- 18 सितंबर 2022 को रखा जाएगा जितिया का व्रत
- मान्यता है कि इस व्रत को करने से होती है संतान की लंबी आयु
- माना जाता है कि जितिया व्रत में कथा पढ़ने से मिलता है मन चाहा फल
Jitiya Vrat Katha in Hindi 2022, Jivitputrika Vrat Katha 2022: हिंदू पंचांग के अनुसार इस बार जितिया का व्रत (Jivitputrika Vrat) माताएं 18 सितंबर 2022 को रखेंगी। इस व्रत (Jivitputrika Vrat 2022) में माताएं संतान की लंबी आयु के लिए जीमूतवाहन की उपवास रखकर पूजा अर्चना करती है। ऐसा कहा जाता है, कि इस व्रत को करने से मन की हर मुराद पूरी करती हैं। यह व्रत खासकर बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल और नेपाल जैसे राज्यों में मनाया जाता हैं।
जितिया व्रत को जीवित्पुत्रिका व्रत भी कहा जाता है। आपको बता दें यह व्रत निर्जला होता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन कथा पढ़ने या सुनने (Jivitputrika Vrat Katha hindi mein) से संतान की लंबी आयु होती है। यदि आप भी इस व्रत को करने की सोच रहे हैं, तो इस दिन इस कथा को अवश्य पढ़ें। ऐसी मान्यता है कि इस कथा (Jitiya Vrat 2022 vrat katha) को पढ़ने से जीमूतवाहन बहुत जल्द प्रसन्न हो जाते है।
Jivitputrika (Jitiya) Vrat Katha, Kahani in Hindi
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार जितिया व्रत का संबंध महाभारत काल से जुड़ा हुआ है। पौराणिक कथा के अनुसार जब युद्ध में अश्वत्थामा के पिता की मृत्यु हो गई तो वह बहुत क्रोधित हो गया। पिता की मृत्यु का बदला लेने के लिए वह पांडवों के शिविर गया और उसने वहां जाकर 5 निर्दोष लोगों की हत्या कर दी। उसे लगा कि वह 5 लोग पांडव थे।
लेकिन उसकी इस गलतफहमी की वजह से पांडव जिंदा बच गए। जब पांडव अश्वत्थामा के सामने आए तो उसे पता चला कि उसने पांडवों की जगह द्रोपदी के पांच पुत्रों की हत्या कर दी है। अर्जुन को जब इस बात का पता चला तो वह बहुत क्रोधित हुए और उन्होंने अश्वत्थामा को बंदी बनाकर उससे दिव्य मणि छीन ली।
इस बात का बदला लेने के लिए अश्वत्थामा ने अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा के गर्भ में पल रही संतान को मारने की योजना बनाई। उसने गर्भ में पल रहे बच्चे को मारने के लिए ब्रह्मास्त्र चलाया, जिसकी वजह से उत्तरा का गर्भ नष्ट हो गया। लेकिन उस बच्चे का जन्म लेना आवश्यक था इसलिए भगवान श्री कृष्ण ने उत्तरा के मरे हुए संतान को गर्भ में फिर से जीवित कर दिया।
उत्तरा का संतान गर्भ में मर कर जीवित हुआ था, इसलिए इस व्रत का नाम जीवित्पुत्रिका पड़ा। तभी से सभी माताएं अपनी संतान की लंबी आयु के लिए इस व्रत को पूरी श्रद्धा से करने लगी। तभी से यह व्रत संसार में विख्यात हो गया।
(डिस्क्लेमर: यहां सूचना सिर्फ मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है। टाइम्स नाउ नवभारत किसी भी तरह की मान्यता या जानकारी की पुष्टि नहीं करता है।)