हिंदू धर्म में सूर्य देव को जल देने की महिमा बताई गई है। वैदिक काल से ही उनकी उपासना होती आ रही है। विष्णु पुराण, भगवत पुराण, ब्रह्मा वैवर्त पुराण आदि में इसकी चर्चा विस्तार से की गई है। यदि मनुष्य को उनकी कृपा चाहिये तो सूर्य को जल जरूर चढ़ाना चाहिये। जिस जातक की कुंडली में सूर्य की स्थिति सही ना हो या उनका ताप अधिक हो तो उसे सूर्य को जल चढ़ाने की सलाह दी जाती है।
सूर्य को जल देने के लिए शीशे, प्लास्टिक, चांदी... आदि किसी भी धातु के बर्तन का प्रयोग नहीं करना चाहिए। सूर्य को जल देते समय केवल तांबे के पात्र का ही प्रयोग उचित है। साथ ही सूर्य को जल चढ़ाने से अन्य ग्रह भी मजबूत होते हैं। कुछ लोग सूर्य को अर्घ्य देते समय जल में गुड़ या चावल भी मिला लेते हैं। ये अर्थहीन है, इससे प्रभाव कम होने लगता है। आइये अब जानते हैं सूर्य देवता को अर्घ्य देते समय किस मंत्र का जाप करना चाहिये।
एहि सूर्य! सहस्त्रांशो! तेजो राशे! जगत्पते!
अनुकम्प्यं मां भक्त्या गृहाणार्घ्य दिवाकर!
अर्थ- हे सहस्त्रांशो! हे तेजो राशे! हे जगत्पते! मुझ पर अनुकंपा करें। मेरे द्वारा श्रद्धा-भक्तिपूर्वक दिए गए इस अर्घ्य को स्वीकार कीजिए, आपको बारंबार शीश नवाता हूं।
वैसे इन मंत्रों के आह्वान में भी दिव्य शक्ति विद्यमान है, जो ये हैं-
* ॐ आरोग्य प्रदायकाय सूर्याय नमः।
* ॐ हीं हीं सूर्याय नमः।
* ॐ आदित्याय नमः।
* ॐ घ्रणि सूर्याय नमः।
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