कभी वह पैर के अंगूठे पर खड़े होकर तपस्या होते थे, तो कभी बिना खाए। राजा भागीरथ की इस कठोर तपस्या को देख कर भगवान शिव बहुत प्रसन्न हुए और उनके आग्रह को स्वीकार कर लिए। तब ब्रह्मा जी ने अपने कमंडल से मां गंगा की धारा प्रवाहित की। तब भगवान शिव ने मां गंगा को अपनी जटा में बांध लिया।
लगभग 32 दिनों तक मां गंगा शिवजी की जटा में बहती रही। ज्येष्ठ महीने के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को भगवान शिव ने अपनी एक जटा खोली और गंगा माता को धरती पर जाने को कहा। तब राजा भगीरथ ने मां गंगा को धरती पर आने के लिए हिमालय के दुर्गम पहाड़ियों के बीच रास्ता बनाया। जब मां गंगा पहाड़ से मैदानी इलाके में पहुंची, तब राजा भागीरथ ने गंगा के जल से अपने पूर्वजों का तर्पण किया और उन्हें मुक्ति दिलाई। जिस दिन मां गंगा धरती पर अवतरित हुई थी, वह जेष्ठ महीने के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि। तभी से इस दिन मां गंगा की विशेष पूजा की जाती है।
(डिस्क्लेमर: यह पाठ्य सामग्री आम धारणाओं और इंटरनेट पर मौजूद सामग्री के आधार पर लिखी गई है। टाइम्स नाउ नवभारत इसकी पुष्टि नहीं करता है।)