- भगवान शिव को पाने के लिए देवी पार्वती ने किया था घनघोर तप
- देवी पार्वती को भगवान शिव ने सुनाई थी पूर्व जन्म में उनके तप की कथा
- माता पार्वती के पिता गिरिराज ने देवी के तप के आगे हार मान गए
Hartalika Teej Vrat Katha: हरतालिका तीज का व्रत सुहाग की सेहत और दीर्घायु से जुड़ा है। माना जाता है कि इस व्रत को सर्वप्रथम देवी पार्वती ने किया था ताकि वह शिव जी को अपने पति के रूप में पा सकें। यह इसी व्रत का तप था कि शंकर जी ने देवी पार्वती को अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार किया था। तभी से हरतालिका तीज पर व्रत करने की परंपरा चलती आ रही है। इस व्रत को विधि पूर्वक करने के अलावा इससे जुड़ी कथा का पाठ भी जरूरी है। इसके बिना तप का फल अधूरा ही रह जाता है।
आइए जानें देवी की तपस्या और उनको शिव को पाने से जुड़ी हरतालिका तीज की कथा जिसे स्वयं शिवजी ने देवी पार्वती को सुनाया था।
यहां पढ़ें हरतालिका तीज व्रत की कथा
भगवान शिव ने पार्वतीजी को उनके पूर्व जन्म में किए गए व्रत और तप के माहात्म्य के बारे में बताते हुए कहा कि, हे गौरी आपने एक पूर्व जन्म में पर्वतराज हिमालय पर स्थित गंगा के तट पर बाल्यावस्था में बारह वर्षों तक अधोमुखी होकर घोर तप किया था। बिना अन्न के आपने पेड़ों के सूखे पत्ते चबा कर बीताए थे। इसके साथ ही माघ के महीने में जब घनघोर शीत में आपने जल में रहकर तप किया। इतना ही नहीं वैशाख में हाड़ जला देने वाली गर्मी में आपने पंचाग्नि से शरीर को तपाया था। श्रावण की मूसलधार वर्षा में बिना अन्न-जल ग्रहण किए आपने तपस्या की थी। इस तपस्या को देख आपके पिता बहुत दुखी होते थे। एक दिन तुम्हारी तपस्या तथा पिता के क्लेश को देखकर नारदजी आपके घर आए और वह भगवान विष्णु का संदेशा लाए थे। आपकी कन्या का तप देख कर भगवान विष्णु बेहद प्रसन्न है और वह उनसे विवाह करना चाहते हैं।
नारदजी की बात सुनकर गिरिराज बहुत प्रसन्न हुए और नारद जी से कहा कि यदि स्वयं भगवान विष्णु मेरी कन्या से विवाह करना चाहते हैं तो मुझे क्या आपत्ति हो सकती है। देवी आपके पिता से स्वीकृति पाकर नारदजी विष्णु के पास गए और उनसे शुभ समाचार सुनाया, लेकिन जब ये बात आपको पता चली तो आपके दुखी और पीड़ा से घिर गईं। इस मानसिक कष्ट को जब आपकी सहेली ने देखा तो वह आपका अपहरण कर आपको जंगल में ले आई और वहां छुपा कर रख दिया और यहीं आपने सालों घनघोर तप किया। आपके पिता ने विष्णु जी को वचन दिया था इसलिए आपकी खोज शुरू हो गई। इधर तुम्हारी खोज होती रही और उधर आप अपनी सखी के साथ नदी के तट पर एक गुफा में मेरी आराधना में लीन थीं।
भाद्रपद शुक्ल तृतीया को हस्त नक्षत्र था। उस दिन आपने रेत के शिवलिंग का निर्माण करके व्रत किया। रात भर मेरी स्तुति के गीत गाकर जागती रही और इस तपस्या से मेरा दिल पिघल गया। आपकी कष्ट साध्य तपस्या के प्रभाव से मेरा आसन तक डोलने लगा था और मेरी समाधि टूट गई थी। इसे बाद में आपके समक्ष पहुंचा और आपसे वर मांगने को कहा तब आपने मुझे कहा कि, मैं हृदय से आपको पति के रूप में वरण कर चुकी हूं। यदि आप सचमुच मेरी तपस्या से प्रसन्न होकर आप यहां पधारे हैं तो मुझे अपनी अर्धांगिनी के रूप में स्वीकार कर लीजिए।
तब मैं 'तथास्तु' कह कर कैलाश पर्वत पर वापस लौट गया और आपने पूजा की समस्त सामग्री को नदी में प्रवाहित करके अपनी सहेली सहित व्रत का पारणा किया। उसी समय अपने मित्र-बंधु व दरबारियों सहित गिरिराज तुम्हें खोजते-खोजते वहां आ पहुंचे और तुम्हारी इस कष्ट साध्य तपस्या का उद्देश्य पूछा। आपकी दशा को देखकर गिरिराज अत्यधिक दुखी हुए और पीड़ा के कारण उनकी आंखों में आंसू निकल गए तब आपने अपने पिताजी से कहा कि मैं महादेव को पति के रूप में पाना चाहती थी। मेरी तपस्या से वह प्रसन्न हो कर मुझे से विवाह करने को राजी हो गए हैं। आपने मेरा विष्णुजी से विवाह तय किया था इस कारण मैं यहां जगल में आ गइ थी। अब मैं आपके साथ इसी शर्त पर घर जाऊंगी कि आप मेरा विवाह भगवान शिवजी से करेंगे। तब गिरिराज मान गए और तुम्हें घर ले गए। कुछ समय के पश्चात उन्होंने हम दोनों को विवाह विधि-विधान से कर दिया।
हे पार्वती! भाद्रपद की शुक्ल तृतीया को आपने मेरे लिए जो व्रत किया इसके परिणामस्वरूप मेरा तुमसे विवाह हो सका। इसलिए इस व्रत का महत्व बहुत है और ये व्रत जो भी सुहागिने करेंगी उनका सुहाग और सौभाग्य हमेशा बना रहेगा।