- कजरी तीज के दिन होती है माता नीमड़ी की पूजा
- नीमड़ी माता की पूजा से संतान सुख की होती है प्राप्ति
- नीमड़ी माता को नीम की लकड़ी के प्रतीक के रूप में पूजा जाता है
कजरी तीज का व्रत सुहागिन महिलाएं पति की लंबी उम्र की कामना के लिए करती हैं, वहीं कुंवारी कन्याएं मनचाहा पति पाने के लिए ये व्रत करती हैं। कजरी तीज का ये व्रत भद्रपद मास में शुक्ल पक्ष की तृतीया को किया जाता है। इस दिन निर्जला व्रत करने की परंपरा है। इस व्रत में मुख्यत: देवी पार्वती और शिवजी की पूजा ही की जाती है, लेकिन कुछ जगहों पर नीमड़ी माता की पूजा का भी रिवाज है।
नीमड़ी माता की पूजा के पीछे एक पौराणिक कथा है। मान्यता है की नीमड़ी माता की पूजा संतान के लिए की जाती है। तीज का व्रत सुख और सौभाग्य के साथ सुहाग के लिए किया जाता है, इसलिए संतान से भी ये व्रत जुड़ा होता है और माता नीमड़ी की पूजा इसी से जुड़ी है।
कौन हैं माता नीमड़ी
मान्यता के अनुसार नीम की डाली की नीमड़ी माता के रूप में पूजा की जाती है। नीमड़ी माता लोक देवी की तरह हैं। नीम की डाली को नीमड़ी माता के प्रतीक के रूप में पूजा जाता है। नीमड़ी माता की पूजा के पीछे एक पौराणिक कथा चली आ रही है। संतान की सुरक्षा के लिए इनकी पूजा की जाती है।
कैसे करते हैं माता नीमड़ी की पूजा
पूजा के लिए मिट्टी से दीवार के सहारे या फिर किसी बड़ी सी थाली में मिट्टी की पाली बनाकर उसमें नीमड़ी की डाली रोपी जाती है। फिर एक तरफ पानी डालकर पानी तालाब जैसी आकृति बनाई जाती है। सुबह के समय इसे किया जाता है और शाम के समय महिलाएं सज-संवरकर पूजा करने बैठती हैं। थाली में जो तालाब बनाया जाता है उसमें कच्चा दूध और जल डालते हैं और माता की पूजा में श्रृंगार के सामान को चढ़ाते हैं। नीमड़ी माता को ककड़ी, नीम्बू, कच्चे दूध और सत्तू का भोग लगाया जाता है। इसके बाद माता नीमड़ी की कथा सुनी जाती है। पूजा के बाद चंद्र दर्शन कर उन्हें भी जल चढ़ाया जाता है।
नीमड़ी माता व्रत कथा
एक बहुत ही धनवान सेठ सेठानी थे, लेकिन उनकी कोई संतान नहीं थी। इसके लिए सेठानी ने भादौं की कजरी यानी बड़ी तीज का व्रत किया और नीमड़ी माता से प्रार्थना की, कि अगर उसे संतान हो जाए तो वह उन्हें सवा मण का सातु चढ़ाएंगी। माता के कृपा से सेठानी को नौंवे महीन ही पुत्र की प्राप्ति हो गई, लेकिन सेठानी सातु चढ़ना भूल गई। देखते देखते सेठानी को सात पुत्र हो गए। पहले बेटे का विवाह भी हो गया और सुहागरात में ही सांप ने पुत्र को डंस लिया जिससे उसकी मौत हो गई। एक के बाद एक छ: पुत्रों की मौत शादी की रात ही होती गई। इसे देख कर सेठ-सेठानी ने तय किया कि वह अपने सातवें बेटे का विवाह ही नहीं करेंगे, लेकिन गांंव वालों के बहुत कहने व समझाने पर सेठ-सेठानी ने बेटे की शादी दूर देश में करना तय किया। बेटे की सगाई के लिए सेठ बहुत दूर एक गाँव आए तो देखा वहाँ चार-पांच लड़कियाँ खेल रही थी जो मिटटी का घर बनाकर तोड़ रही थी। उनमे से एक लड़की ने कहा में अपना घर नहीं तोडूंगी। सेठ को ये लड़की समझदार लगी। खेलकर जब लड़की वापस अपने घर जाने लगी तो सेठ जी भी पीछे -पीछे उसके घर गए। सेठ ने लड़की के माता पिता से बात करके अपने लड़के की सगाई व विवाह की बात पक्की कर दी। इसके बाद विवाह भी हो गया।
बारात विदा हुई लंबा सफर था और उस दिन कजरी तीज भी था। इसलिए लड़की की मांं ने लड़की से कहा कि वह सातु व सीख दे रही हूं। रास्ते में कहीं पर शाम को नीमड़ी माता की पूजा करना, नीमड़ी माता की कहानी सुनना और सातु चढ़ा कर इसे खाना और सासु मां के लिए भी ले जाना। रास्ते में ससुर ने बहु को खाने का कहा तो वह बोली आज कजरी तीज का उपवास है। शाम को नीमड़ी माता का पूजन करके नीमड़ी माता की कहानी सुनकर ही भोजन करेगी।
एक कुएं के पास नीमड़ी नजर आई तो सेठ जी ने गाड़ी रोक दी। बहु नीमड़ी माता की पूजा करने लगी तो नीमड़ी माता पीछे हट गयी। बहु ने पूछा– हे माता, आप नाराज क्यों हैं? आप पीछे क्यों हटीं? तब नीमड़ी माता ने उसकी सास की सारी कहानी उसे बताई कि वह कैसे सातु चढ़ना भूल गई। बहु बोली हमारे परिवार की भूल को क्षमा करें मां और मैं आपको सातु चढ़ाऊंगी। कृपया मेरे सारे जेठ को वापस कर दो और मुझे पूजन करने दो। माता नववधू की भक्ति व श्रद्धा देखकर प्रसन्न हो गई। बहु ने नीमड़ी माता का पूजन किया और चांंद को अर्ध्य दिया, सातु पास लिया और कलपना ससुर जी को दे दिया। प्रातः होने पर बारात अपने नगर लौट आई।
बहु से ससुराल में प्रवेश करते ही उसके सारे जेठ प्रकट हो गए। सासु बहु के पैर पकड़कर धन्यवाद देने लगी तब बहु ने सारी कहानी सास को बताई और कहा अपनी भूल को सुधार करें और नीमड़ी माता को सातु चढ़ाएं। बारह महीने बाद जब कजरी तीज पर सभी बहुओं और सास ने मिल कर सवा सात मण का सातु नीमड़ी माता को चढ़ाया।