- कुबेर धन के दाता है
- लक्ष्मी के साथ कुबेर की पूजा होती है
- पृथ्वी के धन के दाता है
God of Wealth Kuber: अकूत धन और नवनिधियों के स्वामी कुबेर धन के अधिपति यानि धन के राजा हैं। पृथ्वीलोक की समस्त धन सम्पदा का एकमात्र उन्हें ही स्वामी बनाया गया है। कुबेर भगवान शिव के परमप्रिय सेवक भी हैं। कुबेर का निवास वटवृक्ष पर बताया गया है। ऐसे वृक्ष घर आंगन में नहीं होते हैं। गांव के केन्द्र में भी नहीं होते हैं। वे अधिकतर गांव के बाहर या बियाबान जंगलों में होते हैं। उन्हें धन का घड़ा लिए कल्पित किया गया है।
लक्ष्मी के धन की मनोरमा कल्पना धान की बालियां और पिटारी आदि हैं। कंहा कुबेर का महाजनी रूप। दोनों में कहीं कोई समानता नहीं है। कुबेर को धन अत्यन्त भौतिक और स्थूल है। कुबेर के संबंध में प्रचलित है कि उनके तीन पैर और आठ दांत है। अपनी कुरूपता के लिए वे अति प्रसिद्ध हैं। ऐसा कई ग्रन्थों में बताया गया है। सृष्टि में एक मात्र धन के दाता कुबेर ही है। कुबरे की शादी मूर दानव की पुत्री से हुई थी जिनके दो पुत्र नलकुबेर और मणिग्रीव थे। कुबेर की पुत्री का नाम मीनाक्षी था। अप्सरा रंभा नलकुबेर की पत्नी थी जिस पर रावण ने बुरी नजर डाली थी।
इस वजह से कुबेर को लुटेरा कहा गया है
कुबेर की जो भी मूर्तियां पाई जाती हैं वे भी अधिकतर स्थूल और बैडोल हैं। ब्राह्मणों में तो इन्हें राक्षस ही कहा गया है। वहां ये चोरों, लुटेरों और ठगों के सरदार के रूप में वर्णित हैं। कुबेर को राक्षस के अलावा कहीं कहीं यक्ष भी कहा गया है। यक्ष धन का रक्षक ही होता है। उसे भोगता नहीं है। पुराने मंदिरों के बाहरी भागों में कुबेर की मूर्तियां पाए जाने का रहस्य भी यही है कि वे मंदिरों के धन के रक्षक के रूप में कल्पित और स्वीकृत हैं।
जानिए कुबेर का धन कहाँ होता है
कौटिल्य ने भी खजानों में रक्षक के रूप में कुबेर की मूर्ति रखने के बारे में लिखा है। लक्ष्मी के धन के साथ मंगल का भाव जुड़ा हुआ है। वह धन अपने पास नहीं रखते बल्कि दूसरों को धन देते हैं। कुबेर का धन खजाने के रूप में कहीं गड़ा या स्थिर पड़ा रहता है। महर्षि पुलस्त्य के पुत्र महामुनि विश्रवा ने भारद्वाज जी की कन्या इलविला का पाणिग्रहण संस्कार किया था। उसी से कुबेर की उत्पत्ति हुई। भगवान ब्रह्मा ने इन्हें समस्त सम्पत्ति का स्वामी बनाया। उत्त्तर दिशा का लोकपाल भी इन्ही को नियुक्त किया गया था। कैलाश के समीप इनकी अलकापुरी है। श्वेतवर्ण तुन्दिल शरीर अष्टदन्त एवं तीन चरणों वाले गदाधारी कुबेर अपनी सत्तर योजन विस्तीर्ण वैश्रवणी सभा में विराजते हैं। यही इनकी खासियत भी है। यही कुबेर की पहचान है।
पृथ्वी के कोष के अधिपति कुबेर ही है
कुबेर के पुत्र नलकूबर और मणिग्रीव भगवान श्री कृष्णचन्द्र द्वारा नारद जी के शाप से मुक्त होकर इनके समीप स्थित रहते हैं। इनके अनुचर यक्ष निरन्तर इनकी सेवा करते हैं। पृथ्वी में जितना कोष है। सबके अधिपति कुबेर ही हैं। इनकी कृपा से ही मनुष्य को भू गर्भ स्थित निधि प्राप्त होती है। धरती पर जिन लोगों पर धन संपदा है वह सब कुबेर की ही देन है। कुबेर की कृपा हर कोई प्राप्त करना चाहता है। दीपावली की रात्रि माता लक्ष्मी के साथ कुबेर को भी पूजा जाता है।
इस दिशा में रखा कुबेर यंत्र होगी धनवर्षा
वैदिक काल में कुबेर को अंधेरे का देवता के रूप में संदर्भित किया गया है। यही नहीं उन्हें सभी बुरे प्राणियों का स्वामी भी कहा गया है। राजाधिराज कुबेर विश्व के अपरिसीम धन और नव निधियों के स्वामी हैं। ऐसा शास्त्रों के कई प्रसंगों में बताया गया है।इनके पूजन से घर में सुख समृद्धि आती है। जब भी इनकी मूर्ति चित्र अथवा यंत्र स्थापित करें तो हमेशा उसे उत्तर दिशा में स्थापित करना चाहिए। कुबेर पूजा से अकस्मात धन प्राप्ति का योग बनता है। इनकी कृपा से मनुष्य को भूगर्भ स्थित निधि प्राप्त होती है। कुबेर की मूर्ति कोषागार में स्थापित की जानी चाहिए। कुबेर का निवास वटवृक्ष में होता है। लक्ष्मी के साथ हमेशा कुबेर का पूजन किया जाता है। कहते हैं कि लक्ष्मी आती अपनी मर्जी से है पर जाती कुबेर की मर्जी से है।