- भारतवर्ष में होली का पावन पर्व बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है।
- मान्यता है कि भगवान श्री कृष्ण ने इस दिन राक्षसी पूतना का वध किया था।
- होली को लेकर भगवान शिव और माता पार्वती की यह कथा भी काफी प्रचलित है।
Holi 2022 Vrat Katha in Hindi: हिंदू पंचांग के अनुसार फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तिथि को होली का पावन पर्व मनाया जाता है। ज्योतिषों की मानें तो इस बार भद्राकाल होने के कारण होलिका दहन के एक दिन बाद यानी 19 मार्च 2022, शनिवार को रंगों का त्योहार मनाने का विधान है। भारतवर्ष में होली का पावन पर्व बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। इस दिन मथुरा, वृंदावन और काशी समेत पूरा देश होली के रंग में रंगमय हो जाता है। यह पावन पर्व भक्त प्रहलाद की भक्ति और भगवान द्वारा उसकी रक्षा के रूप में मनाया जाता है।
मान्यता है कि होली के दिन कामदेव का पुनर्जन्म हुआ था। वहीं भगवान श्री कृष्ण ने इस दिन राक्षसी पूतना का वध किया था। पौराणिक ग्रंथों में होली को लेकर अनेको कथाएं मौजूद हैं, लेकिन इसमें कामदेव, पूतना और भक्त प्रहलाद की कहानी सबसे प्रमुख है। ऐसे में इस लेख के माध्यम से आइए होली की पौराणिक कथा पर एक नजर डालते हैं।
Happy Holi 2022 Sanskrit Wishes Images, Quotes
होली की भगवान शिव और माता पार्वती की कथा
धार्मिक ग्रंथों में होली को लेकर भगवान शिव और माता पार्वती की यह कथा काफी प्रचलित है। पौराणिक कथाओं के अनुसार कालांतर में माता सती देवराज हिमालय के घर माता पार्वती ने पुत्री के रूप में जन्म लिया। जन्म के पश्चात देवर्षि नारद ने बेटी का भाग्य बताते हुए कहा कि इसे जो वर मिलेगा वह भगवान शिव के जैसा होगा। इसे सुनने के बाद माता पार्वती ने भगवान शिव को ही अपना वर मान लिया। तथा माता पार्वती ने भोलेनाथ को पति के रूप में प्राप्त करने के लिए सभी सुख सुविधाओं को छोड़कर कठिन तपस्या करने लगी।
वहीं दूसरी ओर भोलेनाथ समाधि में लीन थे। देवी पार्वती का भगवान शिव का विवाह कराने के लिए तपस्या को भंग करना अत्यंत आवश्यक था। ऐसे में देवताओं ने तपस्या भंग करने के लिए कामदेव को मनाया। कामदेव ने प्रेम बांण चलाया और भोलेनाथ की तपस्या भंग हो गई। जिससे भगवान शिव अत्यंत क्रोधित हुए और उन्होंने अपना तीसरा नेत्र खोल दिया। जिससे कामदेव वहीं भस्म हो गए और तीनों लोक में अंधेरा छा गया। कामदेव की पत्नी विलाप करते हुए भोलेनाथ के पास पहुंची और उसने भगवान शिव को इसका कारण बताया।
क्षमा याचना के बाद भोलेनाथ ने कामदेव को द्वापर युग में श्री कृष्ण के पुत्र के रूप में जन्म लेने का आशीर्वाद दिया था। कहा जाता है कि होली के दिन कामदेव का भगवान श्रीकृष्ण के पुत्र के रूप में जन्म हुआ।
Holika Dahan Katha: होलिका दहन की कथा हिंदी में
होली की श्रीकृष्ण और राक्षसी पूतना कथा
होली की दूसरी कथा भगवान श्रीकृष्ण और राक्षसी पूतना से संबंधित है। पौराणिक कथाओं के अनुसार कंस ने भगवान श्रीकृष्ण के जन्म के पश्चात उनका वध करने के लिए राक्षसी पूतना को भेजा था। कहा जाता है कि पूजतना में 10 हाथियों जितना बल था, वह अत्यंत शक्तिशाली और मायावी थी। कंस ने उसे गकुल में सभी नवजात शिशुओं को मारने का आदेश दिया। वह अपने स्तनों पर विष का लेप लगाकर सुंदर स्त्री का रूप धारण कर नंदबाबा के घर पहुंची। भगवान कृष्ण ने पूतना को देखते ही पहचना लिया।
पूतना ने हंसते हुए मां यशोदा के गोद से कृष्ण जी को लेकर गायब हो गई और गांव से बाहर आकर भगवान को स्तनपान कराने लगी। गोद में ही भगवान कृष्ण ने पूतना का वध कर दिया, पूतना का वध करने के पश्चात बालरूपी कृष्ण घांस पर लेटकर खेलने लगे। कहते हैं कि मृत्यु के पश्चात पूतना का शरीर लुप्त हो गया। इसलिए ग्वालों ने उसका पुतला बनाकर जला डाला। इस दिन से प्रत्येक वर्ष होली का पावन पर्व मनाया जाता है। मथुरा और वृंदावन में 40 दिन पहले होली का जश्न देखने को मिलता है।
इस होली अपनी राशि के मुताबिक करें रंगों का इस्तेमाल, जिंदगी में होगी खुशियों की बरसात
होली की भक्त प्रह्लाद की कथा
तीसरी कथा श्रीहरि भगवान विष्णु और भक्त प्रहलाद से जुड़ी है। राक्षस राज हिरण्याकश्यप ने ब्रह्मा जी को प्रसन्न कर वरदान प्राप्त कर लिया था कि, संसार का कोई भी जीव या देवी-देवता उसका वध ना कर सकें। इसके बाद वह खुद को भगवान मानने लगा था, वह चाहता था कि लोग भगवान विष्णु की तरह उसकी भी पूजा करें। हिरण्याकश्यप को भगवान के प्रति प्रहलाद की भक्ति बिल्कुल पसंद नहीं थी, वहीं प्रहलाद हमेशा प्रभु की भक्ति में लीन रहता था।
प्रहलाद का यह स्वभाव हिरण्याकश्यप को बिल्कुल भी पसंद नहीं था। उसने प्रहलाद को कई दिनों तक बंदी बनाए रखने के बाद कड़ी यातनाएं दी, लेकिन भगवान विष्णु की कृपा दृष्टि होने के कारण प्रहलाद पर इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ा। इसे देख हिरण्याकश्यप काफी परेशान हुआ और उसने प्रहलाद को मारने के लिए होलिका को बुलाया।
आपको बता दें होलिका को आग में ना जलने का वरदान प्राप्त था। होलिका भक्त प्रहलाद को लेकर आग में बैठ गई, लेकिन भगवान विष्णु की कृपा से प्रहलाद को एक खरोंच भी नहीं आई और होलिका आग में जलकर राख हो गई। इस दिन से होलिका दहन की प्रथा शुरू हो गई। इसे बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक माना जाता है।