हिंदू धर्म कुंभ स्नान (Kumbh Snan) का अपना ही अलग महत्व है, हर 4 वर्ष में अर्धकुंभ लगता है और 12 वर्ष में महाकुंभ, इस साल हरिद्वार में महाकुंभ मकर संक्राति से शुरू हो गया है वैसे तो महाकुंभ 12 साल में लगता है, लेकिन इस बार ज्योतिष गणना और ग्रहों के फेर के कारण इस बार महाकुंभ 11 वें वर्ष लग रहा है। मान्यता है कि मनुष्य को अपने जीवन में कुंभ स्नान जरूर करना चाहिए, क्योंकि हिंदू धर्म में इस स्नान के बराबार किसी भी स्नान को नहीं माना गया है।
कुंभ में बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं और संत-साधुओं का आगमन हो रहा है इसको देखते हुए हरिद्वार को तैयार किया गया है और यहां काफी इंतजाम किए गए हैं, सर्दी का मौसम है और कड़ाके की ठंड है इसके बावजूद श्रद्धालुओं की आस्था इसपर भारी पड़ रही है।
वहीं कोरोना महामारी के बीच इतना बड़ा धार्मिक आयोजन उत्तराखंड की सरकार और स्थानीय प्रशासन के लिए बड़ी चुनौती है जिसके लिए पर्याप्त इंतजाम किए गए हैं।
धर्म-आस्था के साथ-साथ उत्तराखंड की लोक परंपराओं और संस्कृति के रंगों की छटा भी हरिद्वार में जगह जगह बिखर रही है और कुंभ नगरी को आस्था और संस्कृति के रंग में रंगा गया है।
महाकुंभ में पहला शाही स्नान 11 मार्च 2021, शिवरात्रि के दिन पड़ेगा वहीं दूसरा शाही स्नान 12 अप्रैल 2021, सोमवती अमावस्या के दिन पड़ेगा जबकि तीसरा शाही स्नान 14 अप्रैल 2021, मेष संक्रांति पर पड़ेगा और चौथा शाही स्नान 27 अप्रैल 202 को बैसाख पूर्णिमा के दिन पड़ेगा।
हिंदू धर्म में कुंभ स्नान को तीर्थ समान ही महत्व दिया गया है। माना जाता है कि कुंभ स्नान करने से सभी प्रकार के पापों से मुक्ति मिल जाती है और उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है। कुंभ स्नान से पितृ भी शांत होते हैं और अपना आर्शीवाद प्रदान करते हैं।
माना जाता है कि कुंभ मेला दुनिया की सबसे बड़ी धार्मिक मण्डली है। यह प्रयागराज में गंगा, यमुना और सरस्वती (संगम) के संगम पर और नासिक, उज्जैन और हरिद्वार में गोदावरी, शिप्रा और गंगा नदी के किनारे, समय-समय पर बारह वर्षों में एक बार आयोजित किया जाता है ऐसे कुंभ मेले को पूर्ण कुंभ कहा जाता है।
यह कहा जाता है कि देवताओं का एक दिन मनुष्यों के बारह वर्षों के बराबर होता है। इसलिए, बारह साल में एक बार पूर्ण कुंभ मेला लगता है। इसके अलावा, तारीख ग्रहों के संरेखण पर निर्भर करती है।