Unknown Facts of Hanuman Ji: 8 अप्रैल को देशभर में हनुमान जयंती मनाई जाएगी। रामभक्त हनुमान की पूजा-आराधना का यह पर्व इस बार कोरोना संकट के दौरान है, इस वजह से भक्त घरों में ही उनकी पूजा कर रहे हैं। हनुमान जी के बारे में अनगिनत बातें कही जाती हैं। कुछ बातें आपने सुनी होंगी और कुछ नहीं। कुछ ऐसी बातें हैं जो काफी रोचक हैं और आपको हैरान कर देंगी। आइये जानते हैं उनके अनसुने रहस्यों के बारे में।
- ज्योतिषीयों के सटीक गणना के अनुसार हनुमान जी का जन्म 58 हजार 112 वर्ष पहले तथा लोकमान्यता के अनुसार त्रेतायुग के अंतिम चरण में चैत्र पूर्णिमा को मंगलवार के दिन चित्रा नक्षत्र व मेष लग्न के योग में सुबह 6.03 बजे भारत देश में आज के झारखंड राज्य के गुमला जिले के आंजन नाम के छोटे से पहाड़ी गांव के एक गुफा में हुआ था।
- कुछ विचारों के अनुसार भगवान शिवजी के ११वें रुद्रावतार, सबसे बलवान और बुद्धिमान माने जाते हैं। रामायण के अनुसार वे जानकी के अत्यधिक प्रिय हैं।
- इस धरा पर जिन सात मनीषियों को अमरत्व का वरदान प्राप्त है, उनमें बजरंगबली भी हैं। हनुमान जी का अवतार भगवान राम की सहायता के लिये हुआ।
- इन्हें बजरंगबली के रूप में जाना जाता है क्योंकि इनका शरीर एक वज्र की तरह था। वे पवन-पुत्र के रूप में जाने जाते हैं। वायु अथवा पवन (हवा के देवता) ने हनुमान को पालने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
- इनके जन्म के पश्चात् एक दिन इनकी माता फल लाने के लिये इन्हें आश्रम में छोड़कर चली गईं। जब शिशु हनुमान को भूख लगी तो वे उगते हुये सूर्य को फल समझकर उसे पकड़ने आकाश में उड़ने लगे।
- इन्द्र के वज्र से हनुमानजी की ठुड्डी (संस्कृत में हनु) टूट गई थी। इसलिये उनको हनुमान का नाम दिया गया। इसके अलावा ये अनेक नामों से प्रसिद्ध है जैसे बजरंग बली, मारुति, अंजनि सुत, पवनपुत्र, संकटमोचन, केसरीनन्दन, महावीर, कपीश, शंकर सुवन आदि।
- हनुमानजी को बाल-ब्रह्मचारी कहा जाता है, जो कि वे हैं भी, क्योंकि उनकी शादी कभी नहीं हुई। हालांकि उनका एक पुत्र भी है, जिसका नाम मकरध्वज है। मकरध्वज का जन्म एक मछली के गर्भ से हनुमान जी के पसीने की वजह से हुआ था।
- भगवान श्रीराम के गुरु विश्वामित्र एक बार हनुमानजी से गुस्सा हो गए और उन्होंने प्रभु राम को हनुमानजी को मृत्युदंड देने को कहा था। गुरु की आज्ञा मानकर भगवान राम ने ऐसा किया। भगवान राम प्रहार करते रहे और हनुमानजी राम नाम जपते रहे। इसका फल यह रहा कि हनुमान जी का कुछ नहीं हुआ।