Diwali Laxmi Puja 2018: दीपों का पर्व दीपावली माता लक्ष्मी को प्रसन्न करने और उनके आगमन की तिथि है। माता लक्ष्मी को प्रिय लगने वाले पुष्पों और वस्त्रों से माता का श्रृंगार करना चाहिए। माता को पुष्प में कमल और गुलाब प्रिय है। मिष्ठान भोजन और खीर पसंद है। केसर की मिठाई और हलवा प्रिय है। दीप के लिए गाय का घी आवश्यक है।
अब स्थिर लग्न वृष या सिंह में ही दीपावली में लक्ष्मी पूजन करते हैं। शुभ मुहूर्त में माता लक्ष्मी और गणेश जी की प्रतिमा के सामने घी का दीपक जलाते हैं। इसके पहले स्मरण रहे की माता लक्ष्मी और गणेश जी को काठ के आसन पर लाल वस्त्र बिछाकर आसीन करते हैं। अब सुगन्धित धूप बत्ती जलाते हैं। माता को केसर की मिठाई या खीर जो भी व्यवस्था हो उसका भोग लगाते हैं। सुजीत जी महाराज से जानिए दीपावली के लिए दिन कैसे करें मां लक्ष्मी का पूजन...
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वैसे तो माता लक्ष्मी को प्रसन्न करने के तमाम तरीके हैं। वेदों और महापुराणों में कई मंत्र उल्लेखित हैं लेकिन दीपावली में माता लक्ष्मी का आगमन अपने घर में या व्यावसायिक प्रतिष्ठान में कराना होता है। तो इसका उल्लेख श्री सूक्त के ऋग्वैदिक श्री सूक्तम के प्रथम ही श्लोक में है।
ॐ हिरण्यवर्णान हरिणीं सुवर्ण रजत स्त्रजाम
चंद्रा हिरण्यमयी लक्ष्मी जातवेदो म आ वहः।।
दिवाली पूजा का शुभ मुहूर्त
पंचांग की गणना के अनुसार 7 नवंबर की शाम 5 बजकर 27 मिनट से 8 बज कर 30 मिनट तक रहेगा।
इसका तात्पर्य ही माता का अपने निवास या व्यावसायिक प्रतिष्ठान ,पर आ वहः अर्थात स्थायी बुलावा है। कनक धारा स्तोत्र और श्री सूक्त का प्रभाव इतना अधिक है कि इसी की विधिवत पूजा करके आदि गुरु शंकराचार्य जी ने स्वर्ण वर्षा करवाई थी। इसलिए इस दिन सम्पूर्ण श्री सूक्त का विधिवत पाठ करके फिर कनक धारा स्तोत्र का पाठ करवाना चाहिए। वृष का स्वामी शुक्र होता है। सिंह लग्न का स्वामी सूर्य है। प्रयास करना चाहिए कि घर की या व्यावसायिक प्रतिष्ठान की पूजा वृष लग्न में हो क्योंकि शुक्र वैभव और धन प्रदान करते हैं। प्रशासनिक अधिकारी और राजनीतिज्ञों का संबंध सूर्य से है, अतः इनकी पूजा सिंह लग्न में करवानी चाहिए।
अमावस्या की इस रात्रि में तांत्रिक अनुष्ठान खूब होते हैं। अर्धरात्रि के बाद , महानिशीथ काल और सिंह लग्न में ये पूजा करना चाहिए। एक बात स्मरण रहे कि उल्लू की बलि कदापि मत करें। सुनने में आता है कि बहुत लोग तांत्रिक सिद्धियां प्राप्त करने के लिए उल्लू की बलि देते हैं ,यह पूर्णतया शास्त्र विरुद्ध और अमानवीय है। इस प्रकार माता लक्ष्मी की विधि विधान से पूजन करके पुनः हवन करें फिर आरती करें।
दीपावली की रात्रि में सोना नहीं चाहिए। पूरी रात्रि माता लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए उनकी उपासना कीजिये। अब प्रसाद ग्रहण करके उसका वितरण करेंगे। इस पूरी प्रक्रिया में आपके मन की निर्मलता और माता के चरणों में समर्पण भाव अत्यंत आवश्यक है क्योंकि वही भक्ति का मूल है। यदि आपमें भाव है और भक्ति है तो आप चाहे जैसे माता की पूजा करेंगे वह पूजा माता को स्वीकार्य होगी और वह प्रसन्न होंगी।
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