- हर साल ओड़िशा के पुरी में भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा निकाली जाती है
- भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा से जुड़े कई रोचक तथ्य हैं जो हैरान करते हैं
- हर साल निकलने वाले रथ को नए सिरे से तैयार किया जाता है
ओड़िशा के पुरी में हर साल आयोजित होने वाले जगन्नाथ रथ यात्रा का इतिहास बेहद पुराना है। यह भारत में हिंदुओं का एक बड़ा फेस्टिवल है। इसमें भगवान जगन्नाथ की रथ पर सवारी निकाली जाती है इस यात्रा का बड़ा धार्मिक महत्व माना जाता है।
भगवान जगन्नाथ जी की रथ यात्रा का धार्मिक के साथ-साथ सांस्कृतिक और सामाजिक महत्व भी है। पुरी में आयोजित होने वाले इस रथ यात्रा पर पूरे देश की नजर रहती है। इस यात्रा में श्रद्धालुओं का भारी भीड़ जुटती है। आज हम आपको इस रथ यात्रा के कुछ रोचक तथ्यों के बारे में बताने जा रहे हैं-
- पुरी स्थित जगन्नाथ मंदिर में पूजा के दौरान इसके गेट पर हिंदू धर्म के लोगों के अलावा अन्य किसी भी धर्म के लोगों को प्रवेश की इजाजत नहीं मिलती है। हालांकि इसके रथ यात्रा के दौरान किसी के भी इस यात्रा में शामिल होने की अनुमति है। फेस्टिवल के दौरान हर कोई भगवान जगन्नाथ के दर्शन कर सकता है और उनके आशीर्वाद ले सकता है।
- यात्रा में तीन रथ की पालकी चलती है जिसमें क्रमश: तीन भगवान जगन्नाथ, बलराम और सुभद्रा को रथ पर बिठाया जाता है। इसलिए इस फेस्टिवल को रथ त्योहार भी कहा जाता है। इन रथों को नंदीघोष, तलाध्वजा और देवादालना भी कहा जाता है।
- नंदीघोष भगवान जगन्नाथ का रथ होता है जिसमें 18 पहिए होते हैं। तलाध्वजा भगवान बलराम का रथ होता है जिसमें 16 पहिए होते हैं जबकि सुभद्रा के रथ में 14 पहिए होते हैं।
- सबसे रोचक बात ये है कि हर साल ये तीनों रथों को नया बनाया जाता है। हर साल इस रथ के निर्माण में लगने वाले सभी सामान भी नए होते हैं। इसके डिजाइन, आकार, साइज शेप सभी पहले जैसे ही होते हैं इनमें कोई बदलाव नहीं होता है। हर रथ के आगे 4 घोड़े बांधे जाते हैं।
- रथ के ऊपर में मंदिर के टावर के स्ट्रक्चर की रेप्लिका होती है जो नॉर्थ इंडियन स्टाइल में होती है। सैकड़ों श्रद्धालु और भक्त रस्सियों के सहारे रथ को खींचते हैं इसमें वे भगवान का आशीर्वाद मानते हैं। इसके लिए 1200 मीटर के कपड़े का उपयोग किया जाता है। 15 कुशल दर्जी के द्वारा इसे सिलवाया जाता है।
- पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक पुरी के राजा झाड़ू से यहां की जमीन को रथ यात्रा से पहले बुहारते हैं जिसके बाद बड़े ही ठाट-बाट से भगवान की रथ यात्रा निकाली जाती है।
- जब यह फेस्टिवल शुरू होता है तब भगवान जगन्नाथ का रथ इतना भारी होता है कि यह हिलाए नहीं हिलता है काफी देर तक सैकड़ों लोग मिकर इनके रथ को हिलाते हैं तब जाकर ये यात्रा शुरू होती है।
- इस रथ यात्रा के पीछे भी एक रोचक कहानी है। कहते हैं कि हर साल भगवान जगन्नाथ को रथ यात्रा के पहले ही काफी तेज बुखार आ जाता है। इसलिए उन्हें ऐसे में 1 सप्ताह का आराम दिया जाता है। इस दौरान मंदिरों के दरवाजे बंद कर दिए जाते हैं और किसी को भी भगवान को डिस्टर्ब करने की इजाजत नहीं होती है।
कोरोना के कारण इस साल नहीं निकलेगी यात्रा
आपको बता दें कि कोरोना वायरस से फैली माहमारी को देखते हुए इस साल के रथ यात्रा पर रोक लगा दी गई है। 23 जून को पुरी मेंभगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा निकलने वाली थी लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस पर पूरी तरह से रोक लगा दी है। सुप्रीम कोर्ट ने इस पर टिप्पणी करते हुए कहा कि अगर हम कोरोना महामारी के बीच इसकी इजाजत देगे तो भगवान जगन्नाथ भी हमे माफ़ नहीं करेंगे। बताया जाता है कि 10 दिनों तक चलने वाले इस यात्रा में करीब 10 से 12 लाख लोगों के जमा होने की उम्मीद थी। इतनी भारी भीड़ में कोरोना के संभावित खतरे को देखते हुए ही इस साल के लिए यात्रा पर रोक लगा दी गई है।