Geeta Gyan In Lock down Part 5: गीता:अध्याय 04 श्लोक 09
जन्म कर्म च में दिव्यमेवं यो वेत्ति तत्वतः।
त्यक्तवा देहं पुनर्जन्म नैति मामेति सोअर्जुन।।
भावार्थ- भगवान श्री कृष्ण कहते हैं- हे अर्जुन!मेरे जन्म व कर्म दिव्य हैं। ये निर्मल है ।आलौकिक है। जो मनुष्य तत्व से मुझे जान लेता है,वह अपने नश्वर शरीर को त्यागने के बाद भी पुनर्जन्म को प्राप्त नहीं होता है। वो केवल मुझे प्राप्त होता है।
दार्शनिक व आध्यात्मिक व्याख्या- इसमें एक शब्द आया है तत्व।आइए पहले तत्व को जानें।सर्वशक्तिमान परमात्मा ही एक मात्र सत्य है।वो अविनाशी है। कृष्ण परम आश्रय हैं।भगवान का धरती पर अवतार सिर्फ धर्म की स्थापना करने व संसार का उद्धार करने के लिए ही होता है। वह अपने प्रेमियों के लिए भी अवतरित होकर उनको दर्शन देता है। कृष्ण के समान दयालु,प्रेमी व पतितपावन दूसरा कोई है ही नहीं,बस यही विचारकर जो भक्त कृष्ण भक्ति में रम जाता है उसकी आसक्ति संसार में होती ही नहीं है।वो तो अब कृष्ण का हो चुका है क्योंकि उसने कृष्ण को तत्व से जान लिया है। दूसरे शब्दों में कहें कि जब परमेश्वर कृष्ण के सिवा आपके चिंतन में दूसरा कुछ हो ही मत तो जान लेना चाहिए कि आप कृष्ण को तत्व से जान गए हैं।
यहां परमपिता भगवान श्री कृष्ण कहते हैं कि जो मुझको तत्व से जान लिया वो शरीर का त्याग करने के बाद फिर जन्म नहीं लेता बल्कि स्वयं मुझे ही प्राप्त करता है। जन्म तथा पुनर्जन्म से निकलने का कितना आसान तरीका भगवान ने बता दिया ।भगवान ने स्वयं अपने बारे में कहा कि मेरा जन्म तथा कर्म निर्मल है। इसमें भी दर्शन है अर्थात मन की निर्मलता ही भगवान को पसंद है क्योंकि वह खुद ही निर्मल है। मन की निर्मलता से ही परमात्मा में प्रेम का उदय होता है।
वर्तमान परिप्रेक्ष्य में इसका अर्थ- भय के इस माहौल में जब हम सब भयाक्रांत हैं।हर तरफ डर है।मन कलुषित हो चुका है।प्रकृति नाराज है।महत्वाकांक्षी योजनाओं ने आज मानवता व मनुष्य के अस्तित्व पर ही संकट ला दिया है।पूरा विश्व विज्ञान की अंधी दौड़ में शामिल है।इस परिवेश में आध्यात्म को विज्ञान का आधार मानना होगा।मन को निर्मल कर पुनर्विचार करना होगा कि हमने इस प्रकृति के साथ कितना अन्याय किया है। भारत तपोभूमि है। हम ईश्वर को मानते हैं।प्रकृति की पूजा करते हैं।आइए सबसे पहले अपने मन को निर्मल करें फिर भगवान श्री कृष्ण को सब कुछ मानकर उन एक मात्र तत्व को सब कुछ सौंपकर निश्चिंत होकर अपने जन्म को सार्थक बनाएं।