नई दिल्ली: हनुमान जी और भीम के संबंधों का उल्लेख कई कथाओं में मिलता है। यहां हम एक ऐसी ही कथा बता रहे हैं जिसमें हनुमान जी ने अपने 3 केश यानी बाल भीम को दिए थे।
अपने पिता की इच्छा को पूरा करने के लिए एक बार पांडवों ने राजसूय यज्ञ करने की योजना बनाई। आयोजन को भव्य बनाने के लिए युधिष्ठर ने यज्ञ में भगवान शिव के परम भक्त ऋषि पुरुष मृगा को आमंत्रित करने का फैसला किया। ऋषि पुरुष मृगा का आधा शरीर पुरुष का था और पैर मृग के समान थे। उन्हें ढूंढने और बुलाने का जिम्मा भीम को सौंपा गया। जब भीम निकलने लगे तो श्री कृष्ण ने उनको बताया कि पुरुषमृगा की गति अति तेज है और उनका मुकाबला न कर पाने की स्थिति में वह भीम को मार डालेंगे।
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हनुमान आए भीम की मदद को
भीम को इस बात से थोड़ी चिंता हुई लेकिन ज्येष्ठ भाई की बात मान वह पुरुषमृगा की खोज में हिमालय की ओर चल दिए। रास्ते में वह हनुमान जी मिले और उनके पूछने पर भीम ने उन्हें पूरी बात बता दी। हनुमान ने कहा यह सच है कि पुरुषमृगा की गति बहुत तेज है। लेकिन उनकी गति धीमी करने का एक उपाय है। वह शिवजी के परम भक्त हैं इसलिए उनके रास्ते में शिवलिंग आए तो वह पूजा करने के लिए जरूर रुकेंगे।
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हनुमान ने दिए अपने 3 केश
हनुमान ने भीम को अपने 3 केश देकर कहा कि जब भी पुरुषमृगा तुम्हें पकड़ने लगे तब एक बाल गिरा देना। यह एक बाल 1000 शिवलिंगों में परिवर्तित हो जाएगा। पुरुषमृगा अपने स्वाभाव अनुसार हर शिवलिंग की पूजा करेंगे और तुम आगे निकल जाना।
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उसके बाद भीम आज्ञा लेकर आगे बढ़े। कुछ दूर जाकर ही भीम को पुरुष मृगा मिल गए जो को भगवान महादेव की स्तुति कर रहे थे। भीम ने उन्हें प्रणाम किया और अपने आने का कारण बताया, इस पर ऋषि ने सशर्त जाने के लिए हां कर दी।
पुरुषमृगा ने रखी थी ये शर्त
पुरुषमृगा की शर्त थी कि भीम को उनसे पहले हस्तिनापुर पहुंचाना था और ऐसा न कर पाने पर वह भीम को खा जाएंगे। भीम ने भाई की इच्छा को ध्यान में रखते हुए हां कर दी और हस्तिनापुर की तरफ दौड़ पड़े। जैसे ही पुरुषमृगा ने उनको पकड़ने की कोशिश की, तभी भीम ने हनुमान का एक बाल गिरा दिया और यह वास्तव में 1000 शिवलिंगों में बदल गया।
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लेकिन भीम आ गए पकड़ में
शिव के परमभक्त होने के नाते पुरुषुमृगा हर शिवलिंग को प्रणाम करने लगे और भीम भागते रहे। जब वो हस्तिनापुर के द्वार में घुसने ही वाले थे, तो पुरुषमृगा की पकड़ में उनके पैर आ गए।
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लेकिन जैसे ही पुरुषमृगा ने भीम को खाना चाहा, तभी श्री कृष्ण और युधिष्ठर वहां पहुंच गए। तब युधिष्ठर से न्याय करने को कहा गया। और उन्होंने कहा कि चूंकि भीम के पांव द्वार के बाहर रह गए थे इसलिए पुरुषमृगा सिर्फ भीम के पैर ही खाने के हकदार हैं। युधिष्ठर के न्याय से पुरुषमृगा प्रसन्न हुए और उन्होंने न सिर्फ भीम को छोड़ दिया बल्कि उन्होंने राजसूय यज्ञ में भी भाग लिया।
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