- आज भद्राकाल के बाद किया जाएगा होलिका दहन।
- इस दिन विधिवत होलिका पूजन करने से होता है सभी कष्टों का निवारण।
- होलिका दहन की कथा श्रीहरि भगवान विष्णु और भक्त प्रहलाद से जुड़ी है।
Holika Dahan 2022 Vrat Katha in Hindi: हिंदू पंचांग के अनुसार फाल्गुन मास की पूर्णिमा तिथि को होलिका दहन किया जाता है। बुराई पर अच्छाई की जीत के इस पर्व में जितना महत्व रंगों का होता है, उतना ही होलिका दहन का भी है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन विधि विधान से होलिका पूजन करने से सभी कष्टों का निवारण होता है और मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। अमूमन होलिका दहन फाल्गुन मास की पूर्णिमा तिथि को सूर्यास्त के बाद किया जाता है, लेकिन भद्राकाल होने के कारण इस बार होलिका दहन 17 मार्च 2022, गुरुवार की देर रात 12 बजकर 58 मिनट से रात 2 बजकर 12 मिनट के बीच किया जाएगा (Holika Dahan 2022 Date and Time in India)।
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स्कंद पुराण में वर्णित एक कथा के अनुसार बिना आरती व कथा के पूजा संपूर्ण नहीं मानी जाती। होलिका दहन की कथा श्रीहरि भगवान विष्णु के नरसिंह अवतार और भक्त प्रहलाद से जुड़ी है। ऐसे में यहां एक क्लिक कर आप होलिका दहन की पूरी कथा पढ़ सकते हैं।
Holika Dahan 2022 Date, Puja Muhurat
होलिका दहन की कथा, Holika Dahan ki Kahani
पौराणिक ग्रंथों में प्रचलित एक कथा के अनुसार श्रीहरि भगवान विष्णु के परम भक्त प्रहलाद का जन्म एक असुर परिवार में हुआ। राक्षस राज हिरण्याकश्यप ने ब्रह्मा जी को प्रसन्न कर वरदान प्राप्त कर लिया था कि, संसार का कोई भी जीव-जंतू, देवी-देवता या राक्षस उसका वध ना कर सके। इसके बाद वह खुद को भगवान मानने लगा था, वह चाहता था कि लोग भगवान विष्णु की तरह उसकी भी पूजा करें। हिरण्याकश्यप को भगवान के प्रति प्रहलाद की भक्ति बिल्कुल पसंद नहीं थी, वहीं प्रहलाद किसी दूसरे चीज की चिंता किए बिना हमेशा प्रभु की भक्ति में लीन रहता था।
प्रहलाद का यह स्वभाव हिरण्याकश्यप को बिल्कुल भी पसंद नहीं था। उसने प्रहलाद को कई दिनों तक बंदी बनाए रखने के बाद कड़ी यातनाएं दी, लेकिन भगवान विष्णु की कृपा दृष्टि होने के कारण उसपर इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ा। इसे देख हिरण्याकश्यप काफी परेशान हुआ और उसने प्रहलाद को मारने के लिए होलिका को बुलाया। होलिका को आग में ना जलने का वरदान प्राप्त था।
होलिका भक्त प्रहलाद को लेकर आग में बैठ गई, लेकिन भगवान विष्णु की कृपा से प्रहलाद को एक खरोंच भी नहीं आई और होलिका आग में जलकर राख हो गई। इस दिन से होलिका दहन की प्रथा शुरू हो गई। इसे बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक माना जाता है।
डिस्क्लेमर : यह पाठ्य सामग्री आम धारणाओं और इंटरनेट पर मौजूद सामग्री के आधार पर लिखी गई है। टाइम्स नाउ नवभारत इसकी पुष्टि नहीं करता है।