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सफला एकादशी: मिलेगा आगे बढ़ने का वरदान, भूलकर भी ना करें ये काम

Updated Dec 12, 2017 | 18:40 IST | Medha Chawla

सफला एकादशी पौष कृष्ण पक्ष की एकादशी को पड़ती है। जानें क्‍या है इसका महत्‍व...

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तस्वीर साभार:&nbspBCCL
सफला एकादशी 2017

नई द‍िल्‍ली: पौष कृष्ण पक्ष की एकादशी को सफला एकादशी कहा जाता है। सफला एकादशी के व्रत को सफलता देने वाला माना जाता है। इस दिन सच्‍चे मन से पूजन करने पर भगवान विष्णु की कृपा मिलती है। इस बार सफला एकादशी 13 दिसंबर को है।

कैसे करें पूजन
सफला एकादशी पर सुबह या शाम के समय भगवान विष्णु का पूजन करें। फिर माथे पर सफेद चन्दन या गोपी चंदन लगाना शुभ माना जाता है। पूजा में श्री हरि को पंचामृत, पुष्प और फल अर्पित करें। चाहें तो एक वेला उपवास रखकर , एक वेला पूर्ण सात्विक आहार ग्रहण करें।
शाम को आहार ग्रहण करने के पहले जल में दीपदान करें। आज के दिन गर्म वस्त्र और अन्न का दान करना भी विशेष शुभ होता है। 

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आर्थिक लाभ के लिए पूजन व‍िध‍ि
सफला एकादशी पर धन का वरदान पाने के लिए लक्ष्मी जी के साथ श्री हरि की पूजा करें। मां लक्ष्मी को सौंफ और श्री हरि को मिसरी अर्पित करें। पूजा के बाद ॐ ह्रीं श्रीं लक्ष्मीवासुदेवाय नमः का 108 बार जाप करें।
पूजा के बाद सौंफ और मिसरी को एक साथ रख लें और इसे रोजाना सुबह प्रसाद के तौर पर ग्रहण करें।

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सफला एकादशी पर ये ना करें
एकादशी को बिस्तर पर नहीं, जमीन पर सोना चाहिए। साथ ही मांस और नशीली वस्तुओं का सेवन भूलकर ना करें। एकादशी के दिन लहसुन, प्याज का सेवन करना भी वर्जित है। वहीं सफला एकादशी की सुबह दातुन करना भी वर्जित माना गया है। इस दिन किसी पेड़ या पौधे की  की फूल-पत्ती तोड़ना भी अशुभ माना जाता है। 

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सफला एकादशी की व्रत कथा 
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार माना जाता है कि महिष्मान नाम के राजा के चार पुत्र थे। राजा का सबसे बड़ा पुत्र लुम्पक महापापी था। राजा को उसे कुकर्मों का पता लगा तो उन्‍होंने अपने राज्य से लुम्पक को निकाल दिया। लेकिन लुम्‍पक समझा नहीं और उसने अपने पिता की नगरी में चोरी करने की ठान ली। वो दिन में राज्य से बाहर रहता था और रात में जाकर चोरी करता था।

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उसके पाप बढ़ते जा रहे थे अब वो लोगों को नुकसान भी पहुंचाने लगा था। जिस वन में वो रहता था, वहां वो एक पीपल के पेड़ के नीचे रहता था। पौष माह की दशम तिथि के दिन वो ठंड से बेहोश हो गया। अगले दिन जब उसे होश आया तो कमजोरी के कारण वो कुछ भी नहीं खा पाया और आस पास मिले फल उसने पीपल की जड़ में रख दिए। इस तरह से अनजाने में उससे एकादशी का व्रत पूरा हो गया।

एकादशी के व्रत से भगवान प्रसन्न होते हैं और उसके सभी पाप माफ कर देते हैं। जब उसे पता चलता है कि तो लुम्‍पक को भी गलती का एहसास होता है और राजा उसको वापस अपना लेते हैं।

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