- तंत्र विद्या में इन 10 महाविद्याओं की पूजा का विशेष महत्व हैं।
- शास्त्र के अनुसार इन 10 महाविद्याओं की पूजा आराधना करने से विशेष फल की प्राप्ति होती है।
- ये 10 महाविद्या मां दुर्गा के ही स्वरूप हैं।
Das Mahavidya Names And Their Beej Mantra: हिंदू शास्त्र में इन 10 महाविद्याओं का विशेष उल्लेख किया गया है। तंत्र विद्या में इन 10 देवियों की विशेष पूजा अर्चना की जाती है। महाविद्याओं की पूजा-आराधना सच्चे मन से करने से व्यक्ति को विशेष फल की प्राप्ति होती है। ये 10 महाविद्याएं मां दुर्गा के ही रूप हैं। यही दसों दिशाओं की स्वामिनी हैं। मां दुर्गा के इन 10 स्वरूपों की पूजा-आराधना तांत्रिक साधक खूब करते हैं। यदि आप महाविद्याओं की पूजा आराधना करते हैं या करने की सोच रहे हैं, तो इस आर्टिकल को पढ़कर आप इन से जुड़ी कई सारी जानकारियां प्राप्त कर सकते हैं।
10 महाविद्याओं के नाम
1. मां काली
10 महाविद्याओं में पहला रूप मां काली का है। राक्षसों का वध करने के लिए मां काली यह रूप धारण किया था। तांत्रिक सिद्धि प्राप्त करने के लिए माता के इस रूप की पूजा आराधना करते है। माता के इस रूप की पूजा आराधना भक्ति पूर्वक करने से माता बहुत जल्द प्रसन्न होकर सभी मनोकामना को शीघ्र पूर्ण कर देती हैं। मां काली को उत्तर दिशा की शक्ति कहा जाता है।
माता काली का बीज मंत्र- ॐ क्रीं क्रीं क्रीं हूँ हूँ ह्रीं ह्रीं दक्षिणे कालिके क्रीं क्रीं क्रीं हूँ हूँ ह्रीं ह्रीं स्वाहा॥
2. मां तारा
तारा माता की पूजा आराधना करने से आर्थिक उन्नति और मोक्ष की प्राप्ति होती है। शास्त्रों के अनुसार, महर्षि वशिष्ठ ने तारा माता की आराधना सबसे पहले की थी। तारा माता तांत्रिकों की मुख्य देवी मानी जाती हैं।
तारा माता का बीज मंत्र- ऊँ ह्नीं स्त्रीं हुं फट्।।
3. त्रिपुर सुंदरी माता
त्रिपुर सुंदरी माता को राज राजेश्वरी या ललिता के नाम से भी पुकारा जाता है। माता का मंदिर त्रिपुरा में स्थित है। इन माता की चारभुजा और तीन नेत्र हैं। शास्त्र के अनुसार इसी स्थान पर देवी सती के धारण किए गए वस्त्र गिरे थे।
त्रिपुर सुंदरी माता का बीज मंत्र- ऐं ह्नीं श्रीं त्रिपुर सुंदरीयै नम:
4. भुवनेश्वरी माता
शास्त्र के अनुसार त्रिपुरा भुवनेश्वरी माता की पूजा आराधना करने से पुत्र की प्राप्ति होती है। इन माता को शताक्षी और शाकंभरी नाम से भी जाना जाता हैं। इस महाविद्या की पूजा आराधना भक्ति पूर्वक करने से सूर्य के समान तेज ऊर्जा और मान सम्मान प्राप्त होता हैं।
भुवनेश्वरी माता का बीज मंत्र- ऐं ह्नीं श्रीं नम:
5. छिन्नमस्ता माता
इस स्वरूप में देवी माता का सिर कटा हुआ है और घड़ से रक्त की तीन धाराएं प्रवाहित होती हैं। इस रूप में माता गधे पर बैठी दिखाई देती हैं। माता के इस रूप में शांत मन से पूजा करने से माता शांत स्वरूप में दर्शन देती हैं।
छिन्नमस्ता माता का बीज मंत्र- 'श्रीं ह्नीं क्लीं ऎं वज्र वैरोचानियै हूं हूं फट् स्वाहा।।
6. त्रिपुरभैरवी माता
माता के इस रूप की पूजा आराधना करने से सभी परेशानियां दूर हो जाती हैं। इस रूप में माता की चार भुजाएं और तीन नेत्र हैं। इन्हें षोडशी के नाम से भी पुकारा जाता है।
त्रिपुरभैरवी माता का बीज मंत्र- ऊँ ह्नीं भैरवी क्लौं ह्नीं स्वाहा:।।
7. ध्रुमावती माता
ध्रुमावती माता का कोई स्वरूप नहीं है। इसलिए इन्हें विधवा माता का रूप कहा जाता है। ध्रुमावती माता की आराधना करने से व्यक्ति में आत्मबल प्रबल होता है। ऋग्वेद में इन्हें 'सुतरा' नाम जिया गया है।
ध्रुमावती माता का बीज मंत्र- ऊँ धूं धूं धूमावती देव्यै स्वाहा:।।
8. बगलामुखी माता
माता के इस रूप की पूजा आराधना करने से युद्ध में विजय की प्राप्ति होती है और शत्रुओं का नाश होता है। शास्त्र के महाभारत में भगवान श्री कृष्ण और अर्जुन ने भी युद्ध प्रारंभ करने से पहले बगलामुखी मां की पूजा आराधना की थी। माता की पूजा करने की वजह से उन्हें युद्ध में विजय की प्राप्ति हुई थी। माता की आराधना करने से शत्रु और भय से मुक्ति मिलती हैं।
बगलामुखी माता का बीज मंत्र- ऊँ ह्नीं बगुलामुखी देव्यै ह्नीं ऊँ नम:।।
9. मातंगी माता
मातंगी माता की पूजा आराधना करने से व्यक्ति का गृहस्थ जीवन सुखमय और सफल बनता है। मतंग भगवान शिव का भी नाम है। मातंगी माता की पूजा आराधना सिद्धि प्राप्त करवाता है।
मातंगी माता का बीज मंत्र- ऊँ ह्नीं ऐं भगवती मतंगेश्वरी श्रीं स्वाहा:।।
10. कमला माता
कमला माता को लक्ष्मी के नाम से भी जाना जाता है। शास्त्र के अनुसार, समुद्र मंथन के दौरान कमला माता की उत्पत्ति हुई थी। कमल माता की पूजा आराधना करने से व्यक्ति धनवान और बुद्धिमान हो जाता है।
कमला माता का बीज मंत्र- ऊँ ह्नीं अष्ट महालक्ष्म्यै नम:।।
पाठ के लाभ
1. 10 महाविद्या पाठ का जाप करने से व्यक्ति को माता पार्वती और शिव जी की विशेष कृपा प्राप्त होती हैं।
2. इस पाठ को करने से व्यक्ति को यश, समृद्धि, विजय और धन की प्राप्ति होती हैं।
3. यह पाठ रोगों से मुक्ति दिलाता है।
4. इस पाठ को करने से कुंडली जागरण, समाधि, ब्रह्मज्ञान, सम्मोहन और मोक्ष जैसी चीजों की प्राप्ति हो की जा सकती हैं।
5. महाविद्या का पाठ करने से व्यक्ति में आत्मविश्वास, पौरूष और बल की बढ़ोतरी होती हैं।